लंबे समय तक अधिकारों पर चुप्पी साधे रहने वालों को असाधारण राहत नहीं दी जा सकती: हाईकोर्ट

-पूर्व सैनिक की पत्नी की विशेष लाभ की मांग वाली याचिका हाईकोर्ट ने की खारिज-कहा- देरी न्याय प्राप्ति की आशा को क्षीण कर देती है, समय से अधिकारों के लिए आवाज उठाना जरूरी ---अमर उजाला ब्यूरोचंडीगढ़। पूर्व सैनिक की पत्नी की विशेष सरकारी लाभ की मांग वाली याचिका को अस्वीकार करते हुए पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि जो व्यक्ति लंबे समय तक अपने अधिकारों पर चुप्पी साधे रहते हैं या देर से अदालत की शरण में आते हैं, उन्हें न्यायालयों से असाधारण राहत नहीं मिलनी चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि देरी न्याय प्राप्ति की आशा को क्षीण कर देती है।सुरिंदर पाल कौर ने याचिका दाखिल करते हुए पंजाब सरकार को निर्देश देने की मांग की थी कि उनके दिवंगत पति की ओर से दो राष्ट्रीय आपात स्थितियों (युद्ध काल) के दौरान की गई सैन्य सेवा के लिए उन्हें विशेष लाभ दिए जाएं। हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता ने याचिका 20 वर्षों की देरी से दाखिल की है और यह मामला देरी और निष्क्रियता के सिद्धांत से प्रभावित है। कोर्ट ने कहा कि अनेक बार अधिकारियों को पत्र लिखने मात्र से कोई नया अधिकार उत्पन्न नहीं होता। याचिकाकर्ता के पति ने 27 नवंबर, 1964 को सेना में हवलदार के पद पर सेवा आरंभ की थी और 19 नवंबर, 1985 को सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद उन्होंने 1 जून, 1989 को पंजाब पुलिस में सेवा ज्वाइन की। 31 जुलाई, 2004 को वह एएसआई पद से सेवानिवृत्त हुए। उनकी 13 नवंबर, 2010 को मृत्यु़ हो गई थी। सुरिंदर पाल कौर ने 8 अप्रैल, 2021 को राज्य सरकार को एक कानूनी नोटिस भेजा, जिसमें उन्होंने दोहरी पेंशन के साथ-साथ युद्ध काल के दौरान की गई सेवा के लिए विशेष लाभों की मांग की। राज्य सरकार ने याचिकाकर्ता को दोहरी पेंशन का लाभ तो प्रदान कर दिया, लेकिन सैन्य सेवा के विशेष लाभों की मांग को अस्वीकार कर दिया। याची ने वर्ष 2024 में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जब उनके पति को पुलिस सेवा से सेवानिवृत्त हुए भी दो दशक बीत चुके थे।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jun 17, 2025, 20:15 IST
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