Hisar News: जीजेयू से प्रतिदिन निकलने वाले 665 किलो कचरे से बन रही खाद

हिसार। गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय (जीजेयू) परिसर से हर दिन करीब 665 किलो कचरा निकलता है। इसमें अकेले 49 प्रतिशत कचरा बचे हुए खाद्य पदार्थ का है। इसके अलावा 8.7 प्रतिशत पेपर और 7.3 प्रतिशत प्लास्टिक वेस्ट है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने कंपोस्ट बनाकर इस कचरे का सदुपयोग शुरू किया है। बता दें कि यूनिसेफ व अमर उजाला की ओर से ऑनलाइन कार्यशाला आयोजित की थी, जिसके बाद से अमर उजाला पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे लोगों को सामने ला रहा है। वर्ष 2016 में सरकार ने गाइडलाइन जारी की जिसके मुताबिक प्रतिदिन 100 किलो से अधिक कचरा निकालने वाले संस्थानों को कचरा प्रबंधन स्वयं ही करना होगा। वर्ष 2018 में गुरु जंभेश्वर यूनिवर्सिटी (जीजेयू) के अलावा हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (एचएयू) और लाला लाजपतराय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास) में भी कचरा व इसके प्रबंधन पर एक अध्ययन कराया गया। जीजेयू के पर्यावरण विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. राजेश कुमार लोहचब व रिसर्च स्कालर कुलदीप ने करीब एक साल में अध्ययन को पूरा किया। इस दौरान यह बात सामने आई कि जीजेयू में ही हर दिन करीब 665 किलो कचरा निकलता है। डॉ. राजेश के अनुसार सबसे अधिक 798 किलो प्रतिदिन कचरा अगस्त महीने में निकला, क्योंकि इस महीने विश्वविद्यालय के सभी विभागों में नामांकन प्रक्रिया चल रही थी। इसके चलते परिसर में बच्चों की सर्वाधिक उपस्थित रही। शिक्षकों के अलावा हॉस्टल में भी छात्र-छात्राओं की संख्या पूरी थी। जबकि सबसे कम कचरा जून में 421 किलोग्राम प्रतिदिन निकला। इस महीने विश्वविद्यालय में अवकाश के चलते बहुत कम लोगों का आवागमन रहा।आधा कचरा अकेले खाद्य अपशिष्ट कापरिसर में प्रतिदिन निकलने वाले कुल कचरे का 49 प्रतिशत हिस्सा अकेले खाद्य अपशिष्ट का है, जिसमें कैंटीन में छोड़े गए खाने के अलावा परिसर में रहने वाले कर्मचारियों व हॉस्टल में रहने वाले छात्र-छात्राओं के कमरों में बचा खाना भी शामिल है। खाद्य अपशिष्ट फैलाने में 60 प्रतिशत छात्र और 39 प्रतिशत शिक्षक जिम्मेदार हैं। इसके अलावा 12.3 प्रतिशत पॉलीथिन, 8.7 प्रतिशत पेपर और 7.3 प्रतिशत प्लास्टिक शामिल है। इसके अलावा 5.06 प्रतिशत कार्डबोर्ड, 3 प्रतिशत कपड़े का कचरा भी शामिल है।परिसर को हरा-भरा करने में इस्तेमाल हो रही खाद डॉ. राजेश के इस अध्ययन ने विश्वविद्यालय को कचरा प्रबंधन में काफी मदद दी। परिसर में पेड़-पौधों की अधिकता के चलते हरी व सूखी पत्तियां भी बहुतायत से मिलती हैं। इसीलिए विश्वविद्यालय ने खुद का कम्पोस्ट प्लांट लगा लिया। अब यहीं अधिकांश कचरे का निस्तारण कर दिया जाता है। केवल केमिकल व मेडिकल बायोवेस्ट एक निजी कंपनी को दिया जाता है। यहां तैयार खाद का प्रयोग परिसर में लगे पेड़ पौधों में ही किया जाता है, जिससे उन्हें पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व भी मिल रहे हैं और परिसर भी साफ सुथरा बना हुआ है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 12, 2023, 23:45 IST
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