चिंताजनक: कीटनाशकों से बढ़ रहा डिप्रेशन और याददाश्त की बीमारी; आईसीएमआर ने राष्ट्रीय कार्यक्रम की मांग की
देश की ग्रामीण आबादी खासकर खेती पर निर्भर किसानों के मानसिक स्वास्थ्य पर कीटनाशकों का भारी असर सामने आया है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने पश्चिम बंगाल के कृषि प्रधान क्षेत्रों में किए एक अध्ययन में पता चला है कि जिन किसानों के खेतों में सप्ताह में एक बार कीटनाशक का छिड़काव होता है, उनमें डिप्रेशन, याददाश्त में कमी और रोजमर्रा की गतिविधियों में गिरावट का खतरा तीन गुना तक बढ़ जाता है। आईसीएमआर के शोधकर्ताओं ने पूर्व बर्दवान जिले के गालसी ब्लॉक में 808 कृषक परिवारों की जांच में पाया कि 22.3% परिवारों में माइल्ड कॉग्निटिव इंपेयरमेंट (एमसीआई), डिप्रेशन या दोनों के मिले-जुले लक्षण हैं। इनमें से कई किसानों का कहना है कि वे वर्षों से खेती करते हुए नियमित रूप से कीटनाशकों के संपर्क में रहे हैं। इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईजेएमआर) में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार, सप्ताह में कम से कम एक बार कीटनाशक छिड़कने वालों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का 2.5 गुना अधिक जोखिम पाया गया। शोधकर्ताओं के मुताबिक, यह पैटर्न स्पष्ट रूप से दिखाता है कि जिस आवृत्ति से किसान कीटनाशक इस्तेमाल करते हैं उसी अनुपात में उनकी न्यूरोलॉजिकल सेहत बिगड़ती जाती है। शोधकर्ताओं ने बताया कि 30 साल से अधिक समय से खेती कर रहे और लंबे समय से कीटनाशक के संपर्क में रहने वाले किसानों में जोखिम 1.8 गुना तक बढ़ता पाया। पुरुषों में यह खतरा महिलाओं की तुलना में लगभग दोगुना अधिक दर्ज किया। किसानों में जहरीले असर के संकेत दे रहे जैव मार्कर आईसीएमआर की टीम ने किसानों के खून के नमूनों में तीन प्रमुख जैव-मार्कर एसीएचई, बीसीएचई और पीओएन1 की जांच में पाया कि जो किसान नियमित रूप से कीटनाशक उपयोग कर रहे हैं उनमें पीओएन1 जैव मार्कर का स्तर अत्यधिक बढ़ा हुआ है। शरीर का यह एंजाइम तब बढ़ जाता है जब व्यक्ति लंबे समय तक जहरीले ऑर्गेनोफॉस्फेट कीटनाशकों के संपर्क में रहता है। यह एक तरह से शरीर का अलार्म सिग्नल है जो बताता है कि रासायनिक जहर से लड़ने की प्रक्रिया तेज हो चुकी है। आईसीएमआर ने सरकार को दिया सुझाव, राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम की जरूरत आईसीएमआर ने इस अध्ययन के बाद केंद्र व राज्य सरकारों को सुझाव दिया है कि ग्रामीण इलाकों में कीटनाशक-जनित मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता, प्रशिक्षण और स्वास्थ्य निगरानी कार्यक्रम शुरू किए जाएं। पश्चिम बंगाल में आईसीएमआर के सेंटर फॉर एजिंग एंड मेंटल हेल्थ के प्रोफेसर अमित चक्रवर्ती का कहना है कि किसानों को सुरक्षा किट, मास्क, दस्ताने, और छिड़काव के दौरान सुरक्षित दूरी जैसे प्रोटोकॉल की जानकारी देना अनिवार्य है। गांवों में मानसिक स्वास्थ्य का नया उभरता संकट अध्ययन यह भी बताता है कि दिन भर खेतों में रहने वाले कृषि मजदूरों में न केवल याददाश्त कमजोर होती है बल्कि रोजमर्रा के कामकाज में भी बाधा आने लगती है। कई मामलों में मूवमेंट डिसऑर्डर के शुरुआती संकेत भी मिले।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 20, 2025, 04:43 IST
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