Delhi Red Fort Blast: विस्फोट ने छीन लिए कई परिवारों के सहारे, टैटू और फटे कपड़ों से हुई अपनों की पहचान

लाल किले के पास हुए विस्फोट के बाद मची अफरातफरी में परिवारों के पास अपने प्रियजनों की पहचान करने के लिए केवल टैटू, फटे कपड़े और जैकेट जैसे निशान ही बचे थे। सोमवार को राष्ट्री राजधानी में हुए इस विस्फोट ने कई घर उजाड़ दिए। पीड़ितों के परिजन लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल के गलियारों से तब तक चिपके रहे, जब तक कि किसी पहचानने लायक निशान, किसी फटे कपड़े का टुकड़ा या नीली शर्ट ने उनकी सबसे बुरी आशंका की पुष्टि नहीं कर दी। परिवार ने टैटू से की अमर कटारिया की पहचान की पीड़ितों में अमर कटारिया (34 वर्षीय) भी थे, जो चांदनी चौक में फार्मास्यूटिकल व्यवसाय चलाते थे। उनका शरीर बुरी तरह जल चुका था। लेकिन परिवार ने उनके टैटू देखकर उनकी पहचान की। यह टैटू उन्होंने अपने माता-पिता और पत्नी के नाम पर बनवाए थे। कभी प्यार का प्रतीक रहे ये टैटू अब उनकी पहचान का एकमात्र सबूत बन गए। कई अन्य परिवारों के लिए कपड़े ही जीवित और मृत के बीच आखिरी कड़ी बन गए। यह विस्फोट सोमवार शाम लाल किला मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर-1 के पास ट्रैफिक सिग्नल पर एक धीमी गति से चल रही कार में हुआ, जिसमें 12 लोगों की मौत हो गई और कई घायल हुए। ये भी पढ़ें:'यह आत्मघाती हमला नहीं था, घबराहट में विस्फोट को.', दिल्ली बम धमाके को लेकर कई बड़े खुलासे नीली शर्ट और जैकेट से की मृतक की पहचान मोहम्मद जुनमन (35 वर्षीय) के चाचा इदरीस पूरी रात उनकी तलाश करते रहे। जुनमन ई-रिक्शा चलाकर चांदनी चौक की गलियों में यात्रियों को लाते-जाते थे। सोमवार रात करीब नौ बजे उनका जीपीएस सिग्नल बंद हो गया। इदरीस ने बताया, पुलिस ने अस्पताल जाने को कहा, लेकिन लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में वह नहीं मिले। चार शव दिखाए गए, जिनकी पहचान नहीं हो सकी। जब परिवार शास्त्री पार्क थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवा रहा था, तभी एक कॉल आई कि एक शव मिला है, पहचान के लिए आइए। इदरीस ने कहा, कुछ अंग गायब थे, पैर नहीं थे। लेकिन हमने नीली शर्ट और जैकेट से जुनमन को पहचान लिया। उन्होंने कहा, जुनमन अपने परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे। उनकी पत्नी शारीरिक रूप से अक्षम हैं और सोमवार रात से उनके शव के पास बैठी रहीं। उन्होंने कहा, तीन बच्चे हैं। अब कोई नहीं बचा जो उनका सहारा बने। ये भी पढ़ें:क्या दिल्ली में बिगड़ी 'व्हाइट कॉलर' टेरर की टाईमिंग, 'अफगानिस्तान' ब्लास्ट तकनीक में 'चूक' कहां परिवार का एकमात्र सहारा था पंकज साहनी पंकज साहनी (30 वर्षीय) के परिवार भी रात को चिंतित हो गया, जब उनके पिता राम बालक साहनी ने टीवी पर रात साढ़े नौ बजे विस्फोट की खबर देखी। पंकज सोमवार शाम साढ़े पांच बजे एक ग्राहक को पुरानी दिल्ली छोड़ने निकले थे। उन्होंने बताया, मैंने उन्हें कॉल की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। फोन बंद था। हम मौके पर पहुंचे। पूरा इलाका अफरातफरी में था। जब पुलिस ने पूछा कि पंकज क्या पहने थे, तो उन्होंने बताया- शर्ट और नीली जींस। इसके बाद उन्हें लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल बुलाया गया। उन्होंने कहा, मुझे लगा घायल वार्ड में ले जाया जाएगा, लेकिन वो हमें शवगृह में ले गए। मेरे रिश्तेदार ने अंदर जाकर पंकज की पहचान की। पंकज की कार पास ही मलबे में मिली। वह ही परिवार का एकमात्र सहारा था। अब गाड़ी भी खत्म, बेटा भी चला गया। लाल किले के पास की गलियों में अब भी जले हुए धातु की गंध और फटे कपड़ों के टुकड़े बिखरे हैं। कई लोगों के लिए, टैटू और कपड़ों जैसे साधारण निशान अब अपनों की आखिरी याद बन गए हैं। विस्फोट ने न केवल धातु और कांच को तोड़ा, बल्कि परिवारों को भी चकनाचूर कर दिया।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Nov 11, 2025, 20:46 IST
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