UP : गर्भावस्था में हाइजीन पर ज्यादा जोर...दे रहा 'मनोरोग'; कुछ में गर्भावस्था के बाद दिखते ओसीडी के लक्षण
गर्भावस्था में बहुत सी महिलाएं साफ-सफाई (हाइजीन) का जरूरत से ज्यादा ध्यान देने लगती हैं। ऐसी कुछ महिलाएं बाद में ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (ओसीडी) से ग्रसित हो जाती हैं।ओसीडी को अक्सर सिर्फ बार-बार हाथ धोने या चीजों को व्यवस्थित रखने की आदत ही समझा जाता है, लेकिन यह एक जटिल मानसिक रोग है। ये कहना है केजीएमयू के मनोचिकित्सक डॉ. सुजीत कुमार कर और मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. प्रसाद कन्नेकांती का। इन्होंने बताया कि केजीएमयू मनोरोग विभाग में रोज ओसीडी के 7-8 केस आते हैं। यह एक दीर्घकालिक बीमारी है। डॉ. सुजीत के मुताबिक, गर्भावस्था के दौरान सफाई पर अधिक ध्यान देने की वजह से महिलाओं में ओसीडी के मामले सामने आ रहे हैं। ऐसे केस पिछले कुछ वर्षों से देखने को मिल रहे हैं। सामान्य तौर पर 20 वर्ष से अधिक की उम्र में यह बीमारी शुरू होती है। कुछ मामलों में आठ से दस वर्ष की उम्र में ही बीमारी शुरू हो जाती है। मरीजों में आत्महत्या का खतरा ज्यादा डॉ. सुजीत के अनुसार, ओसीडी पीड़ितों के बारे में यह माना जाता था कि उनमें आत्महत्या की प्रवृति कम होती है, लेकिन कई अध्ययनों से पता चला है कि अन्य मरीजों की तुलना में ओसीडी पीड़ितों में अवसाद का खतरा अधिक होता है। ऐसे में इनमें आत्महत्या करने का भी खतरा अधिक है। ऐसे मरीजों में लगातार इलाज कराने की जरूरत पड़ती है। ओसीडी के कुल मरीजों में 55-65 प्रतिशत को लगातार इलाज कराते रहना जरूरी होता है। बहुत कम मामले होते हैं, जो कम समय के इलाज में पूरी तरह ठीक हो जाते हैं। लक्षणों को ऐसे पहचानें सामान्य लक्षण : गंदगी को लेकर अधिक सतर्क रहना, बारबार हाथ धोना, दरवाजा चेक करना, नहाना। असामान्य लक्षण : चीजों को एक ही तरीके से रखना और करना। परिजन और भगवान के खिलाफ अनैतिक विचार आना। होल्डिंग डिसऑर्डर (फालतू की वस्तुओं को भी एकत्रित करना)। आपत्तिजनक या वर्जित यौन विचार या धर्म से संबंधित निंदात्मक विचार आना। ये हैं ओसीडी के कारण जैविक कारक : सेरोटोनिन हार्मोन का संतुलन बिगड़ना, आनुवंशिक, सिर में गंभीर चोट लगने के कुछ साल बाद। मनोवैज्ञानिक : परफेक्शनिस्ट पर्सनालिटी (गलतियों के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता)। सामाजिक : अधिक धार्मिक व्यक्तित्व और उनके नियमों के प्रति अतिसंवेदनशीलता। अन्य कारण : बचपन में इंफेक्शन, तनाव, स्क्रैबिक इंफेक्शन (खुजली और दाने वाली त्वचा रोग)। इलाज में परिवार की भूमिका महत्वपूर्ण लक्षणों को नजरअंदाज न करें, मनोचिकित्सक को दिखाएं। परिजन अनचाही आदतों को बढ़ावा देने से बचें। मजाक उड़ाने की जगह मरीज की मनोदशा को समझें। मरीज की अनचाही आदतों को छुड़ाने के लिए डांटे नहीं, दबाव भी न बनाएं। प्यार से समझाकर धीर-धीरे आदतों को कम करवाने का प्रयास करें। भ्रम से निकाल कर वास्तविक की पहचान कराएं।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 13, 2025, 19:26 IST
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