Supreme Court: 'लिविंग विल' के मुद्दे पर कानून ना बनाकर केंद्र झाड़ रहा पल्ला, सुप्रीम कोर्ट ने कही यह बात

"लिविंग विल" के मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट पिछले दो दिनों से सुनवाई कर रही है। इसी क्रम में गुरुवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार अपनी विधायी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं कर रही है।न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि यह एक ऐसा मामला है जिस पर देश के चुने हुए प्रतिनिधियों को बहस करनी चाहिए। बावजूद इसके अदालत में अपेक्षित विशेषज्ञता का अभाव है। यहां जो भी जानकारी है वह मामले में पार्टियों द्वारा प्रदान की गई है। शीर्ष अदालत ने तंज कसते हुए कहा कि जो क्षेत्र विधायिका के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग करने के लिए हैं, वहां शक्ति का प्रयोग न करके और मुद्दों पर सहमत होकर आप वास्तव में दोषारोपण कर रहे हैं। पीठ ने कहा कि अंतत: आप कहेंगे कि हमने कुछ नहीं किया अदालत ने आदेश पारित किया है। पीठ ने कहा कि शक्तियों के पृथक्करण की योजना के तहत, यह एक ऐसा मामला है जिसे आपको उठाना चाहिए था। यह एक ऐसा मामला है जहां चुने हुए प्रतिनिधियों को बहस करनी चाहिए और सावधानीपूर्वक दिशानिर्देशों के साथ सामने आना चाहिए। गौरतलब है कि इस पीठ में जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और जस्टिस सी टी रविकुमार भी शामिल हैं। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने दिया तर्क सुप्रीम कोर्ट 2018 में जारी लिविंग विल/एडवांस मेडिकल डायरेक्टिव के दिशानिर्देशों में संशोधन की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इस दौरान केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने कहा कि इस मुद्दे पर चर्चा की गई थी और विचार-विमर्श भी किया गया था। उन्होंने कहा, 'किसी भी कानून को पारित नहीं करना एक स्पष्ट निर्णय था। निर्णय को स्वीकार कर लिया गया है और हम शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए मूल निर्देशों से असंतुष्ट नहीं हैं।' 'लिविंग विल' के संभावित दुरुपयोग की आशंका व्यक्त करते हुए शीर्ष कोर्ट की बेंच ने कहा कि इस बात की संभावना है कि इसका दुरुपयोग हो सकता है और इसके लिए सुरक्षा की आवश्यकता है। हम नैतिकता की कमी के बारे में चिंतित हैं जो लाभ कमाने वाले लोगों को प्रेरित कर सकते हैं। इससे सावधान रहने की जरूरत है। हमने देखा है कि रिश्तेदार इस विचार से बहुत प्रभावित हो सकते हैं कि इस व्यक्ति को अपनी संपत्ति के कारण किसी विशेष उपचार से नहीं गुजरना चाहिए। ऐसे में सुरक्षा उपाय होने चाहिए। मंगलवार को होगी सुनवाई शीर्ष अदालत ने एएसजी और दातार को एक साथ बैठने और सोमवार तक अंतिम संकलन प्रस्तुत करने को कहा है। अब मामले की सुनवाई मंगलवार को होगी। शीर्ष कोर्ट ने दिए थे यह संकेत इससे पहले शीर्ष अदालत ने बुधवार को संकेत दिया था कि वह प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट और जिला कलेक्टर को लिविंग विल बनाने की प्रक्रिया से बाहर रखने के सुझाव को स्वीकार कर सकती है। शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह निष्क्रिय इच्छामृत्यु पर अपने 2018 के फैसले की समीक्षा नहीं करेगी और केवल "लिविंग विल" पर दिशानिर्देशों को अधिक व्यावहारिक बनाएगी। इससे पहले मंगलवार को सुनवाई के दौरान पीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में 'कुछ' संशोधन करने का संकेत दिया था। पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा था कि यह विधायिका पर निर्भर करता है कि वह गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिए कानून बनाए जो अपना उपचार बंद करना चाहते हैं। लिविंग विल/एडवांस मेडिकल डायरेक्टिव के दिशानिर्देशों में संशोधन की है मांग पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ 2018 में जारी किए गए लिविंग विल/एडवांस मेडिकल डायरेक्टिव के दिशानिर्देशों में संशोधन की मांग वाली याचिका पर विचार कर रही थी। मंगलवार को द इंडियन सोसाइटी फॉर क्रिटिकल केयर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद पी दातार ने पेश किया था कि इस प्रक्रिया में कई हितधारकों की भागीदारी के कारण सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के तहत बनाई गई प्रक्रिया असाध्य हो गई है। अभी की है यह प्रक्रिया उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के लिविंग विल / एडवांस मेडिकल डायरेक्टिव के दिशानिर्देशों के अनुसार, एक मेडिकल बोर्ड को पहले यह घोषित करना होगा कि मरीज के ठीक होने की कोई गुंजाइश नहीं है या वह ब्रेन डेड है। इसके बाद प्रक्रिया में कहा गया है कि जिला कलेक्टर को दूसरी राय प्राप्त करने के लिए एक स्वतंत्र मेडिकल बोर्ड का गठन करना होगा, जिसके बाद मामला न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम श्रेणी को भेजा जाएगा। वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद पी दातार ने कहा कि पांच न्यायाधीशों की पीठ ने अग्रिम निर्देश जारी करने के तरीके के बारे में कुछ निर्देश दिए थे। एक तीन-चरणीय प्रक्रिया की व्याख्या की गई थी जोकि बहुत बोझिल है। इस दौरान उन्होंने लिविंग विल के संदर्भ में सुझाव दिया कि इसके लिए दो गवाह हो सकते हैं। इसमें न्यायिक मजिस्ट्रेट की भूमिका समाप्त की जा सकती है। दातार ने पीठ को यह भी बताया कि बोर्ड के सुझावों पर वसीयत पर काम किया जा रहा है। हमें मजिस्ट्रेट को बरकरार नहीं रखना चाहिए।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 19, 2023, 21:38 IST
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