Hisar News: बीकानेर में 100 रुपये प्रति डोज मिल रहा मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों का सीमन

उदयभान त्रिपाठीहिसार। आकर्षक कद काठी और गजब की चाल के कारण राजस्थान के मारवाड़ी प्रजाति के घोड़े की दुनिया भर में डिमांड है। इस प्रजाति के घोड़ों की संख्या बढ़ाने के लिए अश्व अनुसंधान केंद्र ने अब बीकानेर के अपने सब सेंटर से सीमन उपलब्ध कराना शुरू किया है। यहां 100 रुपये प्रति डोज सीमन (वीर्य) दिया जा रहा है।केंद्रीय अश्व अनुसंधान केद्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. यशपाल शर्मा बताते हैं कि देशभर में घोड़ों की सात प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनकी संख्या करीब साढ़े तीन लाख है। अधिकतर घोड़ों का पालन राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और मणिपुर में किया जाता है। राजस्थान व हरियाणा में पाए जाने वाले मारवाड़ी प्रजाति के घोड़े को सबसे अच्छा माना जाता है। पुराने जमाने में मारवाड़ी घोड़े को सैनिकों के लिए सबसे अच्छा माना जाता था। इस प्रजाति का मूल जन्मस्थान राजस्थान का मारवाड़ क्षेत्र है, इसीलिए इसे मारवाड़ी प्रजाति के नाम से जाना जाता है। अश्व अनुसंधान केंद्र ने इस प्रजाति के घोड़ों की मांग को देखते हुए बीकानेर सब सेंटर पर इसका सीमेन उपलब्ध कराया है। सीमेन 100 रुपये प्रति डोज के हिसाब से उपलब्ध कराया जा रहा है।जानिये भारतीय घोड़ों की खासियतमारवाड़ी नस्ल: इस प्रजाति के घोड़े सबसे ताकतवर होते हैं। दौड़ते समय दोनों कान खड़े होकर एक दूसरे को छूने लगते हैं। ऊंचाई व माथे की चौड़ाई अधिक होने के चलते देखने में आकर्षक होता है। सबसे अव्वल दर्जे के इस घोड़े की दुनिया भर में डिमांड है।----कठियावाड़ी नस्ल: इस प्रजाति के घोड़े की जन्मस्थली गुजरात का सौराष्ट्र इलाका है। इसके अलावा राजकोट, अमरेली और जूनागढ़ जिलों में भी बहुतायत में पाया जाता है। इसका रंग ग्रे और गर्दन लंबी होती है। मारवाड़ी नस्ल जैसा ही कीमती होता है।-------कच्छी-सिंधी: घोड़े की यह नस्ल रेगिस्तानी है। यह शुष्क मौसम में खुद को ढाल लेता है। गर्मी सहन करने की क्षमता अन्य प्रजातियों से अधिक होती है। यह घोड़ा गुजरात के कच्छ जिले और राजस्थान के जैसलमेर व बाड़मेर इलाके में पाया जाता है। इनकी संख्या काफी कम है।स्पीती: घोड़ों की यह प्रजाति पहाड़ी इलाकों के लिए बेहतर मानी जाती है। ये ज्यादातर हिमाचल प्रदेश में पाए जाते हैं। इस नस्ल के घोड़े पहाड़ी इलाकों में आवागमन के प्रमुख स्रोत हैं। जनस्कारी: इस नस्ल के घोड़े लेह-लद्दाख में बहुतायत में पाए जाते हैं। इनका इस्तेमाल अधिकतर बोझा ढोने के लिए किया जाता है। इस नस्ल के घोड़ों की संख्या काफी कम है। इनकी नस्ल को बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।--------मणिपुरी या पोलोपोनी: इस नस्ल के घोड़े काफी ताकतवर और फुर्तीले होते हैं। पोलो खेल में अधिक प्रयोग के चलते ही इन्हें पोलोपोनी भी कहा जाता है। अलग-अलग रंगों में मिलने वाले इस घोड़े की खेलों में डिमांड अधिक है।भूटिया: इस नस्ल के घोड़े ज्यादातर सिक्किम और दार्जिलिंग इलाके में पाए जाते हैं। इनका इस्तेमाल मुख्य रूप से घुड़दौड़ और सामान ढोने के लिए किया जाता है। इस नस्ल के घोड़े ज्यादातर नार्थ-ईस्ट में मिलते हैं।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Dec 28, 2022, 23:47 IST
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