इस संकट में भी अवसर छिपा है: भारत को भावी झटकों के लिए तैयार रहना होगा... खुद को समय के अनुरूप ढालना अहम

टैरिफ का झटका लगना शुरू हो गया है। रूसी तेल की निरंतर खरीद के कारण 27 अगस्त को अमेरिका ने ज्यादातर भारतीय वस्तुओं पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया। इसका असर आपूर्ति शृंखला पर पहले से ही पड़ रहा है। ऑर्डर बीच में ही रद्द हो रहे हैं, खरीदार या तो बातचीत कर रहे हैं या फिर लौट रहे हैं, और निर्यातक पूर्वानुमानों के बजाय नतीजों के प्रति सजग हो रहे हैं। नई दिल्ली को सबसे कठिन व्यापारिक झटकों में से एक का सामना करना पड़ रहा है। भारत के परिधान निर्यात में लगभग एक-तिहाई योगदान देने वाली निटवियर की राजधानी तिरुपुर में नुकसान तुरंत दिख रहा है। फैक्टरी मालिकों ने बड़े पैमाने पर ऑर्डर रद्द होने की सूचना दी है और उत्पादन लाइनें धीमी पड़ रही हैं। औपचारिक और उच्च-मूल्य वाले परिधानों के प्रमुख केंद्र नोएडा में, निर्यातकों को अचानक ऑर्डर रद्द होने और उत्पादन केंद्रों के बंद होने का सामना करना पड़ रहा है। औद्योगिक क्षेत्रों में छंटनी का डर मंडरा रहा है। सूरत में, जहां दुनिया के लगभग 90 प्रतिशत कच्चे हीरे पॉलिश किए जाते हैं, मजदूरों को घर भेजा जा रहा है। उनके कौशल विशिष्ट हैं, उनके विकल्प सीमित हैं। विशाखापत्तनम और कोच्चि में, समुद्री खाद्य प्रसंस्करणकर्ताओं को ऑर्डर कम मिल रहे हैं, क्योंकि इक्वाडोर जैसे प्रतिस्पर्धी कम टैरिफ के साथ आगे बढ़ रहे हैं। ट्रंप के टैरिफ ने भारत को चीन, वियतनाम और बांग्लादेश जैसे प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले नुकसानदेह स्थिति में डाल दिया है, जिन्हें कम टैरिफ का फायदा मिलता है। व्यापार, शुल्क और भू-राजनीति की तमाम बातों के पीछे एक और बुनियादी कहानी छिपी है। यह जिंदगी से जुड़ी है। भारत के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई), जो 11 करोड़ से ज्यादा लोगों को रोजगार देते हैं और निर्यात में अहम भूमिका निभाते हैं, इस झटके का सबसे अधिक असर झेल रहे हैं। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव का अनुमान है कि भारत से अमेरिका को होने वाले 86.5 अरब डॉलर के निर्यात में से 66 प्रतिशत, जिसका मूल्य 60.2 अरब डॉलर है, पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है, जिससे कपड़ा, आभूषण और झींगा जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में 70 प्रतिशत गिरावट का खतरा है। भारत में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) का प्रतिनिधित्व करने वाले इंडिया एसएमई फोरम के अनुसार, कपड़ा और आभूषण उद्योग में 30 अरब डॉलर का एमएसएमई निर्यात और लगभग 80,000 नौकरियां खतरे में हैं। ये कोई अमूर्त आंकड़े नहीं हैं, ये भारत के बंदरगाहों से निकलने वाले प्रत्येक कंटेनर के पीछे छिपे मानवीय चेहरों का प्रतिनिधित्व करते हैं। परिधान निर्यात संवर्धन परिषद (एईपीसी) के महासचिव मिथिलेश्वर ठाकुर का कहना है कि निर्यातक खरीदारों के साथ संबंध बनाए रखने और श्रमिकों को जोड़े रखने के लिए अस्थायी रूप से नुकसान को सहन कर सकते हैं, लेकिन जब तक कोई स्थायी समाधान नहीं ढूंढा जाता, छंटनी शुरू हो सकती है। सरकार को अब तत्परता से कार्रवाई करनी चाहिए। राहत उपायों को तुरंत लागू किया जाना चाहिए: कोविड-काल की आपातकालीन ऋण गारंटी योजना की तर्ज पर आपातकालीन ऋण व्यवस्था, टैरिफ प्रभावित क्षेत्रों को प्रत्यक्ष सब्सिडी, और निर्यात प्रोत्साहनों में तेजी लानी चाहिए। हालांकि, वित्तीय सहायता के अलावा, एमएसएमई को जानकारी की भी आवश्यकता