ग्लोबल वार्मिंग ने बदला मिजाज: बर्फीली चोटियों पर रोमांच नहीं भय; हिमालय में शरदकालीन पर्वतारोहण बना जानलेवा
हिमालय की चोटियों पर चढ़ने वालों के लिए अक्तूबर हमेशा से सबसे सुंदर और सुरक्षित महीना माना जाता रहा है। साफ आसमान, हल्की हवा और बर्फ से ढकी चोटियों का मनमोहक दृश्य। लेकिन अब यह दृश्य मौत की दस्तक देने लगा है। इस बार का ऑटम क्लाइम्बिंग सीजन यानी शरदकालीन पर्वतारोहण अचानक आई बर्फीली आंधियों, अत्यधिक तीव्र मानसून और चरम मौसमी घटनाओं के कारण दर्जनों जानें ले चुका है और जीवन-मृत्यु के बीच फंसे सैकड़ों पर्वतारोहियों को बड़ी मुश्किल से बचाया जा सका। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार पिछले सप्ताह हिमालय की ऊंचाइयों पर ऐसा कुछ हुआ, जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। पूर्वी एवरेस्ट (चीन के तिब्बती हिस्से) के पास लगभग 16,000 फीट की ऊंचाई पर अचानक आई अत्यंत शक्तिशाली बर्फीली आंधी में सैकड़ों पर्वतारोही फंस गए। मीडिया के अनुसार करीब 600 ट्रैकर्स को 9 से 10 अक्तूबर की रात तक सुरक्षित निकाला गया, लेकिन एक व्यक्ति की हाइपोथर्मिया और ऑल्टिट्यूड सिकनेस से मौत हो गई। पूर्वी एवरेस्ट की ढलानों पर अचानक आए बर्फीले तूफन से सैकड़ों पर्वतारोहियों को बेहद कठिन हालात में बचाया गया। तापमान शून्य 15 डिग्री नीचे गिर चुका था, दृश्यता लगभग शून्य थी और रास्ते बर्फ से पूरी तरह ढंके हुए थे। ऐसे में स्थानीय शेर्पा गाइडों, बचाव दलों और तिब्बती सेना ने याकों और घोड़ों की मदद से रास्ता साफ किया गया, ताकि फंसे ट्रैकर्स तक पहुंच जा सके। रेडियो संचार और सैटेलाइट लोकेशन सिस्टम के जरिए उनका स्थान तय किया गया और धीरे-धीरे सभी को सुरक्षित निचले बेस कैंप तक लाया गया। इस पूरे अभियान में लगभग तीन दिन लगे। यह हिमालय में हाल के वर्षों का सबसे बड़ा सफल बचाव अभियान माना जा रहा है। दूसरी ओर, अचानक मौसमी बदलाव के कारण ही नेपाल की तरफ स्थित मीरा पीक पर एक दक्षिण कोरियाई पर्वतारोही की मृत्यु की पुष्टि हुई। भारी बर्फबारी और वर्षा के कारण संचार लाइनों के ठप हो जाने से दुनिया को इन हादसों की जानकारी देर से मिली। नेपाल के गृह मंत्रालय ने बताया कि देशभर में भूस्खलन और फ्लैश फ्लड से पिछले सप्ताह में लगभग 60 लोगों की मौत हुई है और यह सब अक्टूबर में, जब आमतौर पर आसमान एकदम साफ रहता है। मानसून लंबा और शक्तिशाली होने से बढ़ी परेशानी वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि दक्षिण एशिया का मानसून अब न केवल लंबा हो गया है बल्कि अत्यधिक शक्तिशाली (टर्बोचार्ज्ड) भी हो गया है। यह सब टर्बोचार्ज्ड वेस्टर्न डिस्टर्बेंस और ग्लोबल वार्मिंग के घातक गठजोड़ का नतीजा है जो अब हिमालय पार कर तिब्बत तक पहुंच चुका है और वहां के शुष्क पठार को भी नम और अस्थिर बना रहा है। पर्वत गाइड रितेन जांगबू शेर्पा कहते हैं कि पहले अक्टूबर में मौसम स्थिर रहता था, लेकिन अब अचानक भारी बर्फबारी या वर्षा का जोखिम हर साल बढ़ रहा है। यह बेहद असामान्य मौसम है। मौसम पर भरोसा नहीं एल्पनग्लो एक्सपेडिशन्स के चीफ गाइड लोगन टैलबट कहते हैं, अब कोई भी मौसम पैटर्न भरोसेमंद नहीं रहा। एक घंटा पहले तक धूप होती है और अगले घंटे में बर्फबारी शुरू हो जाती है। अब हमें रीयल-टाइम निर्णय, लचीली योजना और अनुभवी लीडरशिप की जरूरत है, वरना एक छोटी गलती भी जानलेवा साबित हो सकती है। हिमालय का ऑटम सीजन अब रोमांच का नहीं बल्कि जोखिम का पर्याय बन चुका है। जलवायु परिवर्तन ने दक्षिण एशिया के इस पर्वतीय स्वर्ग को अनिश्चितता के नरक में बदल दिया है। जहां कभी साफ आसमान और चमकती बर्फ पर्वतारोहियों का स्वागत करती थी, अब वहां बर्फीले तूफान और मृत्यु का भय मंडरा रहा है।अगर ग्लोबल वार्मिंग पर रोक नहीं लगी तो हिमशिखरों की रोमांचक सुबह धीरे-धीरे एक बीते युग की कहानी बनती जा रही है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Oct 15, 2025, 05:06 IST
ग्लोबल वार्मिंग ने बदला मिजाज: बर्फीली चोटियों पर रोमांच नहीं भय; हिमालय में शरदकालीन पर्वतारोहण बना जानलेवा #IndiaNews #National #Himalaya #GlobalWarming #SubahSamachar