Mandi News: रविनगर में मीना देवी के घर की बगिया में गुच्छी की महक
मंडी। ऊंचाई वाले क्षेत्रों के घने जंगलों में पाए जाने वाले जंगली मशरूम यानी गुच्छी अब शहरी इलाकों में भी उग रही है। शहर के रविनगर में रहने वाली मीना देवी के घर की बगिया में अब गुच्छी पाई गई है। लहसुन, सरसों व धनिया के हरे पत्तों के बीच गुच्छी को देख कर मीना देवी व उसके परिवार के सदस्य जहां उत्साहित हैं, वहीं आसपास के घरों में रहने वाले लोग भी कुदरत के इस करिश्में को देखने के लिए बगिया में पहुंच रहे हैम।गुच्छी मंडी जिला के सराज क्षेत्र सहित कुल्लू, चंबा, शिमला और अन्य ठंडे पहाड़ी इलाकों के जंगलों में पाई जाती है। यह एक बहुत ही दुर्लभ और महंगी जंगली मशरूम है, जिसे इसके औषधीय गुणों और स्वादिष्ट स्वाद के लिए जाना जाता है। इसके ऊंचे दाम इसकी दुर्लभता और इसे इकट्ठा करने के लिए होने वाले श्रम के कारण हैं। यह आमतौर पर फरवरी से अप्रैल के बीच उगती है और स्थानीय लोग इसे जंगलों से इकट्ठा करके बाजारों में बेचते हैं। विटामिन, फाइबर और आयरन से भरपूर गुच्छी का उपयोग पारंपरिक रूप से प्रतिरक्षा बढ़ाने, पाचन सुधारने और जोड़ों के दर्द को कम करने के लिए किया जाता है। मंडी जिला के सराज के कुथाह में हर साल लगने वाला मेला भी गुच्छी के कारोबार के लिए प्रदेश भर में प्रसिद्ध है। दस से बारह हजार रुपये प्रति किलो बिकने वाली यह गुच्छी अब जंगलों के बजाय मैदानी क्षेत्रों खास कर शहरी इलाके में भी उगने लगी है। दो रोज पहले जिमखाना क्लब में मिली गुच्छीदो रोज पहले शहर के पड्डल स्थित जिमखाना क्लब के बाहर खुले लॉन में भी गुच्छी पाई गई है। मांडव्य उत्सव की पूर्व संध्या में नगर निगम के महापौर वीरेंद्र भट्ट शर्मा व मंगवाई से पार्षद योगराज की नजर गुच्छी पर पड़ी तो वह भी इसे देख हैरान रह गए थे। निचले क्षेत्र में गुच्छी होने के ये हैं कारणडॉ. तारा सेन ठाकुर के अनुसार हाल के वर्षों में हिमालयी क्षेत्रों की विशिष्ट पहचान मानी जाने वाली गुच्छी का प्रकट होना अब निचली ऊंचाइयों पर भी देखा जा रहा है। इसके पीछे कई पर्यावरणीय और मानवीय कारण जिम्मेदार हैं। सबसे प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन है, जिसने उच्च पर्वतीय क्षेत्रों जैसी सूक्ष्म जलवायु अब निचले इलाकों में भी बना दी है। इसके अतिरिक्त वर्षा के पैटर्न में परिवर्तन से मिट्टी में नमी का संतुलन बना रहता है, जो गुच्छी के फलनिकाय बनने के लिए आवश्यक है। वनस्पति में हो रहे बदलावों से नए जैविक अवशेष और सहायक वृक्ष मिल रहे हैं, जिससे गुच्छी कवक को पनपने का अवसर मिल रहा है। कई बार आग लगने या भूमि में गड़बड़ी से मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है, जो कि वृद्धि को प्रेरित करता है। बीजाणुओं का हवा, पानी या मानव गतिविधियों से प्रसार भी इसकी नई जगहों पर उपस्थिति का एक कारण है। साथ ही निचले क्षेत्रों की दोमट और पोषक तत्वों से भरपूर मिट्टी कवक तंतुओं के विकास के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करती है। इन सभी कारणों से अब गुच्छी का विस्तार निचली ऊंचाइयों तक होता जा रहा है। यह वैज्ञानिक शोध का विषय होना चाहिए कि दिखने में गुच्छी वास्तव में गुच्छी ही है या कुछ और है। इसके गुण-दोष परख कर ही इसका सेवन करना चाहिए।-डाॅ. नीलम ठाकुर, सहायक प्राध्यापक, वनस्पति विज्ञान एसपीयूनिचले क्षेत्रों में पर्यावरण में बदलाव के कारण गुच्छी मिली है। ऊपरी क्षेत्रों में काले रंग व निचले में सफेद रंग की गुच्छी मिलती है। इनकी प्रजाति अलग-अलग होती है। मौसम में बदलाव के कारण यह देखने को मिल रही है।-डॉ. तारा सेन ठाकुर, वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर, वनस्पति विज्ञान विभाग मंडी कॉलेज
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 06, 2025, 23:41 IST
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