SC: 'क्या सभ्य समाज में ऐसी प्रथा को इजाजत देनी चाहिए?' तलाक-ए-हसन पर सुप्रीम कोर्ट सख्त; पूछे तीखे सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह तलाक-ए-हसन प्रथा को रद्द करने पर विचार कर सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह प्रथा व्यापक रूप से समाज को प्रभावित करती है, इसलिए कोर्ट को सुधारात्मक उपाय करने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ सकता है। तलाक-ए-हसन के तहत एक मुस्लिम पुरुष पत्नी को तीन महीने तक महीने में एक बार तलाक कहकर तलाक दे सकता है। जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह भी कहा कि वह मामले को 5 न्यायाधीशों की पीठ को भेज सकती है। पीठ ने पक्षकारों से विचार के लिए उठने वाले प्रश्नों के साथ नोट प्रस्तुत करने के लिए कहा। अदालत ने पक्षकारों से कहा कि एक संक्षिप्त नोट प्राप्त होने पर वह 5 न्यायाधीशों की पीठ को भेजने पर विचार करेगी। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, इसमें पूरा समाज शामिल है। कुछ सुधारात्मक उपाय किए जाने चाहिए। भेदभावपूर्ण प्रथाएं हैं तो अदालत को हस्तक्षेप करना होगा। पीठ ने पूछे तीखे सवाल पीठ ने पूछा कि महिलाओं की गरिमा को प्रभावित करने वाली ऐसी प्रथा को सभ्य समाज में कैसे जारी रहने दिया जा सकता है जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा, 2025 में इसे कैसे बढ़ावा दिया जा सकता है क्या सभ्य समाज को इस तरह की प्रथा की अनुमति देनी चाहिए 2022 में दायर की गई थी याचिका कोर्ट पत्रकार बेनजीर हीना की ओर से 2022 में दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इसमें इस प्रथा को असांविधानिक घोषित करने की मांग की गई थी। याचिका में कहा है कि यह प्रथा मनमानी और कानून का उल्लंघन करती है। याचिकाकर्ता के पति ने वकील के जरिये तलाक-ए-हसन नोटिस भेजकर उसे तलाक दिया था, क्योंकि उसके परिवार ने दहेज देने से इनकार कर दिया था। चुप्पी साधे बैठी हैं कई महिलाएं पति की ओर से पेश अधिवक्ता एमआर शमशाद ने अदालत को बताया कि इस्लाम में तलाक-ए-हसन नोटिस भेजने के लिए किसी व्यक्ति को नियुक्त करना प्रसिद्ध प्रथा है। जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा कि पति याचिकाकर्ता से सीधे संवाद क्यों नहीं कर सका। पत्रकार होने के नाते हीना के पास शीर्ष अदालत में जाने की क्षमता है, लेकिन कई महिलाएं चुप्पी साधे बैठी हैं।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Nov 20, 2025, 06:04 IST
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