स्वास्थ्य: खाद्य सुरक्षा के लिए कठोर नियमों पर अमल जरूरी, ताकि बनी रहे दूध की पौष्टिक प्रतिष्ठा
भारत में श्वेत क्रांति के जनक अर्थात फादर ऑफ द व्हाइट रिवॉल्यूशन पद्म विभूषण डॉ. वर्गीज कुरियन की जयंती हम इसी महीने 26 नवंबर को राष्ट्रीय दुग्ध दिवस के रूप में मनाएंगे। विश्व खाद्य पुरस्कार व मैग्सेसे से सम्मानित वह दुनिया के सबसे बड़े दुग्ध विकास कार्यक्रम बिलियन लीटर आईडिया (ऑपरेशन फ्लड) के लिए मशहूर हैं। भारत में दूध का इस्तेमाल बहुत अधिक मात्रा में किया जाता है। हालांकि, इसकी पौष्टिक प्रतिष्ठा के पीछे एक बड़ा सवाल भी छिपा है, जो जनस्वास्थ्य और उपभोक्ताओं के विश्वास के लिए खतरा है। दूध की मात्रा बढ़ाने, पहचान बदलने या गुणवत्ता परीक्षणों को धोखा देने के लिए उसमें पानी, स्टार्च, डिटर्जेंट, यूरिया, कास्टिक सोडा, माल्ट्रोडेक्सट्रिन और यहां तक कि बेहद खतरनाक रासायनिक पदार्थ मिलाए जाते हैं। दूध में वसा की मात्रा बढ़ाने के लिए इस्तेमाल होने वाले कुछ रसायन, जैसे फॉर्मेलिन और हाइड्रोजन पेरोक्साइड कैंसरकारी माने जाते हैं या लीवर व किडनी जैसे अंगों पर जहरीला प्रभाव डालते हैं। मिलावट का यह अनैतिक व्यवहार, मुनाफे के लिए न केवल दूध के प्राकृतिक पोषण मूल्यों से समझौता करता है, बल्कि उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य और जीवन के लिए भी गंभीर खतरा पैदा करता है। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने राज्यसभा में तीन वर्षों में लिए गए डेयरी उत्पादों के नमूनों से जुड़े आंकड़े जारी किए थे। एक रिपोर्ट के अनुसार, मिलावटी दूध के मामले में उत्तर प्रदेश अव्वल है। दूसरे नंबर पर राजस्थान, तीसरे पर तमिलनाडु और चौथे पर केरल का नाम है। रिपोर्ट में सामने आए ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं। उत्तर प्रदेश में मिलावटी दूध बेचने वालों पर कार्रवाई भी हुई। यहां मिलावटखोरी के 1,928 मामले, जबकि तमिलनाडु में 944, केरल में 737, महाराष्ट्र में 191, बिहार में 174 केस दर्ज किए गए। पिछले पांच साल में उत्तर प्रदेश के कई शहरों में दूध में मिलावट के बड़े मामले पकड़े गए हैं। अमोनिया और यूरिया के कारण खराब हुए स्वाद को बदलने करने के लिए अब स्टार्च मिलाया जाने लगा है, जिससे दूध में मिलावट का स्वाद पता नहीं चलता है। हैरान करने वाली बात यह है कि बिना मशीनों और लैब जांच के मिलावटी दूध की पहचान करना काफी मुश्किल हो गया है। राष्ट्रीय दूध सुरक्षा और गुणवत्ता सर्वेक्षण, 2018 ने हाइड्रोजन पेरोक्साइड, यूरिया और डिटर्जेंट मिले हुए दूध को मानव स्वास्थ्य के लिए असुरक्षित बताया है। आंकड़ों के मुताबिक, भारत में दूध का जितना उत्पादन नहीं होता, उससे ज्यादा खपत होती है। भारत में वर्ष 2013-14 में 14.63 करोड़ टन दुग्ध उत्पादन होता था, जो आज बढ़कर 23.06 करोड़ टन हो गया है। इसमें छह प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से वृद्धि हो रही है, जबकि वैश्विक औसत वार्षिक वृद्धि दो प्रतिशत है। देश में दुग्ध उत्पादन क्षेत्र 68 फीसदी असंगठित है, जिसे सरकारी स्तर पर संगठित बनाने और उत्पादन बढ़ाने के प्रयास जारी हैं। वर्तमान में देश में डेयरी उत्पादन मूल्य 11.16 लाख करोड़ रुपये का है। केंद्रीय पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, देश में मवेशियों की संख्या भी बढ़ी है, खासकर गायों की संख्या, 19.09 करोड़ से बढ़कर 19.30 करोड़ हो गई है। इसी तरह भैंसों की संख्या 10.8 करोड़ से बढ़कर 11 करोड़ हो गई है। पशुपालन एवं डेयरी उद्योग से 12 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार मिला हुआ है। भारत सहित अमेरिका और यूरोप जैसे कई देशों में दूध में मिलावट करने के लिए सख्त कानून हैं। चीन में तो फांसी की सजा का प्रावधान है। यहां खाद्य पदार्थों में, विशेषकर दूध और डेयरी उत्पादों, मिलावट एक गंभीर अपराध माना जाता है। चीन में वर्ष 2008 में मेलामाइन स्कैंडल के बाद सरकार ने कड़े कदम उठाए। इस घोटाले में मिलावटी दूध और पाउडर से हजारों बच्चे बीमार हुए थे, मौतें भी हुई थीं और दोषी पाए गए लोगों को उम्रकैद और फांसी की सजा दी गई थी। दुग्ध उत्पादकों को नैतिक मानकों का पालन करना चाहिए और मोटे मुनाफे के बजाय गुणवत्ता व स्वास्थ्य सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए। इस समस्या के समाधान के लिए नीति-निर्माताओं, नियामकों, डेयरी उद्योग और उपभोक्ताओं के साझा प्रयासों की जरूरत है। मिलावट की विस्तृत शृंखला की सटीक पहचान करने वाली उन्नत परीक्षण तकनीकों का विकास करने पर जोर देना चाहिए। सरकार को खाद्य सुरक्षा के कठोर नियम-कानून लागू करने चाहिए। इसमें फांसी की सजा, उम्रकैद और जुर्माने का प्रावधान शामिल हो। उपभोक्ता जागरूकता व नैतिक व्यवहार को बढ़ावा देकर हम जनस्वास्थ्य की रक्षा करके यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि दूध हमारे आहार का एक सुरक्षित व पौष्टिक हिस्सा बना रहे।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 20, 2025, 06:03 IST
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