IISc Bengaluru: मंगल जैसी कठिन परिस्थितियों में भी जीवित रही बेकरी यीस्ट, भारतीय वैज्ञानिकों की बड़ी खोज
भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) बंगलूरू और फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (पीआरएल) अहमदाबाद के वैज्ञानिकों ने एक अनोखा प्रयोग कर यह साबित कर दिया है कि पृथ्वी की साधारण बेकरी यीस्ट मंगल ग्रह जैसी अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों झटकेदार तरंगों और विषैले लवणों को भी झेल सकती है। यह खोज न केवल मंगल पर जीवन की संभावना को नए सिरे से परिभाषित करती है, बल्कि भारत को अंतरिक्ष जैव-विज्ञान (एस्ट्रोबायोलॉजी) अनुसंधान में वैश्विक मानचित्र पर एक नई पहचान देती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि आम आदमी जिस यीस्ट (खमीर) का उपयोग ब्रेड, बीयर या जलेबी बनाने में करते हैं, वही सैकरोमाइसीज सेरेविसिया वैज्ञानिकों के लिए अंतरिक्ष में जीवन की संभावना समझने का आश्चर्यजनक रूप से एक मॉडल जीव बन गया। पीआरएल में बनाए गए हाई-इंटेंसिटी शॉक ट्यूब (एचआईएसटीए) यंत्र के माध्यम से वैज्ञानिकों ने ध्वनि की गति से लगभग 5.6 गुना तेज झटकेदार तरंगें उत्पन्न कीं। यीस्ट की कोशिकाओं को पहले 100 मिलीमोलर सोडियम पर्क्लोरेट में डुबोया गया और फिर उन पर इन शॉक तरंगों का प्रभाव डाला गया। कुछ नमूनों को केवल झटके दिए गए, कुछ को केवल लवणों में रखा गया, जबकि कुछ को दोनों परिस्थितियों में एक साथ रखा गया ताकि यह पता लगाया जा सके कि वे किस हद तक जीवित रह पाती हैं। इतनी कठोर परिस्थितियों के बावजूद यीस्ट की कोशिकाएं जीवित रहीं, हालांकि उनकी वृद्धि दर धीमी हो गई। शोध में पाया गया कि तनाव की स्थिति में यीस्ट अपनी कोशिकाओं के भीतर राइबो न्यूक्लियोप्रोटीन कंडेन्सेट्स बनाती हैं। सूक्ष्म संरचनाएं जो कोशिका के अंदर मौजूद आरएनए और प्रोटीन को पुनर्गठित करके उन्हें क्षति से बचाती हैं। जब वैज्ञानिकों ने ऐसे उत्परिवर्ती यीस्ट का परीक्षण किया जो ये संरचनाएं नहीं बना सकते थे, वे तुरंत नष्ट हो गए। इससे सिद्ध हुआ कि यही संरचनाएं यीस्ट के जीवित रहने की कुंजी हैं। भारत की नई पहचान भविष्य के लिए उपयोगी यह उपलब्धि भारत के लिए गर्व का विषय है, क्योंकि यह प्रयोग न केवल तकनीकी रूप से जटिल था बल्कि अंतरिक्ष जीवन विज्ञान में भारत के बढ़ते योगदान का भी प्रतीक है। यह अध्ययन यह समझने में मदद करेगा कि सूक्ष्मजीव अत्यधिक भौतिक और रासायनिक तनावों का सामना कैसे करते हैं और भविष्य में अंतरिक्ष में भोजन उत्पादन या जैविक पुनर्चक्रण तंत्र विकसित करने में कैसे सहायक हो सकते हैं।यह खोज इस बात का प्रमाण है कि जीवन की अनुकूलन क्षमता हमारी कल्पना से कहीं अधिक गहरी है। यदि पृथ्वी की एक सामान्य यीस्ट मंगल जैसी चरम परिस्थितियों में जीवित रह सकती है, तो यह संकेत है कि ब्रह्मांड के किसी कोने में जीवन के बीज शायद पहले से मौजूद हों, बस हमें उन्हें पहचानना सीखना है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Oct 29, 2025, 04:04 IST
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