Opposition Unity: अनसुलझा है विपक्षी एकता का सवाल, लोकसभा चुनाव से पहले 2023 में सेमीफाइनल

वर्ष 2024 में क्या 2014 और 2019 की पुनरावृत्ति होगी, जिसमें नरेंद्र मोदी को स्पष्ट जीत मिली थी या यह 1989, 1996, 2004 के जनादेश जैसा होगा, जिसके कारण केंद्र में खिचड़ी या अल्पकालिक सरकारें बनी थीं 18वें लोकसभा चुनाव से लगभग 16 महीने पहले अटकलें लगाई जाने लगी हैं, क्योंकि राहुल गांधी द्वारा शुरू की गई विशाल 'भारत जोड़ो यात्रा' इस महीने के अंत में श्रीनगर में समाप्त होने वाली है। यात्रा के उद्देश्य को तो पसंद किया गया, लेकिन इसका असर कम रहा है। यह मानते हुए, कि इसने राहुल गांधी की छवि और विश्वसनीयता बढ़ाई है, क्या कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने सुर्खियां बटोरने में जल्दी नहीं कर दी इसके अलावा विपक्षी एकता का सबसे महत्वपूर्ण सवाल भी अभी अनुत्तरित एवं अनसुलझा है। भारत जोड़ो यात्रा से विपक्ष के कई नेता अलग रहे हैं। हैरानी नहीं है कि प्रशांत किशोर ने हाल ही में टिप्पणी की कि नीतीश कुमार की राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से अनुपस्थिति ने विपक्षी एकता के 'तमाशे' को उजागर कर दिया है। जबकि नीतीश कुमार की सरकार को कांग्रेस का समर्थन मिला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके राजनीतिक विरोधियों के लिए वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल की तरह है। असम, केरल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात, हिमाचल से लेकर दिल्ली, हैदराबाद और मध्य प्रदेश के नगर निगमों तक 2022 में हुए चुनावों ने 'भाजपा को लाभ' के संकेत दिए। हालांकि इन जनादेशों ने यह भी संकेत दिया कि विपक्ष भले कमजोर हो सकता है, लेकिन मैदान से पूरी तरह बाहर नहीं होगा। जैसे गुजरात चुनाव से विपक्ष को बहुत कुछ सीखना था, उसी तरह हिमाचल के चुनावी नतीजे मोदी के लिए महत्वपूर्ण सबक हैं। हिमाचल की करीब 96 फीसदी आबादी हिंदू है, जिनमें से 60 फीसदी से ज्यादा ऊंची जातियां हैं, पर मोदी का जादू यहां नहीं चला। इसके विपरीत, गुजरात में विपक्ष को मिले वोटों के बीच विभाजन विपक्षी नेताओं के बीच मौन समझदारी की जरूरत को रेखांकित करता है। लेकिन विपक्षी नेताओं के बीच तुनुकमिजाजी और एक-दूसरे पर हावी होने की प्रवृत्ति को देखते हुए कोई भी गठबंधन या आपसी समझदारी दिवास्वप्न की तरह लगता है। इस वर्ष नौ राज्यों में होने वाले चुनाव मोदी के साथ-साथ कांग्रेस के लिए भी परीक्षा हैं। कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला होगा। कर्नाटक एवं राजस्थान में सरकार परिवर्तन के जमीनी संकेत मिल रहे हैं। क्या कांग्रेस मध्य प्रदेश को भाजपा के चंगुल से निकाल सकती है या मोदी की आदिवासियों और पिछड़े वर्गों तक पहुंच छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल शासन की हार सुनिश्चित कर सकती है विपक्ष के लिए राजनीतिक अंकगणित अपेक्षाकृत सरल है। यदि भाजपा के विजय रथ को हिंदी प्रदेशों (मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़, कुल 65 लोकसभा सीट) में रोक लिया गया और कर्नाटक (28 लोकसभा सीट) में परास्त कर दिया गया, तो 2024 की राह मोदी के लिए जटिल हो जाएगी। हालांकि 2023 के राज्य विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनाव के बीच कोई सटीक संबंध नहीं हो सकता है, लेकिन