Delhi : एमसीडी की सबसे प्रभावशाली स्थायी समिति को किया जा रहा नजरअंदाज, निगम की कार्यप्रणाली कठघरे में
एमसीडी की सबसे अधिक अधिकार संपन्न और प्रभावशाली मानी जाने वाली स्थायी समिति को लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है। एमसीडी की निर्णय प्रक्रिया में स्थायी समिति की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि वित्तीय और बड़े नीतिगत प्रस्ताव पहले समिति में पेश होते हैं और वहां से स्वीकृत होने के बाद ही सदन तक पहुंचते हैं। इसके बावजूद अधिकारियों ने कई अहम फैसले सीधे महापौर से स्वीकृत करवा लिए या फिर उन्हें सीधे सदन में रख दिया। इस तरह न केवल समिति की उपयोगिता पर सवाल खड़े हो रहे हैं बल्कि एमसीडी की कार्यप्रणाली कठघरे में है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार के दौरान जब स्थायी समिति का गठन नहीं हुआ था, तब अधिकारी योजनाओं के अटकने और कामकाज में रुकावट का ठीकरा इसी पर फोड़ते थे। अब जबकि समिति का गठन हो चुका है, उसका महत्व लगातार घटाया जा रहा है। स्थायी समिति की उपेक्षा का सबसे ताजा उदाहरण दो दिन पहले एक बार फिर देखने को मिला। अधिकारियों ने भलस्वा, गाजीपुर और ओखला लैंडफिल साइट से कचरा हटाने के तीसरे चरण की योजना के टेंडर करने की प्रक्रिया शुरू करने के संबंध में समिति अध्यक्ष को नजरअंदाज कर सीधे महापौर से स्वीकृति ले ली। यह मामला अधिकारियों को काफी भारी पड़ गया, क्योंकि इस मामले को लेकर एमसीडी में हंगामा मचा हुआ है। इससे पहले अधिकारियों ने संपत्ति कर 10 प्रतिशत छूट योजना 31 जुलाई से एक महीने बढ़ाकर 31 अगस्त तक करने के मामले में भी स्थाई समिति की उपेक्षा की थी। उन्होंने जुलाई के अंत में इस बारे में प्रस्ताव भी समिति अध्यक्ष की बजाय सीधे महापौर से मंजूर करवा लिया था। यह वित्तीय अधिकारों का मामला था जिसे समिति अध्यक्ष के सामने लाना चाहिए था। 12 जून को गठित स्थायी समिति की अब तक तीन बैठकें (27 जून, 16 जुलाई और 20 अगस्त) हुई हैं, लेकिन कई बड़े प्रस्तावों को समिति की बैठक में प्रस्तुत किए बिना सीधे सदन में पेश कर दिए। सदन की बैठक में 10 जुलाई को दो अहम प्रस्ताव रखे गए, जो फैक्टरी लाइसेंस प्रक्रिया को सरल बनाने और मनोनीत पार्षदों को विकास निधि देने संबंधी थे। यह प्रस्ताव पूर्णत: नीतिगत और वित्तीय अधिकारों से संबंधित है। लिहाजा दोनों ही प्रस्ताव समिति से होकर गुजरने चाहिए थे। वहीं 21 अगस्त की सदन बैठक में भी यही पैटर्न दोहराया गया। बैठक के एजेंडे में आठ मैकेनिक स्वीपिंग मशीनों की अवधि बढ़ाने का प्रस्ताव शामिल था और पुराने वाहनों की नीलामी से जुड़ा प्रस्ताव पटल पर रखा गया। बताया कि आठ मैकेनिक स्वीपिंग मशीनों से जुड़ा प्रस्ताव समिति के एजेंडे में शामिल होना चाहिए था। वहीं 19 अगस्त को निगम सचिव कार्यालय पहुंचा पुराने वाहनों की नीलामी वाला प्रस्ताव भी अगले ही दिन यानी 20 अगस्त को हुई स्थायी समिति की बैठक में पटल पर रखा जाना चाहिए था। विपक्षी दलों के साथ-साथ भाजपा खेमे के कुछ पार्षद भी यह सवाल उठा रहे हैं कि जब समिति गठित हो चुकी है तो उसके अधिकारों का सम्मान क्यों नहीं किया जा रहा। समिति के अस्तित्व को हाशिए पर डालने से लोकतांत्रिक प्रक्रिया प्रभावित हो रही है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Sep 13, 2025, 02:38 IST
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