हाईकोर्ट ने कहा : वैवाहिक, पारिवारिक झगड़े आत्महत्या के लिए उकसाने वाले अपराध नहीं; इसके लिए चाहिए ठोस प्रमाण

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि सिर्फ झगड़े या लड़ाई-झगड़े वैवाहिक या पारिवारिक जीवन में आत्महत्या के लिए उकसावे के अपराध के तहत नहीं आते। जस्टिस रविंदर डुडेजा ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसावे का अपराध तभी बनता है, जब किसी व्यक्ति को अपराध करने के लिए उकसाया जाए, या उससे साजिश रची जाए या उसे जानबूझकर मदद दी जाए। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ मानसिक उत्पीड़न या तनाव होना काफी नहीं है। कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि अगर कोई व्यक्ति मानसिक रूप से कमजोर हो डिप्रेशन या अन्य मानसिक समस्याओं से पीड़ित हो तो उस स्थिति में आत्महत्या के उकसावे का मामला अलग दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा, ऐसे मामलों में अधिक ठोस प्रमाण की आवश्यकता होती है। हर आत्महत्या के मामले को आत्महत्या के लिए उकसावे का मामला नहीं माना जा सकता। यह देखा जाना चाहिए कि आरोपी का व्यवहार ऐसा था या नहीं कि एक सामान्य व्यक्ति (न कि कोई अतिसंवेदनशील व्यक्ति) आत्महत्या करने को मजबूर हो जाता। अदालत ने ये टिप्पणियां एक पति की आत्महत्या से जुड़े मामले में उसकी पत्नी को अग्रिम जमानत देते हुए कीं। पत्नी ने पति के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराते हुए आरोप लगाया कि पति ने उसके साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए। जब पति को इस शिकायत की जानकारी मिली तो उसने सल्फास टैबलेट खाकर आत्महत्या कर ली। मृतक ने आत्महत्या से पहले धमकी दी थी कि वह याचिकाकर्ताओं को फंसा देगा और सुसाइड नोट छोड़ जाएगा। अभियोजन पक्ष ने विरोध किया कि मृतक ने आत्महत्या से पहले व्हाट्सएप मैसेज भेजा था, जिसमें उसने कहा कि याचिकाकर्ता उसे प्रताड़ित करते थे और उसे जहर देकर मार डाला। बातचीत के दौरान मृतक ने याचिकाकर्ता को फंसाने की धमकी भी दी थी याचिकाकर्ताओं ने मेडिकल रिकॉर्ड प्रस्तुत करते हुए दिखाया कि मृतक को डिप्रेशन, आत्मघाती प्रवृत्ति, बायपोलर डिसऑर्डर आदि मानसिक समस्याएं थीं। कोर्ट ने यह भी देखा कि रिकॉर्डेड बातचीत में मृतक ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ बेहद अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया और उन्हें फंसाने की धमकी भी दी थी। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ सुसाइड नोट में किसी का नाम होने मात्र से उसे दोषी नहीं माना जा सकता।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: May 01, 2025, 06:36 IST
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