Delhi Riots: दिल्ली पुलिस का कोर्ट में दावा- शरजील ने सहयोगियों के साथ चरणबद्ध तरीके से दिया दंगे को अंजाम
दिल्ली दंगे की साजिश रचने के आरोपियों शरजील इमाम समेत 10 लोगों की जमानत दिल्ली हाईकोर्ट से खारिज हो गई है। सुनवाई के दौरान पुलिस कोर्ट के समक्ष दावा किया कि आरोपियों ने चार चरणों में दिल्ली दंगे को अंजाम दिया। यह अचानक हुई घटना नहीं बल्कि इसे योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया। न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की बेंच ने शरजील समेत नौ लोगों की जमानत याचिका खारिज की। वहीं इसी मामले में आरोपी तसलीम अहमद की याचिका हाईकोर्ट की एक अलग बेंच ने खारिज की। अभियोजन पक्ष के अनुसार, दंगे नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के विरोध में एक गहरी साजिश का नतीजा थे। इनमें 54 लोगों की मौत हुई, जिसमें एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारी भी शामिल थे। 1500 से अधिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचा। साजिश को चार चरणों में बांटा गया : पहला चरण (दिसंबर 2019): व्हाट्सएप ग्रुप्स जैसे मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑफ जेएनयू (एमएसजे), दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप (डीपीएसजी) आदि का गठन किया गया जिनका उद्देश्य दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में 24 घंटे धरना शुरू करना था। दूसरा चरण (दिसंबर 2019-फरवरी 2020): छात्र संगठनों और व्यक्तियों की भागीदारी, भड़काऊ भाषण, सीएए/एनआरसी के खिलाफ मुस्लिम बहुल इलाकों में पर्चे बांटना, जामिया मिलिया इस्लामिया, शाहीन बाग और उत्तर-पूर्व दिल्ली में दंगे की शुरुआत करना। तीसरा चरण (जनवरी-फरवरी 2020): इस दौरान आरोपियों ने साजिशकारी बैठकें आयोजित की, जिसके बाद हथियार, एसिड, पेट्रोल बम, लाठियां आदि जमा करना, हिंसा की तैयारी शुरू कर दी गई। जिसके तहत उत्तरी पूर्वी दिल्ली में अलग-अलग स्थानों पर हथियार इकठ्ठा किए गए। चौथा चरण (फरवरी 2020): चक्का जाम, आवश्यक सेवाओं में बाधा, सीसीटीवी हटाना, जिसके परिणामस्वरूप फरवरी 2020 के दंगे हुए। अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि यह साधारण विरोध नहीं, बल्कि राष्ट्रव्यापी प्रभाव वाली सुनियोजित साजिश थी, जिसका उद्देश्य सांप्रदायिक तनाव बढ़ाना था। लंबे समय जेल में रहना जमानत के लिएसार्वभौमिक रूप से लागू नहीं होता हाईकोर्ट ने आदेश में कहा, अभियुक्त को जमानत देने के लिए पहले से जेल में बिताई अवधि और मुकदमे में देरी का आधार सभी मामलों में सार्वभौमिक रूप से लागू नहीं होता है। जमानत देने या न देने का विवेकाधिकार सांविधानिक अदालत के पास है, यह हर मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। पीठ ने कहा, जमानत पर फैसला करते वक्त अदालतों को पीड़ितों व उनके परिवारों के अलावा, बड़े पैमाने पर समाज के हित और सुरक्षा जैसे कारकों पर विचार करना चाहिए। सह आरोपियों के साथ समानता की याचिका भी खारिज अदालत ने सह-आरोपियों आसिफ इकबाल तन्हा, देवांगना कलिता और नताशा नरवाल के साथ समानता की याचिका को भी खारिज कर दिया। इन्हें हाईकोर्ट की समन्वय पीठ ने जमानत दी थी। साजिश में इमाम और खालिद की भूमिका को प्रथम दृष्टया गंभीर बताया गया क्योंकि उन्होंने मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को बड़े पैमाने पर लामबंद करने के लिए सांप्रदायिक आधार पर भड़काऊ भाषण दिए। इसके विपरीत, हालांकि तीनों सह आरोपी षड्यंत्रकारी बैठकों में मौजूद थे और व्हाट्सएप ग्रुप के सदस्य थे, फिर भी इन अपीलकर्ताओं के साथ तुलना करने पर उनकी भूमिका सीमित थी। पीठ ने कहा, इसलिए, समानता का तर्क नहीं दिया जा सकता। इनकी जमानत की गई खारिज शरजील इमाम अथर खान अब्दुल खालिद सैफी उमर खालिद मोहम्मद सलीम खान शिफा उर रहमान मीरन हैदर गुलफिशा फातिमा शादाब अहमद तसलीम अहमद अपीलकर्ताओं की दलीलें सभी अपीलकर्ताओं ने मुख्य रूप से ट्रायल में देरी और लंबी हिरासत को आधार बनाया। उन्होंने कहा कि वे लंबे समय से हिरासत में हैं और ट्रायल के जल्द खत्म होने के आसार नहीं है। क्योंकि अभियोजन पक्ष 800-900 गवाहों की जांच कराना चाहता है। यह अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। अपीलकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया, जैसे यूनियन ऑफ इंडिया बनाम के.ए. नजीब, शेख जावेद इकबाल बनाम यूपी राज्य आदि, जहां लंबी हिरासत पर जमानत दी गई। उन्होंने कहा कि गंभीर आरोपों के बावजूद, ट्रायल की देरी जमानत का आधार बन सकती है। राज्य की दलीलें सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, एएसजी चेतन शर्मा और स्पेशल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर अमित प्रसाद ने कहा कि यूएपीए की धारा 43डी(5) के तहत जमानत पर प्रतिबंध है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Sep 03, 2025, 05:49 IST
Delhi Riots: दिल्ली पुलिस का कोर्ट में दावा- शरजील ने सहयोगियों के साथ चरणबद्ध तरीके से दिया दंगे को अंजाम #CityStates #DelhiNcr #Delhi #DelhiRiots #DelhiPolice #SubahSamachar