शख्सियत: अलीगढ़ के नायाब हीरे, जिन पर है शहरवासियों को नाज

अशोक सिंघल, मलखान सिंह, मोहनलाल गौतम, चंद्रभानु, कल्याण सिंह, अब्दुल सत्तार, शहरयार अलीगढ़ के नायाब हीरे हैं। इन पर शहरवासियों को नाज है। इन्होंने अलीगढ़ को पूरे देश ही नहीं विश्व में पहचान दिलाई। इन सभी शख्सियतों कभी भुलाया नहीं जा सकता है। राम मंदिर आंदोलन को धार थी अशोक सिंघल ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण को लेकर लोगों की भूमिका की बात कही जाए, लेकिन बिना अशोक सिंघल का नाम लिए बगैर इसकी राम मंदिर आंदोलन की कहानी पूर्ण नहीं हो सकती। वास्तव में उन्होंने राम मंदिर आंदोलन में जो धार दी थी, उसी परिणाम है कि राम मंदिर निर्माण कार्य प्रगति पर है। विश्व हिंदू परिषद का अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए अशोक सिंघल ने राम मंदिर के मुद्दे को घर-घर पहुंचाया। अशोक सिंघल अतरौली के बिजौली गांव के थे। उनका जन्म 15 सितंबर 1926 को आगरा में हुआ था। उनके पिता सरकारी सेवा में थे। अशोक सिंघल 1942 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े। उन्होंने 1950 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग पूरी की। नौकरी के बदले समाज सेवा का मार्ग चुना। आगे चलकर आरएसएस के प्रचारक बन गए। वह आजीवन अविवाहित रहे। 1984 में दिल्ली के विज्ञान भवन में धर्म संसद का आयोजन किया गया था। यहीं पर राम जन्मभूमि आंदोलन की रणनीति तय की गई। अशोक सिंघल ने पूरी योजना के साथ कार सेवकों को अपने साथ जोड़ना शुरू किया। अंग्रेजों को मल्ल युद्ध की तरह पटकनी दी मलखान सिंह ने ठाकुर मलखान सिंह ने देश को आजाद कराने के लिए अंग्रेजों से लंबे समय तक लड़ाई लड़ी। जब देश आजाद हो गया, तब वह विधानसभा सदस्य बने। इसके बाद मंत्री भी बने। ठाकुर मलखान सिंह का जन्म 24 नवंबर 1889 को अकराबाद के गांव हसौना जगमोहनपुर में हुआ था। अकराबाद की भूमि 1857 के वीर शहीदों से रक्त-रंजित हो चुकी थी। युवावस्था से ही उनके मन में देशभक्ति की भावना हिलोरे मार रही थी। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एवं प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के लिए काम किया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गवर्नमेंट हाईस्कूल में हुई थी। इलाहाबाद के अमेरिकन क्त्रिस्श्चियन कॉलेज से बीएससी की उपाधि हासिल की। आगरा विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई की। भारत छोड़ो आंदोलन, असहयोग आंदोलन और सत्याग्रह आंदोलन के दौरान बेहद सक्रिय रहे और जेल भी गए। आजादी के बाद अलीगढ़ कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चुने गए। आजादी के बाद 1952 में विधायक निर्वाचित हुए। उनके नाम पर अलीगढ़ में मलखान सिंह जिला चिकित्सालय है। 24 जनवरी 1962 को उनकी मृत्यु हुई। जेल की कोठरी में दस साल से ज्यादा समय बताया मोहनलाल गौतम ने जेल की कोठरी में दस साल से ज्यादा समय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मोहनलाल गौतम ने बिताया। वह अपने जीवन काल में सात बार जेल गए। स्वतंत्रता के बाद प्रदेश सरकार में मंत्री बने। पंतनगर में कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना में उसका महत्वपूर्ण योगदान था। मोहनलाल गौतम का जन्म 1902 में जनपद के वीरपुरा ग्राम में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अलीगढ़ में हुई थी। 1921 में असहयोग आंदोलन के समय पढ़ाई छोड़ दी और शाहजहांपुर और हरदोई में राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया। 1922 में लाहौर में लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित नेशनल कॉलेज में भर्ती हो गए और बीए ऑनर्स की उपाधि ली। काकोरी कांड एवं जालियांबाग में भाषण देने के लिए भी बंदी बनाए गए थे। असहयोग आंदोलन, खिलाफत आंदोलन, नमक सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आंदोलन, लगान बंदी आंदोलन, जमींदारी उन्मूलन के मामले में काफी सक्रिय रहे। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनको नजरबंद किया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान सभा के सदस्य बने। 1937, 1952, 1957 व 1962 में उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य चुने गए। 1952 से 1954 तक उत्तर प्रदेश में स्वायत शासन विभाग के मंत्री और 1956 से 1960 तक सहकारिता, कृषि व पशुपालन मंत्री रहे। वह महात्मा गांधी से बेहद प्रभावित थे। उनकी पुत्री शीला गौतम चार बार अलीगढ़ की सांसद निर्वाचित हुईं। व्यवसायिक क्षेत्र में भी वैश्विक स्तर पर पहचान बनाई। जिला महिला अस्पताल का नाम उन्हीं के नाम से है, जो मोहनलाल गौतम जिला महिला चिकित्सालय से जाना जाता है। वर्ष 1977 में उनकी मृत्यु हुई।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 22, 2023, 19:50 IST
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