राघोपुर लिखेगा कुर्सी की कहानी, महुआ बताएगा घर की दास्तान: भाई-भाई के बीच यादव महासंग्राम, राबड़ी की ममता...
राजनीतिक घराना। दो बेटे। दो मोर्चेऔर मां जो बीच में खड़ी हैं। दिल एक तरफ, राजनीति दूसरी तरफ। ये कहानी सिर्फ चुनाव की नहीं, परिवार, महत्वाकांक्षा व मन के द्वंद्व की है। बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार लालू प्रसाद यादव परिवार की सियासी विरासत का संघर्ष चरम पर है। यह केवल चुनावी हार-जीत नहीं, बल्कि घर के भीतर चल रही गहरी लड़ाई है। इसके दो मोर्चे हैं। पहला छोटे बेटे तेजस्वी यादव का किला राघोपुर और दूसरा बड़े बेटे तेजप्रताप यादव की भूमि महुआ। लालू के दोनों वारिस आमने-सामने नहीं हैं, पर अलग-अलग होकर भी एक-दूसरे की सियासी राह में सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़े हैं। तेजस्वी सत्ता के लक्ष्य और बतौर सीएम चेहरा अपनी राजनीति को ऊंचा मुकाम दिलाने में जुटे हैं, वहीं तेजप्रताप अपनी पार्टी जनशक्ति जनता दल से व्यक्तिगत पकड़ और स्वाभिमान की लड़ाई लड़ रहे हैं। यह संघर्ष तब और भी स्पष्ट हुआ, जब तेजस्वी के गढ़ राघोपुर में तेजप्रताप ने अपनी पार्टी के जरिए सीधे जाकर खुली चुनौती दे दी। इस पूरे द्वंद्व में, मां राबड़ी देवी की भूमिका सबसे मुश्किल है। सियासी पंडितों का मानना है कि मां का दिल भावनात्मक रूप से तेजप्रताप के साथ खड़ा दिखता है, जबकि पिता लालू की विरासत वाली राजनीति, रणनीति और संगठन तेजस्वी के साथ है। उनका चेहरा घर व राजनीति के बीच संतुलन साधने का प्रयास कर रहा है, जहां एक बेटा दिमाग से और दूसरा ममता के सहारे लड़ रहा है। राघोपुर विधानसभा : तेजस्वी यादव बनाम घरेलू और बाहरी की चुनौती गंगा के दो पाटों के बीच बसा राघोपुर लालू परिवार के लिए सिर्फ एक विधानसभा सीट नहीं, बल्कि राजनीतिक वारिस तेजस्वी यादव का लॉन्चपैड है। इस सीट पर छह दशक से ज्यादा समय से यादव प्रत्याशी ही विजयी होता आया है। यहां 2010 में राबड़ी देवी की हार के बाद भी जीत एक अन्य यादव उम्मीदवार (सतीश यादव) को ही मिली थी। महुआ विधानसभा : स्वाभिमान की कसौटी, जहां यादव वोट बैंक बिखरा लालू परिवार के दूसरे मोर्चे महुआ की कहानी एकदम अलग है। यह सीट बड़े बेटे तेजप्रताप के व्यक्तिगत वर्चस्व और अस्तित्व की कसौटी है। यहां राजनीति की धड़कन तेज है, और निष्ठाएं भावनात्मक हैं। मां राबड़ी तेजप्रताप की सबसे बड़ी ताकत हैं। वह रोजाना डेढ़ से दो सौ लोगों को फोन कर अपने तेजू के लिए वोट मांग रही हैं। यादव परिवारों में इसका असर काफी है। एनडीए की दोहरी रणनीति व घरेलू कलह का लाभ राघोपुर में तेजस्वी का मुकाबला भाजपा के सतीश यादव से है। भाजपा, सतीश को लगातार टिकट देकर यादव समुदाय के भीतर वैकल्पिक और मजबूत नेतृत्व खड़ा करने का प्रयास कर रही है। हालांकि, एनडीए के लिए