सुलझा रहस्य: अरबों साल की धीमी वृद्धि से बना बृहस्पति का धुंधला कोर, वैज्ञानिक बोले- नहीं थी कोई विशाल टक्कर

सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति (जूपिटर) लंबे समय से वैज्ञानिकों के लिए पहेली बना हुआ था। माना जाता था कि इसका कोर किसी प्रचंड टक्कर के कारण अस्तित्व में आया होगा। लेकिन रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी में प्रकाशित एक नए अध्ययन ने इस धारणा को खारिज कर दिया है। ताजा शोध से पता चला है कि बृहस्पति का धुंधला कोर किसी भीषण टक्कर का परिणाम नहीं, बल्कि उसकी अरबों साल लंबी विकास यात्रा की देन है। 2016 में बृहस्पति की कक्षा में पहुंचे नासा के जूनो यान (स्पेसक्राफ्ट) ने पहली बार उसके आंतरिक ढांचे की गहराई से जांच की। ग्रेविटी साइंस एक्सपेरिमेंट और माइक्रोवेव रेडियोमीटर जैसे उपकरणों की मदद से वैज्ञानिकों ने पाया कि बृहस्पति का कोर ठोस और स्पष्ट सीमाओं वाला नहीं है। इसके बजाय यह एक धुंधला या फैला हुआ कोर (बजी कोर) है, जिसमें भारी तत्व चट्टान और बर्फ धीरे-धीरे हल्के तत्वों यानी हाइड्रोजन और हीलियम के साथ घुलते गए। पहले यह परिकल्पना थी कि अरबों साल पहले किसी छोटे ग्रह ने बृहस्पति से टकराकर उसके भीतर भारी और हल्के पदार्थों को मिला दिया होगा। इस विचार की पुष्टि करने के लिए ब्रिटेन की डरहम यूनिवर्सिटी, नासा, सेटी और ओस्लो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने सुपरकंप्यूटर और आधुनिक स्विफ्ट सॉफ्टवेयर से विशाल सिमुलेशन चलाए। परिणाम चौंकाने वाले रहे। किसी भी टक्कर से स्थायी धुंधला कोर नहीं बनता। भारी पदार्थ टकराव के बाद कुछ समय में फिर नीचे जाकर स्पष्ट सीमा बना लेते हैं। यानी टक्कर सिद्धांत अब टिक नहीं पाया। ये भी पढ़ें:-India-US Tariffs Row: निर्यातकों-कामगारों को राहत पैकेज जल्द, छह माह का रोडमैप तैयार; नए विकल्प तलाश रही सरकार धरती बनाम बृहस्पति कोर की तुलना धरती : इनर कोर ठोस और आउटर कोर तरल लोहे-निकेल मिश्रण से बना है, जिसकी सीमाएं स्पष्ट हैं। बृहस्पति : धुंधला, फैला हुआ कोर जिसमें भारी और हल्के तत्व लगातार घुले हुए हैं। यानी गैस दानव ग्रहों का निर्माण और उनकी आंतरिक संरचना धरती जैसे स्थलीय ग्रहों से बिल्कुल अलग है। अगर सचमुच टक्कर होती तो क्या होता वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर बृहस्पति से किसी छोटे ग्रह की टक्कर होती, तो उसकी कक्षा प्रभावित हो सकती थी। बृहस्पति के चंद्रमा आयो, यूरोपा, गैनीमीड और कैलिस्टो की स्थिति और सतह पर गहरे असर पड़ सकते थे। सौरमंडल का गुरुत्वीय संतुलन बदल सकता था, क्योंकि बृहस्पति का गुरुत्वाकर्षण बाकी ग्रहों की स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यानी अगर टक्कर सिद्धांत सच होता, तो पूरी खगोलीय कहानी आज अलग होती। टक्कर से नहीं बनता ऐसा ढांचा डरहम यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि टक्कर ग्रह को झकझोर सकती है, लेकिन उससे वैसा ढांचा नहीं बनता जैसा बृहस्पति और शनि में दिख रहा है। इनका विकास क्रमिक और प्राकृतिक प्रक्रिया से हुआ। ये भी पढ़ें:-India-US: क्या ट्रंप की वजह से सबसे खराब दौर में भारत-अमेरिका के रिश्ते, पहले कब तनावपूर्ण रहे; अब आगे क्या

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Aug 27, 2025, 05:53 IST
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