पड़ोस में उथल-पुथल: आर्थिक मजबूती के चलते स्थिर है भारत, जंग और वैश्विक दबाव के बाद भी 6-8% विकास दर बरकरार
बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, असमानता और आर्थिक संकट ने पड़ोसी देशों श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल में ऐसा आक्रोश पैदा किया, जिससे हिंसा भड़क उठी। सत्ता परिवर्तन तक हुआ। पड़ोसी देशों में सियासी उथलपुथल, अस्थिरता से पैदा हालातों के बावजूद तीव्र आर्थिक विकास, विदेशी मुद्रा भंडार और सुदृढ़ सरकार के चलते भारत शांत और स्थिर है। विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान के साथ छोटे-निर्णायक जंग और अमेरिका के भारी भरकम टैरिफ के बाद भी दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था शानदार प्रदर्शन कर रही है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार करीब 700 अरब डॉलर यानी सकल घरेलू उत्पाद का 18 प्रतिशत है, जो 11 महीनों के आयात के लिए पर्याप्त है। विकास दर 6 से 8 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही है। द इकोनॉमिस्ट में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार भारत हमेशा कभी इतना स्थिर नहीं रहा, जितना आज है। सरकार ने मजबूत अर्थव्यस्था के लिए बैंकिंग प्रणाली में सुधार किया, ऋणदाताओं को खराब ऋणों का पता लगाने के लिए प्रोत्साहित किया और दिवालियापन संहिता में सुधार किया। गैर-निष्पादित ऋण 2018 में 15 प्रतिशत से घटकर इस वर्ष 3 प्रतिशत हो गए हैं। राजकोषीय अपरिवर्तनवाद ने भी इसमें मदद की है। श्रीलंका का हालिया संकट, अपर्याप्त कर कटौती और मुद्रा मुद्रण द्वारा सक्षम घाटे के खर्च के कारण उत्पन्न हुआ था। भारत में राजकोषीय और चालू खाता दोनों तरह के दोहरे घाटे हैं, लेकिन इसने अपने बजट घाटे को कोविड-19 महामारी की शुरुआत के 9 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत से कम कर दिया है। सरकार की योजना 2031 तक अपने ऋण-से-जीडीपी अनुपात को 57 प्रतिशत से घटाकर 50 प्रतिशत करने की है। हालांकि विनिर्माण निर्यात में गिरावट आई है, लेकिन सेवाओं के निर्यात ज्यादातर व्यावसायिक प्रक्रिया और आईटी आउटसोर्सिंग से होने वाला राजस्व अब जीडीपी का 15 प्रतिशत है, जो एक दशक पहले 11 प्रतिशत था। इससे विदेशी पूंजी प्रवाह पर भारत की निर्भरता कम हुई है। एजेंसी दुखती रग रहा तेल अब कोई समस्या नहीं लंबे समय से भारत की दुखती रग रहा तेल भी इन दिनों कोई समस्या नहीं रह गया है। कुछ वर्षों में तेल की कीमतें अपेक्षाकृत कम रही हैं। लेकिन ऐसा इसलिए भी है क्योंकि सरकार और उद्योग ने अर्थव्यवस्था की इस संवेदनशीलता को कम कर दिया है। रणनीतिक तेल बफर और नई रिफाइनरी क्षमता से भी इसमें अंतर आता है। सस्ते आयातित रूसी कच्चे तेल से भी इसमें फर्क पड़ा है, जिससे पिछले वर्ष लगभग 8 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा की बचत हुई। हालांकि इससे अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप की नाराजगी भी भारत को झेलनी पड़ी है। 2021 में पेट्रोल में इथेनॉल मिलाने के आदेश से उन ड्राइवरों को परेशानी हुई है, जो अपने इंजन की सुरक्षा के लिए चिंतित थे, लेकिन इससे गन्ना किसान खुश हुए हैं और जीवाश्म ईंधन के आयात बिल में और कमी आई है। और बेहतर स्थिति आने की उम्मीद से बढ़ा भरोसा भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था देश में यह विश्वास और भावना पैदा करती प्रतीत होती है कि बेहतर चीजें अभी वास्तव में आने वाली हैं। डाटा प्रदाता सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की ओर से किए गए एक सर्वेक्षण में भारतीयों से एक से दस के पैमाने पर अपने जीवन की संतुष्टि का मूल्यांकन करने के लिए कहा गया। हालांकि इस समय अधिकांश लोग इस सर्वेक्षण में चार या पांच अंक दे रहे हैं, लेकिन वे अपने भविष्य को लेकर अधिक आशान्वित हैं। पांच साल में उन्हें इसके बढ़ कर छह या सात अंक तक पहुंचने की उम्मीद है। नागपुर में दंगे भड़के, मगर वजह सत्ता से नाराजगी नहीं देश का सामाजिक ताना-बाना भी ऐसा है, जो उसे अस्थिरता से बचाता है। मार्च में महाराष्ट्र के 35 लाख आबादी वाले शहर नागपुर में दंगे भड़के थे। मगर, इसका निशाना कोई भी मौजूदा सत्ताधारी नहीं था। निशाना बना था हिंदुओं पर अत्याचार करने वले 17वीं सदी के मुस्लिम सम्राट औरंगजेब का मकबरा। यह किसी भी समुदाय के खिलाफ भी नहीं था। असमानता व बेरोजगारी से अस्थिर हुए पड़ोसी असमानता और बेरोजगारी से जूझ रहे भारत के पूर्वोत्तर पड़ोसी देश नेपाल में जेन-जी ऐसे भड़के कि देशभर में आग लग गई। राजनेताओं की शाही जिंदगी और उनके बच्चों के विदेशों में बिताई गई शानदार छुट्टियों और डिजाइनर कपड़ों का इंस्टाग्राम पर खुलेआम प्रदर्शन से उनका आक्रोश भड़क उठा। इससे पहले, बांग्लादेश ने भी छात्रों ने 2009 से प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को हटाने के लिए आंदोलन किया, जो हिंसक हो उठा। आर्थिक संकट से जूझ रहा श्रीलंका दिवालिया हो गया था और ईंधन व दवाइयों का संकट पैदा हो गया था। इससे भड़की जनता ने 2022 में राष्ट्रपति भवन पर धावा बोल दिया था और राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को सत्ता छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। पश्चिम में स्थित पाकिस्तान को जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के समर्थकों के विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ रहा है। संकटग्रस्त पाकिस्तान की डूबती अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए आईएमएफ को उतरना पड़ा। पड़ोसी देशों में भुगतान संतुलन बना बड़ा कारण पड़ोसी देशों में भुगतान संतुलन के संकट और असमानता ने युवाओं को आक्रोशित कर दिया। भारत में भुगतान संतुलन का संकट नहीं है। यह भी देश में स्थिरता की बड़ी वजह है। भारत की दस वर्षीय सरकारी बॉन्ड यील्ड दर वर्ष की शुरुआत से 7 प्रतिशत से थोड़ा कम है। वहीं, पाकिस्तान और श्रीलंका को जो 12 प्रतिशत ब्याज दर देनी पड़ रही है, यह उससे काफी कम है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 09, 2025, 06:40 IST
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