आखिर: नीति या तकनीक से नहीं, साझा जिम्मेदारियों से बदलेगी हवा

हमारे देश में वायु प्रदूषण की समस्या न केवल पर्यावरणीय, बल्कि स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर समस्या भी बन चुकी है। बरसात का मौसम खत्म होने के साथ ही देश के बड़े हिस्से में, विशेषकर उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में हवा जहरीली होने लगती है। त्योहारों, पटाखों, पराली जलाने और ठंडी हवाओं की कमी जैसे कारण इसके लिए जिम्मेदार हैं। आंकड़े बताते हैं कि भारत में आबादी के हिसाब से हवा में पार्टिकुलेट मैटर्स 2.5 की औसत उपस्थिति विश्व में सर्वाधिक है। ये कण फेफड़ों में पहुंच कर हृदय और सांस संबंधी रोगों का कारण बनते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दिल्ली की वायु गुणवत्ता राजधानियों में सबसे खराब है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 21.8 लाख लोगों की मृत्यु वायु प्रदूषण के कारण होती है, जो चीन के बाद दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है। शिकागो विश्वविद्यालय के एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स ने चेताया है कि उत्तर भारत में रहने वाले लगभग 51 करोड़ लोग अपनी आयु का औसतन 7.6 वर्ष खो सकते हैं। बड़े शहरों में यह औसत और अधिक है। लंबे समय तक प्रदूषित वायु के संपर्क में रहने से फेफड़ों का कैंसर, स्ट्रोक और हृदय रोग जैसी जानलेवा बीमारियां उत्पन्न होती हैं। जहरीली हवा से आंखों में जलन, खांसी, और सांस फूलने जैसी तात्कालिक समस्याएं तो होती ही हैं, बाद में यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को भी कमजोर करती है, जिससे दूसरी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Nov 10, 2025, 07:20 IST
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