मुद्दा: मौतें और सवाल, धरातल पर नहीं बदले हाल
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की विशेष पीठ ने दायर एक याचिका पर निर्देश देते हुए कहा, हम आदेश देते हैं कि दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बंगलूरू और हैदराबाद जैसे सभी महानगरों में सीवर की मैनुअल सफाई और मैला ढोने का काम बंद किया जाए। यह निर्देश 29 जनवरी, 2025 को दिया गया था। इसके बावजूद सीवर एवं सेप्टिक टैंकों की हाथों से न सिर्फ सफाई बदस्तूर जारी है, बल्कि सीवर के मैनहोल में धंसने से सफाई करने वाले अपनी जान भी गंवा रहे हैं। देश की राजधानी में पिछले 15 वर्षों में 100 से अधिक मौतें हो चुकी हैं और सिर्फ एक दोषी व्यक्ति को ही सजा हो पाई है, पिछले दो महीनों में ही दिल्ली की पॉश कॉलोनियों में हाथ से सफाई और बिना उपकरण के मरने वालों की संख्या डेढ़ दर्जन के करीब है। सामाजिक न्याय राज्य मंत्री रामदास आठवले ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा है कि इस योजना में पंजीकृत 54,574 मान्य सीवर और सेप्टिक टैंक श्रमिकों में 37,060 अनुसूचित जाति वर्ग से हैं। इसके अतिरिक्त, 15.73 फीसदी श्रमिक अन्य पिछड़ा वर्ग से और 8.31 फीसदी जनजाति से हैं। भारत को मैनुअल स्कैवेंजिंग मुक्त घोषित करने की सीमा रेखा के समय देश के 766 जिलों में से एक तिहाई अब भी इस खतरनाक और अस्वास्थ्यकर प्रथा से बाहर नहीं निकल पाए हैं। सामाजिक न्याय मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश के लगभग 246 जिलों में न तो खुद को मैनुअल स्कैवेंजिंग मुक्त घोषित किया है और न ही केंद्र के मोबाइल एप पर मौजूदा अस्वास्थ्यकर शौचालयों और मैनुअल सफाई का विवरण अपलोड किया है। पिछली लोकसभा में सामाजिक न्याय मंत्रालय की संसदीय समिति ने सीवर सफाई में हुई मौतों के लिए मुआवजे में देरी पर भी सवाल उठाए हैं। लगभग 104 मृतकों के परिवारों को मुआवजा सुनिश्चित करने में विफल रहने के लिए सरकार की भी खिंचाई की है। समिति ने एक प्रणाली स्थापित करने की भी सिफारिश की है, ताकि सफाई कर्मियों की मौत के दोषियों को भी जिम्मेदार ठहराया जा सके और निर्धारित मानदंडों का उल्लंघन करने पर जुर्माना भी लगाया जा सके। विभिन्न राज्य सरकारों और नगर निगम, नगर पालिकाओं की रिपोर्ट के मुताबिक, 973 लोगों की मृत्यु मामलों में उन व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है, जो सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई के लिए लोगों को नियुक्त करने और मानदंडों का उल्लंघन करने के लिए प्रथम दृष्टया जिम्मेदार हैं। हाथ से मल सफाई के रूप में रोजगार का निषेध और उसका पुनर्वास अधिनियम 2013 खतरनाक सफाई पर रोक लगाता है, लेकिन सीवर और सेप्टिक टैंक की मैनुअल सफाई पर कोई विशेष प्रतिबंध नहीं है। कानून में 44 प्रकार के सुरक्षात्मक गियर निर्दिष्ट किए गए हैं, जिनमें सांस मास्क, गैस मॉनिटर और पूरे शरीर को ढकने वाला वेदर सूट शामिल है। इन हादसों में पुलिस की निष्क्रियता भी चिंताजनक है। रिकॉर्ड बताते हैं कि कुल मिलाकर 1993 अधिनियम के पारित होने के बाद भी राजधानी दिल्ली में सीवर में होने वाली 116 मौतों की संख्या राष्ट्रीय स्तर पर पांचवें स्थान पर है, जबकि हाथ से सफाई पर जहां संपूर्ण प्रतिबंध है। देश में लगभग 11,000 से अधिक लोग मैला सफाई के कार्य में लगे हैं। राजधानी में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान होने वाली मौतें किसी हत्या से कम नहीं हैं। आवासीय कार्यालय परिसरों के सीवर एवं सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिए ठेकेदारों द्वारा 400-500 रुपये के लालच में अकुशल सफाई कर्मचारियों को बिना बेल्ट मास्क, टॉर्च और अन्य बचाव उपकरणों के ही 10-15 मीटर गहरे टैंकों में उतार कर सफाई प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है। रोजगार के अभाव में सफाई कर्मचारी अपनी जान पर खेलकर उन गैस चैंबरों में उतरने का जोखिम उठाते हैं, जहां हाई बार अमोनिया, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड आदि जहरीली गैसों से उनकी मौत हो जाती है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, हर पांचवें दिन एक सफाई कर्मचारी मौत का ग्रास बनता है। तमाम तकनीकी उपलब्धियों के बावजूद सीवर एवं सेप्टिक टैकों की सफाई में मशीनरी का इस्तेमाल नहीं हो रहा है। 2021 के आंकड़ों के अनुसार, देश में शुष्क शौचालयों की संख्या 26 लाख है। करीब 14 लाख शौचालयों का अपशिष्ट खुले में प्रवाहित किया जाता है, जिसमें आठ लाख से ज्यादा शौचालयों के मलों की सफाई हाथों से की जाती है। हालांकि, हाथ से मैला सफाई की व्यवस्था समाप्त करने के लिए 1.25 लाख करोड़ रुपये की लागत से नेशनल एक्शन प्लान तैयार किया गया है, जिसके तहत 500 शहरों समेत बड़ी ग्राम पंचायतों में भी सफाई के लिए हाईटेक मशीनों का इस्तेमाल किया जाना है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Oct 29, 2025, 07:13 IST
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