Dhanteras 2025: नाभि में इत्र लगाकर तोंद पर हाथ फेरने से मिलता है धन! अनोखी है शिव संग विराजे कुबेर की महिमा
मंदिरों की नगरी उज्जैन में एक मंदिर ऐसा भी हैं, जहां भगवान शिव के साथ कुबेर भी विराजते हैं। खास बात यह है कि पाषाण से बनी 1100 साल पुरानी परमारकालीन इस अतिप्राचीन प्रतिमा के एक हाथ में सोम पात्र है तो दूसरा हाथ वर मुद्रा में है। कंधे पर धन की पोटली है। तीखी नाक, उभरा पेट, शरीर पर अलंकार आदि से कुबेर का स्वरूप काफी आकर्षक लगता है। धन त्रयोदशी अर्थात धनतेरस पर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर भगवान कुबेर की नाभि में इत्र लगाते हैं और धन, विद्या के साथ सुख-समृद्धि की कामना की। मान्यता है कि यहां कुबेर की नाभि में इत्र लगाने से समृद्धि प्राप्त होती है। दरअसल, मंगलनाथ रोड स्थित भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा स्थल महर्षि सांदीपनि आश्रम में श्री कंडेश्वर महादेव मंदिर है। इसी के गर्भगृह में भगवान शिव के साथ कुबेर भी विराजित हैं। इस बार 18 अक्तूबर को धनतेरस है, इस दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पूजन करने के लिए पहुंचेंगे। भगवान शिव का यह मंदिर 84 महादेव में से 40वें नंबर पर आता है। बता दें कि देशभर में कुबेर की गिनी-चुनी प्रतिमाओं में से दो प्रतिमाएं मप्र में हैं। एक विदिशा तो दूसरी प्रतिमा उज्जैन में है। ये भी पढ़ें-महाकाल मंदिर की गरिमा से खिलवाड़, AI से बनाया अपत्तिजनक वीडियो, डोरेमोन भी शामिल; भक्तों में आक्रोश कृष्ण को सौंपी श्री, तब से जुड़ा श्रीकृष्ण मंदिर से जुड़ी मान्यता की बात करें तो जब कृष्ण महर्षि सांदीपनि के आश्रम से शिक्षा पूरी कर जाने लगे तो गुरु दक्षिणा देने के लिए कुबेर धन लेकर आए थे। इस पर गुरु माता ने कृष्ण से कहा कि मेरे पुत्र का शंखासुर नामक राक्षस ने अपहरण कर लिया है। उसे मुक्त कराकर ले आओ, यही गुरुदक्षिणा होगी। श्री कृष्ण ने गुरु पुत्र को राक्षस से मुक्त करा कर गुरु माता को सौंप दिया। इसी से प्रसन्न होकर गुरु माता ने कृष्ण को श्री सौंपी तभी से भगवान कृष्ण के नाम के साथ श्री जुड़ गया और वे श्रीकृष्ण कहलाए। इसके बाद श्रीकृष्ण तो द्वारका चले गए लेकिन कुबेर आश्रम में ही बैठे रह गए। मंदिर में भी कुबेर की प्रतिमा बैठी मुद्रा में ही है। कुंडेश्वर महादेव के जिस मंदिर में कुबेर विराजे हैं उसके गुंबद में श्रीयंत्र बना हुआ है जो कृष्ण को श्री मिलने की पुष्टि करता है। गर्भगृह में भी यह है खास कुंडेश्वर महादेव मंदिरए महर्षि सांदीपनि आश्रम परिसर के उन 84 महादेव मंदिरों में से एक है, जिसे 40वें स्थान पर माना जाता है। इस मंदिर का विशेष आकर्षण है गर्भगृह में स्थापित भगवान कुबेर की प्राचीन मूर्ति। लगभग 1100 वर्ष पुरानी यह प्रतिमा आकर्षक कलात्मकता के साथ-साथ अध्यात्मिक ऊर्जा का भी प्रतीक मानी जाती है। प्रतिमा में कुबेर के एक हाथ में सोमपात्र है, दूसरा हाथ वरमुद्रा में, कंधे पर धन की पोटली और मुखमंडल पर तेज। उभरी हुई तोंद, तीखी नाक और गहनों से सुसज्जित शरीर इस प्रतिमा को अत्यंत विशिष्ट बनाते हैं। गर्भगृह में भगवान वामन देव, बालाजी और भगवान नारायण की भी दुर्लभ प्रतिमाएं स्थापित हैं, जो इस स्थल को और भी पवित्र बनाती हैं। मंदिर का शिखर मंदिर के शिखर के भीतर स्थापित श्री यंत्र इसे तांत्रिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बनाता है। माना जाता है कि यह यंत्र भक्तों को मानसिक शांति, समृद्धि और साधना में सफलता प्रदान करता है। तोंद पर हाथ फेरकर करते हैं मनोकामना धनतेरस से लेकर दीपावली तक यहां विशेष पूजन होता है। श्रद्धालु कुबेर की तोंद पर हाथ फेरकर अपनी मनोकामनाएं प्रकट करते हैं और उनकी नाभि में इत्र लगाते हैं। इसके बाद मिष्ठान और अनार का भोग चढ़ाया जाता है, जिसे धन के देवता को अर्पण करने की परंपरा से जोड़ा गया है। ऐसी मान्यता है कि इससे कुबेर प्रसन्न होकर धन-धान्य का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Oct 17, 2025, 10:27 IST
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