प्रधानमंत्री मोदी: अभाव की हर कथा से बहुत ऊपर होती है मां की गौरवगाथा

मांस्नेह, धैर्य, विश्वास, कितना कुछ समाया होता है इस शब्द में। मां, हमारा शरीर ही नहीं गढ़ती, बल्कि हमारा मन, हमारा व्यक्तित्व, हमारा आत्मविश्वास भी गढ़ती है। और अपनी संतान के लिए ऐसा करते हुए वो खुद को खपा देती है, खुद को भुला देती है। आज मेरे जीवन में, मेरे व्यक्तित्व में जो कुछ भी अच्छा है, वो मां और पिताजी की ही देन है। मेरी मां जितनी सामान्य हैं, उतनी ही असाधारण भी। ठीक वैसे ही, जैसे हर मां होती है। मां की तपस्या, उसकी संतान को सही इंसान बनाती है। मानवीय संवेदनाओं से भरती है। मां एक व्यक्ति नहीं है। मां एक स्वरूप है । अभाव की हर कथा से बहुत ऊपर, एक मां की गौरव गाथा होती है। संघर्ष के हर पल से बहुत ऊपर, एक मां की इच्छाशक्ति होती है। मेरी मां का बचपन उनकी मां के बिना ही बीता। वे मां के आंचल में सिर नहीं छिपा पाईं। उन्होंने देखी तो सिर्फ गरीबी और घर में हर तरफ अभाव। शायद ईश्वर ने उनके जीवन को इसी प्रकार से गढ़ने की सोची थी। बचपन के संघर्षों ने मेरी मां को उम्र से बहुत पहले बड़ा कर दिया था। जिम्मेदारियों व परेशानियों के बीच मां शांत मन से परिवार को संभाले रहीं। घर चलाने के लिए दो चार पैसे ज्यादा मिल जाएं, इसके लिए वे दूसरों के घर के बर्तन भी मांजा करती थीं। समय निकालकर चरखा भी चलाया करती थीं क्योंकि उससे भी कुछ पैसे जुट जाते थे। अपने काम के लिए किसी दूसरे पर निर्भर रहना, अपना काम किसी दूसरे से करवाना उन्हें कभी पसंद नहीं आया। आज भी हर काम में पूर्णता का भाव रखती हैं। साफ-सफाई को लेकर पहले जितनी ही सतर्क हैं। जीवों पर दया करना उनके संस्कारों में झलकता रहा है। पक्षियों के लिए वो मिट्टी के बर्तनों में दाना-पानी जरूर रखती थीं। हर रोज, नियम से गौमाता को रोटी खिलाती थीं, लेकिन सूखी रोटी नहीं, हमेशा उस पर घी लगा के ही देती थीं। भोजन को लेकर उनका हमेशा से ये आग्रह रहा है कि अन्न का एक भी दाना बर्बाद नहीं होना चाहिए। घर में भी नियम था कि उतना ही खाना थाली में लो जितनी भूख हो। मैंने अपने जीवन में आज तक मां से कभी किसी के लिए कोई शिकायत नहीं सुनी। ना ही वो किसी की शिकायत करती हैं और ना ही किसी से कुछ अपेक्षा रखती हैं। उनकी ईश्वर पर अगाध आस्था है, लेकिन वो अंधविश्वास से कोसों दूर रहती हैं। मैं अपनी मां की जीवन यात्रा में देश की समूची मातृशक्ति के तप, त्याग और योगदान के दर्शन करता हूं। मैं जब अपनी मां और उनके जैसी करोड़ों नारियों के सामर्थ्य को देखता हूं, तो मुझे ऐसा कोई भी लक्ष्य नहीं दिखाई देता जो भारत की बहनों-बेटियों के लिए असंभव हो। जब मैं मां से मिलता हूं, तो वो हमेशा कहती हैं, मैं मरते समय तक किसी की सेवा नहीं लेना चाहती। बस ऐसे ही चलते-फिरते चले जाने की इच्छा है। अक्षर ज्ञान के बिना भी कोई सचमुच में शिक्षित कैसे होता है, ये मैंने हमेशा अपनी मां में देखा। उनके सोचने का दृष्टिकोण, उनकी दूरगामी दृष्टि, मुझे कई बार हैरान कर देती है। दूसरों की इच्छा का सम्मान करने की भावना, दूसरों पर अपनी इच्छा न थोपने की भावना, मैंने मां में बचपन से ही देखी है। खासतौर पर मुझे लेकर वो बहुत ध्यान रखती थीं कि वो मेरे और मेरे निर्णयों को बीच कभी दीवार ना बनें। उनसे मुझे हमेशा प्रोत्साहन ही मिला। उनके लिए मैं तो हमेशा बच्चा ही रहा दिल्ली से मैं जब भी गांधीनगर जाता हूं, उनसे मिलने पहुंचता हूं, तो मुझे अपने हाथ से मिठाई जरूर खिलाती हैं। और जैसे एक मां, किसी छोटे बच्चे को कुछ खिलाकर उसका मुंह पोंछती है, वैसे ही मां मुझे कुछ खिलाने के बाद किसी रुमाल से मेरा मुंह जरूर पोंछती हैं। वो अपनी साड़ी में हमेशा एक रुमाल या छोटा तौलिया खोंसकर रखती हैं। नागरिक कर्तव्य को लेकर हमेशा सजग : अपने नागरिक कर्तव्यों के प्रति मां हमेशा से सजग रही हैं। जब से चुनाव होने शुरू हुए, पंचायत से पार्लियामेंट तक के इलेक्शन में उन्होंने वोट देने का दायित्व निभाया। कुछ समय पहले हुए गांधीनगर म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के चुनाव में भी वे वोट डालने गई थीं। कई बार मुझे वो कहती हैं लोगों और ईश्वर का आशीर्वाद तुम्हारे साथ है, तुम्हें कभी कुछ नहीं होगा। पीएम होने पर मुझे भी आपके जितना ही गर्व मेरी मां का मुझ पर बहुत अटूट विश्वास रहा है। उन्हें अपने दिए संस्कारों पर पूरा भरोसा रहा है। जब लोग मां के पास जाकर पूछते हैं कि आपका बेटा पीएम है, आपको गर्व होता होगा, तो मां का जवाब बड़ा गहरा होता है। मां उन्हें कहती है कि जितना आपको गर्व होता है, उतना ही मुझे भी होता है। वैसे भी मेरा कुछ नहीं है। मैं तो निमित्त मात्र हूं। वो तो भगवान का है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Dec 31, 2022, 04:42 IST
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