Pakistan: गिलगित-बाल्टिस्तान में आई भुखमरी की नौबत, आटा के लिए सरकारी डिपो भी बंद, सड़कों पर उतरे लोग

पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और गिलगित बाल्टिस्तान में कई हफ्तों से खाद्यान्न की कमी और बढ़ती महंगाई को लेकर जारी गुस्सा बड़े पैमाने पर सरकार विरोधी प्रदर्शनों में बदल गया है। कब्जे वाले क्षेत्रों के लगभग सभी हिस्सों में सभी क्षेत्रों के लोगों ने सरकार के खिलाफ अपनी नाराजगी व्यक्त करने के लिए राजमार्गों को अवरुद्ध कर दिया और टायर जलाए। बता दें कि पाकिस्तान एक अभूतपूर्व आर्थिक संकट से गुजर रहा है, जो आटे की कीमतों में बेतहाशावृद्धि के कारण उत्पन्न हुआ है। नागरिकों को सब्सिडी वाला गेहूं उपलब्ध कराने वाले सरकारी डिपो पर ताला लगा दिया गया है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र के स्थानीय लोगों ने कहा कि वे सरकार की नीतिगत विफलताओं के कारण गुजारा करने में असमर्थ थे, जिसके परिणामस्वरूप गेहूं की कीमत में तेज वृद्धि हुई है। आटेके लिए सरकारी डिपो बंद पत्रकारों से बात करते हुए, पीओके कार्यकर्ता अमजद अयूब मिर्जा ने कहा कि लोग सड़कों पर हैं क्योंकि कोई भोजन नहीं है, कोई आटा नहीं है और पीओजेके में, उन्होंने एक दिन में गेहूं की कीमत 1,200 रुपये तक बढ़ा दी है। आटे के लिए सरकारी डिपो भी बंद कर दिया गया है। वहां आटा नहीं है। पीओके के लगभग हर शहर में लोग विरोध कर रहे हैं, यहां तक कि छात्र, वकील, नागरिक समाज और महिलाएं भी विरोध कर रही हैं। स्थानीय लोगों ने दी सरकार को चेतावनी इस बीच, स्थानीय लोगों ने सरकार को चेतावनी दी है कि अगर उनकी समस्याओं का तुरंत समाधान नहीं किया गया तो वे प्रशासन को काम नहीं करने देंगे। इसी तरह, पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित बाल्टिस्तान में पूरे क्षेत्र में बड़े पैमाने पर जनसभाएं आयोजित की गई हैं। वे सरकार द्वारा बिना किसी मुआवजे के निजी संपत्ति पर कब्जा करने और बिजली के बिलों के खिलाफ भी विरोध कर रहे हैं। अमजद अयूब मिर्जा ने कहा कि एक दिन में 22 घंटे बिजली कटौती के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जिसने वहां के व्यवसायों और लोगों के रहने की स्थिति को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है। गिलगित-बाल्टिस्तान के लोगों को होना पड़ता है भेदभाव का शिकार 1947 में ब्रिटिश-भारत के विभाजन के बाद अवैध रूप से अपना नियंत्रण हासिल करने के बाद से पाकिस्तान ने इन क्षेत्रों के साथ भेदभाव किया है। यहां के लोग कहते हैं, उन्हें ऐतिहासिक रूप से दूसरे दर्जे के नागरिकों के रूप में माना जाता है और समानता की मांग करने पर उन्हें डराने-धमकाने और क्रूरता का शिकार होना पड़ता है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 17, 2023, 11:27 IST
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