Urdu: उर्दू किताबों में पहली बार मीरा बाई एआई, रोबोटिक्स पढ़ेंगे विद्यार्थी; युवा पीढ़ी को भाषा से जोड़ना मकसद

Urdu: अब उर्दू बाल साहित्य में छात्र प्रेम दीवानी मीरा बाई, महाराष्ट्र का हजारों साल पुराना पालकी त्योहार, पारंपरिक लोक नृत्य लेजिम से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और रोबोटिक्स पढ़ेंगे। राष्ट्रीय उर्दू भाषा संवर्धन परिषद (एनसीपीयूएल) युवा पाठकों को भाषा से जोड़ने के मकसद से उर्दू बाल साहित्य को पुनर्जीवित करने जा रही है। इसमें भारतीय संस्कृति और समकालीन जीवन के मुद्दों को जोड़ा गया है। परिषद की सभी 56 बाल पुस्तकों में मिनी भारत की झलक दिखेगी। इसमें सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की संस्कृति, विरासत, भाषा व पहचान को दर्शाया गया है। ये सचित्र कहानी वाली पुस्तकें आठ से 12 आयु वर्ग और 12 से 18 वर्ष के बच्चों के आधार पर तैयार की गई है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के अधीनस्थ, राष्ट्रीय उर्दू भाषा संवर्धन परिषद (NCPUL) ने उर्दू भाषा और बाल साहित्य को पुनर्जीवित करने का खाका तैयार किया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत भाषा को नया जीवन देने के लिए परिषद 56 कहानी की किताबों की शृंखला तैयार की है। यह किताब फोटो के साथ हैं, ताकि बच्चे कहानी से निकलते भाव को आसानी से समझ सकें। इन पुस्तकों में भारतीय संस्कृति और समकालीन जीवन के मुद्दों पर जोड़ा गया है। उदाहरण के तौर पर प्रेम दीवानी मीरा बाई, महाराष्ट्र का हजारों साल पुराना पालकी त्योहार, पारंपरिक लोक नृत्य लेजिम से लेकर स्कूलों में एआई और रोबोटिक्स की खोज जैसे विषयों को भी शामिल गया है। दरअसल, एनईपी 2020 पारंपरिक से लेकर आुधनिक भारतवर्ष के सममिश्रण पर जोर देती है। इसी के तहत, इन पुस्तकों की शृंखला में संस्कृति, विरासत, पंरपरा, त्योहार सब है। उर्दू बाल साहित्य में झलकेगी भारतीय संस्कृति एनसीपीयूएल के निदेशक डॉ. शम्स इकबाल ने कहा, आम लोगों में धारणा है कि उर्दू फारसी और अरबी संस्कृति से प्रभावित है। क्योंकि, उन पुस्तकों में भारतीय संस्कृति का सार गायब था। लेकिन नई पुस्तकों में पाठक भारतीय संस्कृति को भी देखेंगे। हमारा मकसद, उर्दू कहानी को अपनी धरती के करीब लाना है, ताकि बच्चों के जीवन, त्योहारों और नायकों को प्रतिबिंबित किया जा सके। भारत जैसे बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक राष्ट्र में, यह जरूरी है कि युवा पाठक हमारे देश की विविधता को उर्दू समेत हर भाषा में देखें। जब बच्चे इन कहानियों में अपनी संस्कृति और समकालीन वास्तविकताओं को पाते हैं, तो उनके भाषा से जुड़ने की संभावना बढ़ जाती है। इस तरह हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उर्दू और उसकी सुंदर लिपि युवा पीढ़ी के लिए जीवंत, प्रासंगिक और प्रिय बनी रहे।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Oct 30, 2025, 09:08 IST
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