नजरिया: क्या अमेरिका और चीन युद्ध की कगार पर हैं, नाजुक मोड़ पर जरूरी है सकारात्मक संवाद
छब्बीस मई, 2023 को एक अमेरिकी वायुसैनिक विमान दक्षिण चीन सागर के ऊपर नियमित जासूसी मिशन पर था, तभी एक चीनी लड़ाकू विमान खतरनाक तरीके से उसके करीब आ गया था। अभी कुछ महीने पहले इसी जल क्षेत्र में एक अमेरिकी सैन्य विमान को उस समय बचाव की कार्रवाई करनी पड़ी थी, जब एक चीनी लड़ाकू विमान 20 फुट के दायरे में आ गया था। हाल के वर्षों में चीन, अमेरिका और उसके सहयोगियों की वायु और नौसेना बलों के बीच इस तरह के जोखिम भरे व्यवधान और असुरक्षित मुठभेड़ों में वृद्धि हुई है। अगस्त में चीन ने वीडियो फुटेज जारी कर दावा किया कि ताइवान जलडमरूमध्य में चीनी और अमेरिकी हेलिकॉप्टर टकराने से बाल-बाल बचे थे। दक्षिण चीन सागर में चीन और फिलीपीन के जहाजों के बीच क्षेत्रीय टकराव आम बात हो गई है। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने कहा था कि एक चीनी लड़ाकू विमान ने ऑस्ट्रेलियाई वायुसेना के एक विमान के बेहद करीब जाकर फ्लेयर्स (चमक छोड़ने वाली चीज) छोड़े। इनमें से किसी भी घटना के वास्तविक संघर्ष में बदल जाने का इतना जोखिम पूर्व में कभी नहीं रहा। फिर भी, अमेरिका-सोवियत टकराव के दौर के बिल्कुल उलट अमेरिकी और चीनी सैन्य बलों के बीच किसी अनजाने संकट को शांत करने के लिए रियल टाइम में संवाद की कोई विश्वसनीय प्रणाली मौजूद नहीं है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दक्षिण कोरिया में होने वाले क्षेत्रीय शिखर सम्मेलन से इतर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से इसी हफ्ते मिलने की योजना है। वह पहले स्पष्ट कर चुके हैं कि उनकी प्राथमिकता में चीन के साथ व्यापार समझौता है। लेकिन, व्यापार शांति और स्थिरता पर निर्भर करता है। चीन के साथ टिकाऊ संकट-प्रबंधन प्रणालियों की नींव रखकर ट्रंप एक ऐसे राष्ट्रपति के रूप में अपनी विरासत को सुरक्षित कर सकते हैं, जिन्होंने दोनों महाशक्तियों को तीसरे विश्वयुद्ध के कगार से वापस खींच लिया। इतिहास गवाह है कि महाशक्तियों के बीच टकराव कितनी जल्दी परमाणु महायुद्ध की ओर बढ़ सकता है। 1962 का क्यूबा मिसाइल संकट शायद इसका सबसे भयावह उदाहरण है। अमेरिका और चीन भी खतरनाक रूप से युद्ध के बेहद करीब दिख रहे हैं। वर्ष 2001 में अमेरिकी नौसेना का एक गुप्तचर विमान दक्षिण चीन सागर में चीनी लड़ाकू विमान से टकरा गया था। इसमें चीनी पायलट की मौत हो गई, जबकि अमेरिकी विमान को चीन के हैनन द्वीप पर आपात लैंडिंग करनी पड़ी, जहां चालक दल को बंधक बना लिया गया था। परिणामस्वरूप चीनी और अमेरिकी सरकार के बीच हुई उच्चस्तरीय कूटनीति वार्ताओं के बाद दस दिन में नाजुक संकट का समाधान हो सका। वर्तमान में इस तरह का संकट समाधान दोहराया जा सकेगा या नहीं, यह अनिश्चित है। 