है। लंबे समय से लंबित वैश्विक बाजार खुफिया सेवा (जीएमआईएस) को तुरंत चालू किया जाना चाहिए। निर्यातकों को मांग, मूल्य निर्धारण, लॉजिस्टिक्स और नियामक बदलावों पर वास्तविक समय के आंकड़ों की आवश्यकता है। उन्हें सत्यापित खरीदार की जानकारी, प्रतिस्पर्धी बेंचमार्किंग और टैरिफ परिवर्तनों पर अलर्ट की आवश्यकता होती है। इसके बिना, वे असहाय हैं। भारत में 6.3 करोड़ एमएसएमई होने के बावजूद मुख्यतः सीमित जागरूकता, सुलभ बाजार जानकारी का अभाव, और कहां व कैसे शुरुआत करें, इस बारे में अनिश्चितता के कारण अभी केवल 1.73 लाख एमएसएमई ही निर्यात कर रहे हैं। कई एमएसएमई को यह पता ही नहीं होता कि किन उत्पादों की किन देशों में मांग है, उसकी कीमतें क्या हैं, या नियमों और लॉजिस्टिक्स से कैसे निपटना है। वर्ष 2021-22 में प्रस्तावित जीएमआईएस की परिकल्पना वैश्विक मांग, मूल्य निर्धारण, लॉजिस्टिक्स और शिपिंग पर डाटा प्रदान करने वाले वन-स्टॉप पोर्टल के रूप में की गई थी। यह अब तक निष्क्रिय है। इस कमी को पूरा करने के लिए जीएमआईएस को चालू किया जाना चाहिए और इसे एक रीयल-टाइम ट्रेड इंटेलिजेंस सेल के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए। वित्त एक और तात्कालिक आवश्यकता है। एसएमई फोरम ने ईसीएलजीएस की तर्ज पर एक आपातकालीन तरलता गलियारा स्थापित करने की सिफारिश सरकार से की है, ताकि एमएसएमई को इस संकट से उबरने में मदद मिल सके। टैरिफ प्रभावित समूहों तक पूर्व-स्वीकृत गारंटी और रियायती ऋण पहुंचना चाहिए, और सत्यापित फर्मों को सात दिनों के भीतर ऋण वितरित किया जाना चाहिए, ताकि बंद और छंटनी को रोका जा सके। दक्षिण-पूर्व एशिया से भी सीख ली जा सकती है। वियतनाम, जिस पर अमेरिका द्वारा 46 प्रतिशत टैरिफ लगाने का खतरा मंडरा रहा था, ने कूटनीति और रणनीतिक रियायतों के जरिये इसे घटाकर 20 प्रतिशत कर दिया। उसने प्रमुख कारखानों का उन्नयन, व्यावसायिक प्रशिक्षण का विस्तार और डिजिटल ट्रेसेबिलिटी शुरू करके उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार किया। ये प्रणालियां कच्चे माल से लेकर अंतिम वितरण तक उत्पाद की यात्रा पता लगाने में मदद करती हैं, जिससे दोषों का पता लगाना और अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करना आसान हो जाता है। क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी सहित 17 मुक्त व्यापार समझौते करके वियतनाम यूरोप और एशिया को किए जाने वाले निर्यात में विविधता ला रहा है, जिससे अमेरिका पर निर्भरता कम हो रही है और प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ रही है। पीएम मोदी ने आत्मनिर्भरता व घरेलू वस्तुओं का आह्वान किया प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भरता और घरेलू वस्तुओं के उपभोग का आह्वान किया है। इसका लाभ विनिर्माण आधार को उन्नत करने के रूप में भी उठाया जाना चाहिए, ताकि देश वास्तव में वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी बन सके और किसी एक बाजार पर निर्भर न रहे। हम एक कठिन दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन हर संकट में हमेशा एक सबक और एक अवसर छिपा होता है। एक साथ कई संकटों के इस दौर में भारत को आगे आने वाले झटकों के लिए तैयार रहना होगा और तुरंत अनुकूलन करना होगा।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Aug 29, 2025, 06:13 IST
पूरी ख़बर पढ़ें »

Read More:
Opinion National



इस संकट में भी अवसर छिपा है: भारत को भावी झटकों के लिए तैयार रहना होगा... खुद को समय के अनुरूप ढालना अहम #Opinion #National #SubahSamachar