Bageshwar News: उत्तरायणी मेले के लिए बचाकर रखते थे चार आना या दस पैसा

बागेश्वर। उत्तरायणी मेले से जिले के हर निवासी की यादें जुड़ी हैं। कोई बिरला ही होगा जो जिसने मेला न देखा हो। अतीत के दौर में भी लोग उत्साह से मेला देखने के लिए बागेश्वर पहुंचते थे। मेले के लिए महिलाएं पहले से ही आना, पाई बचाकर रखतीं थीं। कोई तो पांच, दस पैसा तो कोई चवन्नी, अठन्नी लेकर मेला देखने जाता था। एक रुपये में जरूरत का हर सामान मिल जाता था। दूरदराज के इलाकों से पैदल चलकर ही लोग सरयू स्नान कर मेले का आनंद लेने के लिए पहुंचते। कुछ लोग मेले के एक दिन पहले तो कुछ मेले के दिन आते। जिन लोगों का परिचित व्यक्ति बागेश्वर में रहता था, वह उसके घर ठहरते लेकिन जिसका कोई परिचित नहीं था वह अलाव के सहारे मेलार्थियों की भीड़ में रात गुजारता था। भिटारकोट गांव की 112 साल की देवकी देवी की धुंधली यादों में भी उत्तरायणी मेले के कुछ पल रचे-बसे हैं, जिनको याद करके वह रोमांचित हो उठतीं हैं। देवकी बतातीं हैं कि शादी से पहले वह मेला नहीं देख सकीं। देश की आजादी के बाद पहली बार अपनी सास के साथ मेला देखने गईं थीं। फिर कई साल तक मेला देखा। हालांकि बेटियों के जन्म के बाद वह मेला देखने नहीं जा सकीं। वह बताती हैं कि मेला देखने के लिए गांव से बागेश्वर तक 40 किमी पैदल जाना पड़ता था। आठ-दस के समूह में महिलाएं सुबह 10 बजे रवाना होतीं और शाम पांच बजे तक बागेश्वर पहुंचतीं थीं। वहां परिचित के घर रात बिताते और दूसरे दिन सरयू स्नान कर मेला घूमते। तीसरे दिन सुबह फिर घर की ओर रवाना हो जाते। उस दौर में मिठाई का प्रचलन नहीं था। मिठाई की जगह मिश्री और गट्टे ही मिलते। एक पैसे में काफी मिश्री मिल जाती थी। पहले ही एकत्र कर लेतीं थीं चारा और जलौनी लकड़ी बागेश्वर। मेला जाने का उत्साह ऐसा होता कि महिलाएं पहले से ही जानवरों का चारा, जलौनी लकड़ी पहले ही एकत्र कर लेतीं थीं। मेला देखकर आने के बाद भी आराम करने की फुर्सत नहीं होती थी। हालांकि मेला देखने का उत्साह ऐसा रहता कि महिलाएं थकान महसूस ही नहीं करतीं थीं।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 10, 2023, 23:36 IST
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