सब अमर होना चाहते हैं: सिकंदर से लेकर न्यूटन और सिगमंड फ्रायड तक प्रयोगों का हिस्सा... अब तक विचार अप्राप्त

दीर्घायु बनाने का दावा करने वाला उद्योग शायद अपने अब तक के सबसे बेहतरीन दौर से गुजर रहा है। 1900 के बाद से एक अमेरिकी की अपेक्षित जीवन अवधि लगभग तीन दशक बढ़कर 2023 तक करीब 78 वर्ष हो गई है। लेकिन कई लोगों के लिए ये 78 वर्ष भी पर्याप्त नहीं होंगे। उदाहरण के लिए, बायोमेडिकल चैरिटी संस्था, मेथुसेलाह फाउंडेशन 90 वर्ष के व्यक्ति को 50 वर्ष का युवा बनाना चाहती है। एक बायोटेक्नोलॉजी फर्म के वैज्ञानिकों ने तर्क दिया है कि बीमारियों से मुक्त होकर, शरीर संभवतः 150 साल की उम्र तक जीवित रह सकता है। कुछ और आशावादी अनुमान इस संख्या को 1,000 के करीब बताते हैं। मानव जीवन की अधिकतम अवधि चाहे जो भी हो, लोग उसे जानने के लिए तेजी से प्रयास कर रहे हैं-खासकर पुरुष, जो जीवन को मौलिक रूप से (शायद अनिश्चित काल तक) बढ़ाने के पक्ष में हैं। पबमेड बायोमेडिकल और जीवन विज्ञान संबंधी शोधपत्रों का एक डाटाबेस है। पिछले साल, दीर्घायु पर लगभग 6,000 अध्ययन पबमेड में शामिल हुए। यह संख्या दो दशक पहले की तुलना में लगभग पांच गुना ज्यादा है। दर्जनों पॉडकास्ट और एक बड़े पूरक उद्योग के निर्माण के साथ-साथ इस उत्साह ने अंगों को संरक्षित करने, जीवन बढ़ाने वाले आहारों की खोज करने और यहां तक कि बुढ़ापे को उलटने की कोशिशों को भी जन्म दिया है। यह ठोस विज्ञान, मनगढ़ंत प्रयोगों और संदिग्ध सलाह का वही मिला-जुला रूप है, जिसने इस खोज को परिभाषित किया है। मानवता का सबसे पुराना महाकाव्य अमरता की एक विफल खोज को दर्शाता है। लगभग चार सहस्राब्दी पहले, सुमेरियों ने गिलगमेश नामक एक मेसोपोटामिया के राजा के बारे में बताया, जो शाश्वत जीवन की खोज में निकला था और उसने जवानी लौटाने वाले पौधे को खोज निकाला, लेकिन घर लौटते समय वह उसे खो बैठा। कहानी के अनुसार, दो सहस्राब्दियों बाद, शू फू नाम के एक चीनी जादूगर ने सम्राट को यकीन दिलाया कि पीले सागर के पार अनंत जीवन देने वाला एक अमृत है। सम्राट ने शू फू को जहाज और 3,000 कुंवारियां दीं, जिनके बारे में जादूगर ने कहा था कि वे इस खोज के लिए जरूरी हैं। सम्राट को पता चला कि इस खोज में उसने ज्यादा प्रगति नहीं की है। उधर, शू फू ने कहा कि उसे एक सेना की भी जरूरत है, जो सम्राट ने उपलब्ध कराई। शू फू रवाना हो गया और सम्राट ने उसे फिर कभी नहीं देखा। अमर होने की चाहत ने मैसेडोनिया के राजा सिकंदर महान और स्पेनिश विजेता जुआन पोंस डी लियोन को भी प्रेरित किया। उनका भी अंत विफलता में हुआ। यह एक ऐसा सबक है, जिसका असर उन अलकैमिस्टों पर नहीं पड़ा, जो सदियों से अमरता की घूंटी बनाने की कोशिश कर रहे थे। उनमें से एक थे आइजैक न्यूटन, जो 1700 के दशक के शुरू में इस विश्वास के साथ मरे कि उनका रसायन विज्ञान संबंधी अनुसंधान एक दिन उनके गति के नियमों से भी अधिक महत्वपूर्ण सिद्ध होगा। लेकिन न्यूटन की मृत्यु से पहले ही ज्ञानोदय के विचारक अमरता के सपने को छोड़कर, दीर्घायु जीवन पाने के अपेक्षाकृत कम महत्वाकांक्षी लक्ष्य को अपनाने लगे। ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी के अनुसार, दीर्घायु शब्द पहली बार 1500 के दशक में सामने आया था। जैसा कि पहली दीर्घायु आहार पुस्तक में भी हुआ था, जब लुइगी कॉर्नारो नाम के इतालवी रईस को आशंका हुई कि शराब, आलीशान दावतों और देर रात तक जागने की आदत उनकी सेहत पर नकारात्मक असर डाल रही है। फिर वह रोज बहुत कम भोजन करने लगे, और वह 80 साल की उम्र तक जीवित रहे, जब उन्होंने डिस्कोर्सेस ऑन ए सोबर लाइफ में अपने खाने की आदतों का जिक्र किया। कॉर्नारो को कैलोरी प्रतिबंध की आधुनिक धारणा का पता चला था, जिसके बारे में शोधकर्ताओं ने बताया कि इससे कुत्तों, चूहों, बंदरों, कीड़ों और शायद मनुष्यों की जीवन अवधि भी बढ़ जाती है। लेकिन कॉर्नारो संयम जैसे कम वैज्ञानिक प्रतिबंधों का भी समर्थन करते थे, क्योंकि उनका मानना था कि इससे उनकी जीवन शक्ति बनी रहेगी। उनकी मृत्यु के बाद भी सदियों तक यही सोच प्रचलन में रही। शिकागो में एक मूत्र रोग विशेषज्ञ ने लोगों के अंडकोषों को (जिनमें उनका अपना भी शामिल था) युवा पुरुषों के अंडकोषों से बदलना शुरू कर दिया। ऑस्ट्रिया के शरीरक्रिया वैज्ञानिक यूजेन स्टाइनाच बुढ़ापे से जुड़ी बीमारियों के इलाज के लिए एक नई जननांग सर्जरी का ढिंढोरा पीट रहे थे। इसके शुरुआती लाभार्थियों में सिगमंड फ्रायड भी थे, जिनकी 83 वर्ष की आयु में कैंसर से मृत्यु हो गई। पर यह सर्जरी (जिसे नसबंदी कहा जाता है) आज भी जारी है, हालांकि इसका उद्देश्य बिल्कुल अलग है। 19वीं और 20वीं शताब्दी तक बुढ़ापा-विरोधी गुरु, अखबारों के लेखक और ढोंगी सभी नियमित रूप से जीवनशैली में बदलाव को बढ़ावा देते थे। लंबा जीवन जीने की कला की लोकप्रियता बढ़ती गई। हालांकि, लंबा जीवन जीने की सबसे ज्यादा रुचि पुरुषों में ही थी, महिलाओं में नहीं। बीसवीं सदी के मध्य तक प्रकाशित पुस्तकों में दीर्घायु का उल्लेख अमरता से आगे निकल गया था। अपेक्षित जीवन अवधि में वृद्धि हुई, जिसका एक बड़ा कारण सार्वजनिक जल को साफ करने और उसमें क्लोरीन मिलाने का प्रचलन, पेनिसिलिन जैसी एंटीबायोटिक दवाओं की खोज और पोलियो जैसी घातक बीमारियों के टीकों का आगमन था। जो कभी जादूगरों का क्षेत्र था, वह डीएनए की खोज जैसी सफलताओं की मदद से अब ज्यादा वैधानिक गतिविधि बन गया है। फिर भी, उस दौर के कुछ सबसे प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों के बीच भी पुराने सनकी मनोरंजन तेजी से जारी रहे। मसलन, यूक्रेन की राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के प्रमुख रहे अलेक्जेंडर बोगोमोलेट्स ने घोड़े के खून और शव के मज्जा से बना एक सीरम विकसित किया था, जिसके बारे में उनका मानना था कि इससे व्यक्ति 150 साल तक जीवित रह सकता है। और नोबेल विजेता जीवविज्ञानी एलेक्सिस कैरेल ने दावा किया था कि उन्होंने मुर्गे के दिल के ऊतकों को वर्षों तक जीवित रखा है। आणविक जीव विज्ञान के संस्थापकों में से एक और रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार विजेता लिनस पॉलिंग ने अपने कॅरिअर के अधिकांश समय में विटामिन सी की बड़ी खुराक को 75 प्रतिशत कैंसर की रोकथाम और 150 वर्ष की आयु तक जीवन बढ़ाने के तरीके के रूप में बढ़ावा दिया। 1994 में जब पॉलिंग की कैंसर से मृत्यु हुई, तब तक उनकी दीर्घायु संबंधी शोध की साख समाप्त हो चुकी थी। जैसा कि पुरानी कहानियों में कहा गया है, अमरता की खोज एक विफल प्रयास हो सकता है। लेकिन लंबी उम्र की चाहत जल्द रुकने वाली नहीं है। हार्वर्ड और ऑक्सफोर्ड के शोधकर्ताओं ने हाल ही में अनुमान लगाया कि वैश्विक जीवन प्रत्याशा में एक दशक और जोड़ने वाली किसी भी वैज्ञानिक सफलता का कुल मूल्य 3,67,000 अरब डॉलर होगा। लेकिन यहां भी, प्राचीन लोग सावधानी बरतने की सलाह देते थे। रोमन लेखक प्लिनी द एल्डर ने एक ऐसे समय के बारे में बताया है, जब ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं थी, जो 800 साल की उम्र तक जीवित रहे। उन्होंने बताया कि वे जिंदगी से इतने थक गए थे कि उन्होंने खुद को समुद्र में फेंक दिया।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Oct 19, 2025, 04:46 IST
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