2001 की तुलना में चीन कई गुना मुखर और सैन्य रूप से ताकतवर है तथा तनाव भी पहले की अपेक्षा ज्यादा है, जो दोनों पक्षों पर राष्ट्रवादी दबावों के कारण और भी बढ़ गया है। अमेरिका और सोवियत संघ के बीच परिस्थिति बिल्कुल अलग थी। हालांकि, वे एक-दूसरे के कट्टर वैचारिक विरोधी थे, फिर भी उनमें विश्वसनीय नियंत्रण और संतुलन स्थापित करने की समझ थी। वे मिसाइल प्रक्षेपण से पहले एक-दूसरे को सूचित करते और पारदर्शिता की कुछ शर्तों पर सहमति जताते थे, ताकि दोनों पक्ष यह जान सकें कि दूसरे पक्ष की गतिविधियां अभ्यास हैं, हमले नहीं। इस प्रकार दोनों ही पक्ष टकराव की आशंका को कम करने के लिए बनाए गए सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन किया करते थे। तनाव बढ़ने पर भी ये सुरक्षा उपाय लागू रहे। बीते कुछ वर्षों में चीन और अमेरिका के बीच मामूली सैन्य संपर्क रहा है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, जिससे सोवियत संघ जैसी विश्वसनीय सुरक्षा प्रणालियां विकसित हो सकें। चीन ने नाराजगीवश बार-बार सभी सैन्य आदान-प्रदान बंद किए हैं, जिसका सबसे ताजा उदाहरण 2022 में तत्कालीन प्रतिनिधि सभा अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद मिलता है। राष्ट्रपति जो बाइडन और शी जिनपिंग 2023 में सैन्य वार्ता पुनर्स्थापित करने पर सहमत हुए थे। लेकिन यह समझौता बाइडन के कार्यकाल के अंतिम दौर में हुआ, जिससे वह अपनी जड़ें पूरी तरह से नहीं जमा सका। संवाद अब भी दुविधा में और अपर्याप्त है, जिसमें शीर्ष सरकारी या सैन्य अधिकारियों के बीच कभी-कभार फोन कॉल और अन्य छिटपुट बातचीतें शामिल हैं। इस नाजुक ढांचे पर हवा और समुद्र में संभावित दुर्घटनाओं को तुरंत शांत करने के लिए भरोसा नहीं किया जा सकता है। पिछले महीने अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने चीनी रक्षा मंत्री डोंग जून को फोन किया, जो ट्रंप प्रशासन द्वारा इस सैन्य कमजोरी को दूर करने की दिशा में पहला वास्तविक कदम था। लेकिन एक-दो फोन कॉल और हॉटलाइन स्थापित करने जैसे अनुमानित उपाय पर्याप्त नहीं हैं। 2001 के संकट के दौरान अमेरिकी राजदूत जो प्रूहर चीन के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों से संपर्क भी नहीं साध सके थे और कहा, उन्होंने मेरे फोन कॉल का जवाब नहीं दिया। और जैसा कि पूर्व उपविदेश मंत्री कर्ट कैंपबेल का कहना है कि हॉटलाइन का उपयोग करने में चीन की पिछली अनिच्छा का मतलब अमेरिका के लिए खतरनाक हो सकता है। मगर हाल ही में चीन ने नए सिरे से बातचीत करने की तत्परता का संकेत दिया है। एक चीनी सैन्य प्रवक्ता ने सितंबर के अंत में सुझाव दिया था कि बीजिंग अधिक स्थिरता के नाम पर अमेरिका के साथ घनिष्ठ सैन्य संबंध बनाने के लिए खुला है। शी जिनपिंग ने खुद 2017 में संयुक्त सेना प्रमुखों के अध्यक्ष डनफोर्ड से कहा था कि सैन्य संबंध व्यापक चीन-अमेरिका संबंधों में एक स्थिरकारी शक्ति का काम कर सकते हैं। उस समय वह सही थे तथा यह बात हर गुजरते दिन के साथ और भी प्रासंगिक होती जा रही है। राष्ट्रपति ट्रंप को नियमित, निरंतर और रियल टाइम सैन्य संपर्क की एक प्रणाली बनाकर इस गति को और आगे बढ़ाना चाहिए। यह युद्ध और शांति के बीच का अंतर हो सकता है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Oct 29, 2025, 07:08 IST
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