बड़ा हथियार तेजप्रताप की ओर से अपनी पार्टी जनशक्ति जनता दल के प्रत्याशी को खड़ा करना और स्वयं तेजस्वी के खिलाफ तीन दिन तक ताबड़तोड़ प्रचार करना बन गया हैर, जिसका मतलब साफ है कि वह छोटे भाई को बताने पर अमादा हैं कि बड़ा कौन है। त्रिकोणीय मुकाबले में एनडीए का अदृश्य हाथ महुआ में तेजप्रताप का मुकाबला राजद के निवर्तमान विधायक मुकेश कुमार रौशन से है, लेकिन लड़ाई को त्रिकोणीय बनाया है एनडीए ने। लोजपा (आर) के संजय कुमार सिंह मैदान में हैं, जिन्हें राजपूत व सवर्ण वोटों पर मजबूत पकड़ वाला माना जाता है। एनडीए की रणनीति स्पष्ट है-लालू परिवार के बिखराव को वोटबैंक के बिखराव में बदलना। यादव वोट तेजप्रताप की पार्टी और राजद के मुकेश के बीच बंटेंगे। इसका सीधा लाभ संजय को गैर-यादव और सवर्ण वोटों को एकजुट करके मिल सकता है। बड़े भाई का तेलपिलावन वार और यादव मतदाताओं में बिखराव राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेजप्रताप ने अपनी पार्टी जनशक्ति जनता दल के जरिए राघोपुर में सिर्फ उम्मीदवार नहीं उतारा है, बल्कि यादव कुल के भीतर ही भावनात्मक विभाजन भी पैदा किया है। उन्होंने खुद को कृष्ण और तेजस्वी की राजद को फर्जी पार्टी बताते हुए, मंच पर तेलपिलावन लाठी गाड़कर यह संदेश दिया कि तेजस्वी की जीत केवल संगठनात्मक नहीं, बल्कि पारंपरिक निष्ठा से भी तय होगी। यह यादव बनाम यादव की लड़ाई एनडीए के लिए साइलेंट किलर का काम कर सकती है, जो गैर-यादव वोटों को एकजुट करने में मदद करेगी। वैसे भी सियासत घर तक पहुंचे, तो आवाजें धीमी हो जाती हैं। एक बुजुर्ग मतदाता का वाक्य खबर का बयान बन गया। उन्होंने कहा कि राघोपुर सरकार की कहानी लिखेगा, तो महुआ घर की कहानी बताएगा। लालू के दोनों वारिसों का आपसी टकराव एनडीए के लिए मुफीद तेजप्रताप, जो लालू के भावनात्मक वारिस माने जाते हैं, यहां अपनी व्यक्तिगत पकड़ और भावनात्मक मॉडल पर आधारित लड़ाई लड़ रहे हैं। उनकी लड़ाई सिर्फ राजद उम्मीदवार से नहीं, बल्कि तेजस्वी की ओर से प्रचारित संगठनात्मक नियंत्रण से भी है। कार्यकर्ताओं की जुबान पर साफ है कि तेजस्वी का कद बड़ा है, पर महुआ का सम्मान तेजप्रताप का है। दोनों वारिसों का यह आपसी टकराव पर्दे के पीछे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के लिए मुफीद स्थिति पैदा कर रहा है। कारण यह है कि तेजप्रताप के साथ यादवों का ज्यादा वोट तो दिख रहा है, लेकिन क्या अन्य जातियां भी साथ आएंगीयह प्रश्न अनुत्तरित है। यह चुनाव न केवल सरकार बनाएगा, बल्कि यह भी तय करेगा कि यादव समुदाय की राजनीति पर पारिवारिक विरासत का भावनात्मक पहलू हावी रहेगा या संगठनात्मक और रणनीतिक नेतृत्व।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 05, 2025, 06:52 IST
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