Supreme Court: महिला अधिकारियों को IAF में स्थायी कमीशन देने पर कोर्ट सख्त, कहा- इन योद्धाओं पर देश को गर्व
भारतीय वायुसेना में शॉर्ट सर्विस कमीशन की महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन न देने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख दिखाया है। अदालत ने साफ कहा कि देश को महिला अफसरों पर गर्व है, चाहे उनकी नियुक्ति किसी भी भूमिका में क्यों न हुई हो। शीर्ष अदालत बुधवार को उन अधिकारियों की अंतिम दलीलें सुन रही थी, जिन्होंने स्थायी कमीशन से वंचित किए जाने पर भेदभाव का आरोप लगाया है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ को वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने बताया कि 2019 की एचआर नीति में बदलाव कर स्थायी कमीशन के लिए मानक बदल दिए गए। उनके अनुसार कई महिला अधिकारी सीजीपीए मानकों पर खरी उतरने के बावजूद गर्भावस्था और मातृत्व अवकाश के कारण चयन प्रक्रिया से बाहर कर दी गईं। उन्होंने दलील दी कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, जिसमें समानता का अधिकार दिया गया है। भेदभाव का आरोप गुरुस्वामी ने अदालत को बताया कि कई एसएससी महिला अफसरों के मामलों में स्पष्ट दिखता है कि उन्हें मातृत्व अवधि के कारण 'नॉन-कंसिडर' किया गया। उन्होंने न्यायालय के पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि महिलाओं को गर्भावस्था के आधार पर भेदभाव का सामना नहीं कराया जा सकता। इसी दौरान एक महिला अधिकारी ने स्वयं अपना जॉब प्रोफाइल समझाया, जिस पर सीजेआई ने कहा कि देश आपकी सेवाओं पर गर्व करता है। हर ड्यूटी जिम्मेदार ड्यूटी होती है। ये भी पढ़ें-पाकिस्तान को धूल चटाने वाला ब्रह्मोस और होगा घातक, पुतिन के भारत दौरे पर एडवांस वर्जन पर चर्चा संभव पिछले आदेश और स्थिति 22 मई को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और वायुसेना को आदेश दिया था कि वे विंग कमांडर निकिता पांडे को सेवा से न हटाएं, जिन्हें ऑपरेशन बालाकोट और ऑपरेशन सिंदूर में अहम भूमिका निभाने के बावजूद स्थायी कमीशन नहीं दिया गया था। अदालत ने कहा था कि भारतीय वायुसेना दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संगठनों में है और उसके अधिकारी देश की असली ताकत हैं। अदालत ने चिंता जताई कि एसएससी अधिकारियों के करियर में लगातार बने रहने वाली अनिश्चितता सैनिक जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। नीति और प्रक्रिया पर सवाल पीठ ने यह भी माना कि SSC अधिकारियों की चुनौतियां नियुक्ति के पहले दिन से शुरू हो जाती हैं, इसलिए 10–15 साल बाद उन्हें स्थायी कमीशन देने की ठोस व्यवस्था होनी चाहिए। अदालत ने कहा कि योग्यता के न्यूनतम मानकों पर समझौता नहीं किया जा सकता, लेकिन प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष होनी चाहिए। 2020 के फैसले के बाद से कोर्ट आर्मी, नेवी, आईएएफ और कोस्ट गार्ड में महिलाओं के स्थायी कमीशन से जुड़े मामलों में कई आदेश दे चुकी है। स्थायी कमीशन का महत्व अदालत को बताया गया कि स्थायी कमीशन मिलने से महिला अधिकारियों को लंबे करियर, प्रोमोशन और पेंशन का पूरा लाभ मिलता है, जबकि एसएससी में सेवा सीमित होती है और भविष्य अनिश्चित रहता है। अब नौदिसंबर को केस की अगली सुनवाई होगी, जिसमें केंद्र और वायुसेना को विस्तृत जवाब देना होगा। यह मामला महिला सैन्य अधिकारों, समान अवसर और सशक्तिकरण की दिशा में एक अहम पड़ाव माना जा रहा है। अन्य वीडियो-
- Source: www.amarujala.com
- Published: Dec 03, 2025, 16:51 IST
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