हिसार में गोबर से निकलने वाली मीथेन नहीं बनेगी मुसीबत, हजारों पेड़ भी बचेंगे; लुवास के वैज्ञानिक कर रहे शोध
गोशालाओं व घरों में गाय का गोबर अब मुसीबत नहीं बनेगा। यह गोबर अब हजारों पेड़ों को बचाने क काम करेगा। गोबर से तैयार होने वाली लकड़ियों को सामान्य लकड़ियों की तरह से उपयोग किया जा सकेगा। गोबर से बनी लकड़ियां भी सामान्य लकड़ियों की तरह से ही ऊर्जा उत्सर्जित करें इसके लिए लुवास के वैज्ञानिकों का दल शोध में जुटा है। जिन्होंने तीन अलग अलग तरीके से ऐसी लकड़ियां तैयार की हैं। इन लकड़ियों में सबसे बेहतर विकल्प को पशु पालकों को उपलब्ध कराया जाएगा। लुवास के लाइव स्टॉक प्रोडेक्शन एंड मैनेजमेंट डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ मान सिंह के नेतृत्व वेस्ट यूटिलाइजेशन प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है। पशु अपशिष्ट प्रबन्धन पर काम कर रहे डॉ. मान सिंह ने बताया कि हरियाणा में ~700 से अधिक गोशाला हैं। इसके अलावा लोगों ने घरों में भी गाय रखी हुई हैं। प्रदेश में करीब 19.32 लाख गोवंश है। एक पशु एक दिन में औसतन सुखा 8-10 किलोग्राम गोबर करता है। अमूमन लोग खुले में गाय के गोबर को ढेर बना कर 6 महीने तक रखते हैं।खुले में पड़े गोबर से कई प्रकार की गैस व मिनरल निकलते रहते है। जो वातावरण को दूषित करती है। इसी गोबर का समाधान करने के लिए प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है। जिसमें गोबर से लकड़ी बनाई जा रही है। जिसे गोकाष्ठ नाम दिया है। डॉ. मान सिंह ने बताया कि गोकाष्ठ पहले से तैयार की जा रही हैं लेकिन अब इसे अधिक बेहतर बना कर लकड़ी के स्तर पर लाने की कोशिश चल रही है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर (डॉ) विनोद कुमार वर्मा जी के मार्गदर्शन में चल रहे इस प्रोजेक्ट में डॉ देवेन्द्र बिधान (विभागाध्यक्ष, पशुधन उत्पादन प्रबंधन विभाग), डॉ संदीप (सहायक प्राध्यापक) तथा डॉ दीपिन चन्द्र यादव (साइंटिस्ट) भी सम्मिलित हैं। उष्मीय क्षमता की तुलना करें तो करीब एक किलो लकड़ी 4000 से 4500 किलो कैलोरी ऊर्जा देती है। अभी जो गोकाष्ठ तैयार हो रहे हैं उसमें तकरीबन एक 2800 से 3000 किलो कैलोरी तक ऊर्जा मिलने की संभावना है। हम इसे लकड़ी के समकक्ष तक लाने का प्रयास कर रहे हैं। जिसके लिए अलग अलग मिश्रण के साथ गोकाष्ठ तैयार कर उस पर शोध कर रहे हैं। लकड़ी काफी महंगी भी पड़ती है। अगर हम गोकाष्ठ को लकड़ी के स्तर पर लाने में सफल रहते हैं तो किसानों- पशु पालकाें को आय को बढ़ाने में सहायता कर सकेंगे। गोकाष्ठ को लकड़ी के स्थान पर प्रयोग कर हम पेड़ों को कटने से बचा सकेंगे।किसानों की आय का नया स्रोत बन सकता है। लुवास उपलब्ध करा रहा गोकाष्ठ लुवास का एलपीएम डिपार्टमेंट ट्रायल के तौर पर लोगों को गोकाष्ठ उपलब्ध करा रहा है। जिसमें 2.5 फीट और 7.5 सेंटीमीटर चौड़ाई के आकार में उपलब्ध है। ऐसी लकड़ियों को फिलहाल शमशान घाट में अंतिम संस्कार के लिए ऐसी गोकाष्ठ को उपयोग किया जा रहा है। तंदूर आदि के काम के लिए भी लोग इनका उपयोग करने लगे हैं। गोकाष्ठ को हवन यज्ञ व अन्य धार्मिक कार्यक्रम के लिए उपयोग किया जा सकेगा। राख भी उपयोगी गोकाष्ठ में गाय के गोबर का उपयोग होने के चलते यह राख खेतों के लिए अधिक फायदेमंद साबित होगी। किसान इनका उपयोग अपने खेत में कर सकते हैं। ऐसी राख के कार्बन तत्व सामान्य लकड़ी से काफी बेहतर हैं। राख भी उर्वरक का काम करेगी। कैसे तैयार हो रहा गोकाष्ठ गाय के गोबर में निश्चित स्तर में बुरादा, भूसा, खेतों के अपशिष्ट आदि को मिश्रित कर एक मशीन में कंप्रेशर किया जाता है। जिसके बाद इनको लकड़ी के आकार में तैयार किया जाता है। इसके बाद इनको सुखाया जाता है। सूखने के बाद इनको लकड़ी के तौर पर उपयोग किया जा सकता है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Oct 12, 2025, 14:20 IST
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