विपक्ष चाहता है कि लोकसभा में बहुमत के लिए जादुई आंकड़ा यानी 273 सीटों में से आधी सीटें कांग्रेस एवं क्षेत्रीय दलों के बीच बंट जाए। प. बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र और कर्नाटक-चार ऐसे महत्वपूर्ण राज्य हैं, जहां भाजपा ने 2019 में बेहतर प्रदर्शन किया था, लेकिन बाद के राजनीतिक घटनाक्रमों ने नया परिदृश्य सामने ला दिया है। प. बंगाल में भाजपा ने 18 लोकसभा सीटें जीती थीं, जबकि बिहार में जद(यू) के साथ गठबंधन में दोनों पार्टियों ने 40 में से 39 सीटों पर कब्जा किया था। कर्नाटक में भाजपा ने 28 में से 24 सीटें जीती थीं, जबकि महाराष्ट्र में अविभाजित शिवसेना के साथ गठबंधन में 48 में से 42 सीटें जीती थीं। सोचिए, अगर इन राज्यों में भाजपा की ताकत घटकर आधी रह जाए, तो क्या होगा 272 सीटों का साधारण बहुमत दूर का सपना होगा और खिचड़ी सरकार की संभावना वास्तविकता बन जाएगी। कांग्रेस हालांकि नेतृत्व के मुद्दे को सुलझा लेने के बावजूद अपनी आंतरिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए जूझ रही है। वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष खरगे सीधे तौर पर पार्टी की कमान नहीं संभाल रहे। वह शायद मई, 2023 में होने वाले कर्नाटक (जो उनका गृह राज्य है) विधानसभा चुनावों के बाद और अधिक आत्मविश्वास हासिल करेंगे और फरवरी, 2023 के बाद रायपुर सम्मेलन में नई कांग्रेस कार्य समिति का चुनाव या चयन किया जाएगा। राहुल 'हाथ से हाथ जोड़ो' नामक एक दूसरा अभियान शुरू कर सकते हैं। पदयात्रा में राहुल के व्यस्त होने की संभावना है, जबकि खरगे की भूमिका लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी नेताओं से बात करने में होगी। क्या खरगे में वह क्षमता है संभवतः हां, क्योंकि पर्दे के पीछे से उन्हें सोनिया गांधी का भरोसा हासिल है। सोनिया पहले ही उन्हें राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में बने रहने के लिए कह चुकी हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव 2024 में भाजपा को हराने के लिए अन्य विपक्षी दलों के साथ एक बड़ा मोर्चा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन 2023 में उनके अपने गढ़ तेलंगाना में होने वाले विधानसभा चुनाव उनके लिए परीक्षा होंगे कि भविष्य में वह विपक्ष के देवीलाल, वीपी सिंह या हरकिशन सिंह सुरजीत बन सकते हैं या नहीं। राजस्थान कांग्रेस के लिए दर्द बना हुआ है, जहां खरगे की परीक्षा होगी। वहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच प्रतिद्वंद्विता अकेला सबसे बड़ा मुद्दा है। गहलोत को एक ऐसे नेता के रूप में देखा जाता है, जो 25 सितंबर, 2022 को राजस्थान में पार्टी विधायकों की बैठक बुलाने से इनकार करने के बाद गांधी परिवार से अलग हो गए थे। गुजरात में केंद्रीय पर्यवेक्षक के रूप में उनकी भागीदारी कम रही, जिसके कारण राज्य में भाजपा ने सर्वकालिक बड़ी जीत हासिल की। कुछ मायनों में राहुल की भारत जोड़ो यात्रा सफल रही, क्योंकि सार्वजनिक मंचों पर अशोक गहलोत या सचिन पायलट की एक-दूसरे पर की गई टिप्पणी हर बार फीकी पड़ गई। आम धारणा यह है कि अगर राहुल एवं खरगे गहलोत-पायलट को एक नहीं कर सकते, तो वे देश कैसे चलाएंगे!

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 24, 2023, 01:52 IST
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