एक और कीर्तिमान: सबसे वजनी उपग्रह का प्रक्षेपण वाकई ऐतिहासिक, मिल सकेगा जरूरी आत्मविश्वास
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का अपने सबसे बड़े प्रक्षेपण यान एलवीएम-3 का उपयोग करके नौसेना के संचार उपग्रह जीसैट-7 आर (सीएमएस-03) को अंतरिक्ष में भेजना इसलिए ऐतिहासिक है, क्योंकि यह पहली ही बार है, जब वह चार हजार किलोग्राम से अधिक वजन वाले उपग्रह को भारत की जमीन से सुदूर भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा (जीटीओ) में स्थापित करेगा। और, शायद यही इसे 'बाहुबली' नाम देने की वजह भी है। उल्लेखनीय है कि इसरो ने 2019 में नौसेना के लिए इस उपग्रह के विकास के लिए एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे, जो 2013 में प्रक्षेपित किए गए जीसैट-7 रुक्मिणी की जगह लेगा। यह मिशन इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह समुद्री क्षेत्र में संचार में सुधार की भारत की क्षमता में विकास का संकेत है। यह प्रक्षेपण एलवीएम -3 रॉकेट की बढ़ती क्षमता की दिशा में भी एक मील का पत्थर है, क्योंकि अब तक इसरो अपने भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण का ठेका दूसरे देशों की निजी अंतरिक्ष एजेंसियों को देता आया है। लिहाजा यह अंतरिक्ष क्षेत्र में केवल एक और उपलब्धि नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के उस विजन की ओर बढ़ते भारतीय कदमों का भी प्रतीक है, जिसके तहत वह अपने संचार नेटवर्क, रक्षा व आपदा ढांचे को स्वदेशी तकनीक के सहारे सुदृढ़ बना रहा है। दिलचस्प बात यह भी कि इसी एलवीएम रॉकेट के विकसित संस्करण का उपयोग इसरो के महत्वाकांक्षी गगनयान मिशन के तहत मनुष्यों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए भी किया जाएगा। इसरो की यह उपलब्धि चंद्रयान-3 और मंगलयान जैसी सफलताओं की विरासत को आगे बढ़ाती है, जो 1975 में आर्यभट्ट उपग्रह से शुरू होकर आज विश्वस्तरीय क्षमताओं तक पहुंच चुकी है। श्रीहरिकोटा का लॉन्चपैड, जो कभी रेतीले तट का हिस्सा था, आज वैश्विक अंतरिक्ष शक्ति का प्रतीक बन चुका है, तो यह हमारे वैज्ञानिकों की मेधा और सीमित संसाधनों में उल्लेखनीय परिणाम हासिल करने के जज्बे का ही नतीजा है। हॉलीवुड फिल्म ग्रेविटी के बजट से भी कम में मंगलयान मिशन की कामयाबी इसका ही प्रमाण था। अब इसरो गगनयान के प्रक्षेपण की तैयारियां कर रहा है। 2035 तक अंतरिक्ष में भारत के अपने स्टेशन और 2040 तक चंद्रमा पर पहला भारतीय भेजने की भी योजना है। ऐसे में, ताजा कामयाबी वैश्विक अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत के एक शक्ति बनने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, जिससे आगामी मिशनों के लिए जरूरी आत्मविश्वास भी मिलेगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह कामयाबी देश की अंतरिक्ष ताकत को बढ़ाने के साथ अधिकाधिक युवाओं को इस क्षेत्र में आने या वे जिस भी क्षेत्र में हों, वहां कुछ बेहतर रचने के लिए प्रेरित करेगी।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 03, 2025, 08:25 IST
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