मुद्दा: परेशानियों का सबब बनती घटनाएं... भले ही भारतीय समाज जातिविहिन नहीं हो सकता, किंतु जन्मना श्रेष्ठता...
विश्व को सर्वप्रथम सभ्यता सिखाने का गौरव अनुभव करने वाले देश में मनुष्य को इतना सभ्य और प्रबुद्ध तो होना ही चाहिए कि दूसरे मनुष्य के सम्मान, गरिमा और अस्तित्व को क्षति पहुंचाना उसे स्वयं ही अप्रिय लगने लगे। संविधान के साये में जहां समता, स्वतंत्रता और बंधुता फलती-फूलती हो, वहां लोकतांत्रिक मूल्यों का क्षरण रोकने का दायित्व आम नागरिक से लेकर राजकीय एवं सांविधानिक संस्थाओं का प्राथमिक दायित्व हो जाता है। बदकिस्मती से विगत माह ऐसी कई अप्रिय और अशोभनीय घटनाएं हुईं, जो सभ्य नागरिकों के लिए चिंता का विषय बनीं। ये घटनाएं सामाजिक न्याय की दृष्टि से उपेक्षित-वंचित व कमजोर समुदाय से आने वालों के साथ हुईं। केसी त्यागी ने 'मौतें और सवाल' लेख में सामाजिक न्याय राज्य मंत्री रामदास आठवले के हवाले से कहा है कि पंजीकृत 54,574 सीवर और सेप्टिक टैंक श्रमिकों में सैंतीस हजार साठ अनूसूचित जाति से हैं। दिल्ली में विगत 15 वर्षों में सौ से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। प्रकारांतर से लगातार प्रकाशित हो रही खबरें चौंकाती हैं, मसलन-भिंड, मध्य प्रदेश में दलित व्यक्ति को पेशाब पीने के लिए मजबूर किया, तीन गिरफ्तार। लखनऊ में मंदिर के पास गलती से पेशाब करने के कारण 60 वर्षीय बुजुर्ग को मूत्र चाटने को मजबूर किया गया। मध्य प्रदेश खनन का विरोध करने पर दलित व्यक्ति पर पेशाब किया गया। मथुरा में अनुसूचित जाति के दूल्हे को बग्गी से उतार कर धमकाया, डीजे बंद कराया, दबंगों ने दूल्हे के परिजनों को पीटा। मध्य प्रदेश के भिंड में रुद्रप्रताप सिंह जाटव (35) को मामूली कहा-सुनी पर गैर-दलित पड़ोसियों ने पीट-पीट कर मार दिया। अलीगढ़ में अनुसूचित जाति के युवक की बरात को दबंगों ने रोका। भोपाल-दलितों का आरोप, पुलिस हिरासत में हुआ उत्पीड़न, भोपाल ही में अंतर्जातीय-विवाह कर लेने पर पत्नी के परिवार ने दलित युवक की हत्या कर दी। अंबेडकर नगर में 17 वर्षीय इंटर की दलित छात्रा की टाई से गला घोंट कर हत्या कर दी गई। सुल्तानपुर में मां के सामने अनुसूचित जाति के युवक की हत्या। दलित बुजुर्ग से मंदिर की सीढ़ियां चटवाने का आरोप। इस संदर्भ में, 'दलितों पर बढ़ा अत्याचार' शीर्षक से सपा नेता अखिलेश यादव का बयान आया। उन्होंने बुजुर्ग के साथ-साथ रायबरेली दलित युवक की हत्या और लखनऊ में हुए दलित बुजुर्ग के अपमान का मुद्दा उठाया, परंतु ऐसा ही उत्पीड़न तो 2017 में भी हुआ था, जब सपा राज में यादव पुलिस और दबंग ग्रामीण यादव दलित उत्पीड़न कर रहे थे। मायावती की जाति से संबंधित दलितों को तो हर स्तर पर प्रताड़ित किया जा रहा था। गंगुर्रा (बदायूं) का प्रसंग इस लेखक ने मौके पर दर्ज किया था, जहां थाना प्रभारी अनिल यादव ने जाटवों के घरों में घुसकर महिलाओं को अपशब्द कहे थे। तभी इन पंक्तियों के लेखक ने कहा था अब यूपी में भाजपा आएगी, क्योंकि मायावती निष्क्रिय थीं और सपा द्वारा दलित उत्पीड़न कानून की हदें तोड़ रहा था। सम्मान का सवाल हाल ही में पूर्व प्रधान न्यायाधीश गवई पर फेंके गए जूते के संदर्भ में चर्चा के शीर्ष पर था। 71 वर्षीय वकील राकेश किशोर, अपनी जाति छिपा कर 'मैं भी दलित हो सकता हूं' कह रहे थे। बेशक उन्हें जज साहब के कथित बयानों, बुलडोजर से देश नहीं चलेगा, कानून से चलेगा और अपने विष्णु भगवान से कहो, वे अपनी खंडित प्रतिमा खुद ही ठीक करा लेंगे, से आपत्ति थी, जिसे उन्होंने 'सनातन का अपमान' कहा और अपने एक्शन को ईश्वर का आदेश बताया, लेकिन उन्होंने सांविधानिक तरीके से आपत्ति, शिकायत और असंतुष्टि जाहिर नहीं की, बल्कि दुनिया को अपना सनातनी चेहरा दिखाया। मामला अनुसूचित जातियों की गरिमा और संविधान निर्माता की प्रतिष्ठा से जुड़ा था। धर्म-जातियों के संस्कारगत आग्रह अपनी जगह, लेकिन समग्रता में यह मानवीय सभ्यता और संयत व्यवहार का प्रश्न है, जो तय करता है कि नागरिक के तौर पर हम अपनी सांविधानिक संस्थाओं का कितना सम्मान करते हैं और अपने लोकतंत्र को राजनीति की हदबंदी से निकाल कर समाज, साहित्य और संस्कृति में कितना विकसित कर पाए हैं वैश्विक सभ्यताओं में हम किस कोटि की नागरिक चेतना का परिचय दे पाए हैं भले ही भारतीय समाज जातिविहीन नहीं हो सकता, किंतु जातियों के बीच का भेदभाव, जन्मना श्रेष्ठता-निकृष्टता से तो बाहर आया ही जा सकता है। बेशक संविधान प्रदत्त समता, स्वतंत्रता और बंधुता इन्हीं मूल्यों की पुष्टि करती है, परंतु सिद्धांत और व्यवहार की दूरी कम नहीं होगी, तो भारत की दुनिया में अनोखी पहचान कैसे कायम है हिंसा, असहिष्णुता और अनुदारता का मार्ग अपना कर तो विश्वगुरु नहीं बना जा सकता। जरूरी है कि हम तमसो मा ज्योतिर्गमय की भावना को आत्मसात करें, वरना बाहर कितना भी प्रकाश फैलता जाए, भीतर का अंधेरा सर्वेभवंतु सुखिनः के हमारे पथ को आलोकित करने में बाधक ही होगा। -लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष एवं सीनियर प्रोफेसर हैं।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 04, 2025, 06:18 IST
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