Rare Diseases: देशभर में दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित 400 से ज्यादा बच्चों का जीवन दान के भरोसे

देश में दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित 400 से भी ज्यादा बच्चों का जीवन दान के भरोसे है। लाखों-करोड़ों रुपये में इनका इलाज होना है और जीवन भर इन्हें विभिन्न चिकित्सा प्रक्रियाओं से गुजरना है।काफी समय पहले केंद्र सरकार ने दुर्लभ बीमारियों से ग्रस्त इन बच्चों का जीवन बचाने के लिए ऑनलाइन क्राउडफंडिंग जुटाना शुरू किया लेकिन आंकड़े बताते हैं कि 80 करोड़ में से अब तक सरकार इनके लिए दो लाख रुपये ही एकत्रित कर पाई है। स्वास्थ्य मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार, दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित रोगियों को दो तरह की सेवा दी जा रही है। एक राष्ट्रीय नीति 2021 के तहत इन्हें 50 लाख रुपये तक की मदद की जा रही है और दूसरी सेवा क्राउडफंडिंग से जुड़ी है जिसके लिए मंत्रालय के अधीन एक ऑनलाइन प्लेटफार्म बीते वर्ष शुरू किया था। इसी के तहत, देश के 10 अलग-अलग अस्पतालों में पंजीकृत कुल 429 दुर्लभ बीमारियों से ग्रस्त बच्चों के उपचार में 80 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होना है। अब तक 250 दाताओं की ओर से कुल 213,008 रुपये की राशि एकत्रित हुई है। हालांकि आंकड़े देखें जाएं तो प्राप्त राशि अस्पतालों से दिए गए कुल खर्च की तुलना में एक मरीज की उपचार राशि के बराबर भी नहीं है। मदद के अभाव इलाज शुरू नहीं रेयर डिजीज इंडिया फाउंडेशन के निदेशक सौरभ सिंह ने बताया, दुर्लभ राेगियों का जीवन काफी कठिनाइयों से गुजर रहा है। सरकार ने क्राउडफंडिंग जुटाना शुरू कर दिया लेकिन साल भर से भी ज्यादा समय में अब तक केवल दो लाख रुपये इकट्ठा कर पाए हैं। क्राउडफंडिंग लेते समय यह तय हुआ था कि प्राइवेट कंपनियों से इसके लिए अपील की जाएगी लेकिन अब तक एक भी कंपनी सीएसआर के माध्यम से इसमें शामिल नहीं हुई है। सरकार ने देश भर में 10 अस्पतालों को सेंटर फॉर एक्सीलेंस का दर्जा दिया है लेकिन आर्थिक मदद के अभाव में इन बच्चों का इलाज शुरू नहीं हो पाया है। मदद मांगते-मांगते थका, अब भरोसा नहीं जब सरकार ने हम जैसों के लिए क्राउड फंड जुटाना शुरू किया तो मुझे काफी खुशी हुई, लेकिन आज साल भर बाद मुझसे जब भी कोई उसके बारे में पूछता है तो मैं मायूस हो जाता हूं। मेरे पास कोई शब्द नहीं है। मैं मूलरुप से गुजरात के गांधी नगर का निवासी हूं और मुझे दुर्लभ रोग पोम्पे है। 1982 में जन्म से यह बीमारी है तब से परिवार मदद मांगकर इलाज करा रहा है। मुंबई के किंग एडवर्ड मैमोरियल अस्पताल ने इलाज पर 3.70 करोड़ रुपये का खर्च बताया है। मैं अब मदद मांगते मांगते थक गया हूं । अब मुझे भरोसा नहीं रहा। - दिलीप सोलंकी, पोम्पे दुर्लभ रोगी एक मैसेज तक नहीं आया मैंने क्राउडफंडिंग के लिए पंजीयन कराया था। मेरे पास आज तक एक भी मैसेज नहीं आया है और न कोई फोन कॉल। मुझे स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी की बीमारी है। इसने मेरी रीड़ की हड्डी में नर्व सेल्स को खराब कर दिया है। दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज ने 6.70 करोड़ रुपये का खर्च बताया है। मैं हर दिन अपने बेबस पिता और आंखों में आंसू लिए मां को देख दुखी होता हूं लेकिन मैं कर भी क्या सकता हूं - अनुभव पाल, स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी रोगी हाईकोर्ट की फटकार के बाद भी आदेश पर अब तक अमल नहीं बीते सप्ताह दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सरकार के इस क्राउडफंडिंग सिस्टम पर सवाल खड़े किए थे। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा था कि केवल वेबसाइट बनाकर ही सरकार की जिम्मेदारी पूरी नहीं होती है। दुर्लभ बीमारियों से पीड़ितों के लिए इस क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म का प्रचार-प्रसार किया जाए ताकि इसके बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को जानकारी मिल सके। सौरभ का कहना है कि आदेश जारी होने के बाद भी अब तक इस पर संज्ञान नहीं है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 03, 2023, 05:35 IST
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