Meerut News: शिव का अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकी सती, यज्ञ कुंड में त्यागे प्राण
श्रीमद्भागवत कथा में तीसरे दिन कथा वाचक ने शिव और सती विवाह का प्रसंग सुनायासंवाद न्यूज एजेंसीहस्तिनापुर। कस्बे की न्यू ब्लॉक कॉलोनी के शांति चौराहे पर चल रही श्रीमद्भागवत कथा में तीसरे दिन कथा वाचक ने शिव और सती विवाह का प्रसंग सुनाया। मथुरा वृंदावन से आए कथावाचक नीलांशु दास महाराज ने कहा कि श्रीमद्भागवत की कथा देवताओं को भी दुर्लभ है। मृत्यु लोक में सुलभ है। कथा में सुखदेव जन्मोत्सव, वन गमन महाभारत का प्रसंग, भीष्म पितामह द्वारा पांडवों को दान धर्म के बारे में उपदेश देने की कथा श्रोताओं को सुनाई। कथावाचक ने कहा कि शिव और सती का विवाह ब्रह्मा की सलाह पर प्रजापति दक्ष ने कराया था। हालांकि दक्ष इस विवाह के पक्ष में नहीं थे। जब सती ने शिव को अपने पति के रूप में चुना तो दक्ष ने पहले तो मना कर दिया लेकिन बाद में ब्रह्मा के कहने पर उन्होंने अपनी बेटी सती का विवाह भगवान शिव से कर दिया। यह विवाह हरिद्वार की प्राचीन नगरी कनखल में हुआ था। इसमें कई देवी-देवताओं और शिव के गण शामिल हुए थे। कथा में दक्ष प्रजापति की कन्या सती के साथ भोलेनाथ का विवाह और भोलेनाथ सती पार्वती की बड़ी सुंदर झांकी दर्शकों को दिखाई गई। शिव विवाह में भजनों के साथ महिलाओं ने नृत्य किया। कथा पांडाल में राधे-राधे नाम के जयकारों की गूंज रही। कथावाचक ने कहा कि पुराणों के अनुसार भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक प्रजापति दक्ष कश्मीर घाटी के हिमालय क्षेत्र में रहते थे। प्रजापति दक्ष की दो पत्नियां थी, प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से दक्ष की 24 कन्याएं जन्मीं और वीरणी से 60 कन्याएं। राजा दक्ष की पुत्री सती की माता का नाम प्रसूति था। प्रसूति स्वायंभुव मनु की तीसरी पुत्री थी। मां सती ने एक दिन कैलाशवासी शिव के दर्शन किए और उनको भगवान शिव से प्रेम हो गया। ब्रह्मा के समझाने उपरांत दक्ष प्रजापति की इच्छा से सती ने भगवान शिव से विवाह किया। दक्ष ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उन्होंने अपने दामाद और पुत्री को यज्ञ में निमंत्रण नहीं भेजा। फिर भी सती अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई। दक्ष ने पुत्री के आने पर उपेक्षा का भाव प्रकट किया और शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें कही। सती बर्दाश्त नहीं कर पाई। इस अपमान की कुंठावश उन्होंने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। यह खबर सुनकर शिव ने वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया। दुखी होकर सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर शिव ने तांडव नृत्य किया। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र द्वारा सती के शरीर के टुकड़े करने शुरू कर दिए। इस तरह सती के शरीर का जो हिस्सा और धारण किए आभूषण जहां-जहां गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आ गए। यह कथा सुनकर श्रद्धालु भाव विभोर हो गए। कार्यक्रम की सभी पूजा रूपानंद महाराज द्वारा संपन्न कराई गई। कार्यक्रम में नारायण नियोगी, डाॅ. स्वदेश शर्मा, निकांत बाला, बबलू विश्वास, विकास गोलदार, रतन विश्वास, प्रतीश शर्मा, सुभाष मालाकार, कृष्ण कीर्तनीय, अमित सरकार, तरुण सरकार आदि का सहयोग रहा। श्रीमद् भागवत कथा में प्रवचन करते नीलांशु दास महाराज स्रोत संवाद श्रीमद् भागवत कथा में प्रवचन करते नीलांशु दास महाराज स्रोत संवाद श्रीमद् भागवत कथा में प्रवचन करते नीलांशु दास महाराज स्रोत संवाद
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 12, 2025, 19:58 IST
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