Delhi High Court : नगर निगम अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश पर हाईकोर्ट की रोक

हाईकोर्ट ने बुधवार को राजधानी में अवैध निर्माण के लिए दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के अधिकारियों के खिलाफ लोकपाल की ओरसे केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को दिए जांच के आदेश पर रोक लगा दी। अदालत ने कहा कि पूरे विभाग के खिलाफ जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता है। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने लोकपाल के आदेशों के खिलाफ एमसीडी की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया।साथ ही अदालत ने स्पष्ट किया कि अगर लोकपाल को अन्य अधिकारियों या अनधिकृत निर्माण के खिलाफ शिकायत प्राप्त होती है, तो प्राधिकरण कार्रवाई पर कोई रोक नहीं लगाएगा। सीबीआई ने अब तक मामले में पहली सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज नहीं की है। याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सिंह ने कहा कि हालांकि, वह शुरुआत में आदेश पर रोक लगाने के लिए अनिच्छुक थीं क्योंकि उनका मानना था कि लोकपाल ने कुछ साक्ष्य पाए है, लेकिन केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की रिपोर्ट की जांच से पता चला है कि इस स्तर पर कोई जांच नहीं की गई है। अदालत ने कहा, संबंधित अधिकारियों या एमसीडी और अन्य एजेंसियों के खिलाफ कोई विशेष आरोप नहीं लगाया गया है। न्यायालय ने कहा कि क्षेत्राधिकार का मुद्दा और जिस तरीके से लोकपाल को आगे बढ़ना है, वह बाद के स्तर पर उठेगा और इसलिए लोकपाल को मामले में जवाब दाखिल करना चाहिए। अदालत ने मामले की सुनवाई 25 अप्रैल तय की है। एमसीडी ने याचिका में तर्क दिया कि लोकपाल ने दिसंबर 2021 से एक असंगत और सामान्य शिकायत के आधार पर 28 नवंबर को अधिकारियों के खिलाफ जांच का आदेश दिया था, जहां शिकायतकर्ता ने अवैध और अनधिकृत निर्माण के बारे में आरटीआई के तहत डेटा प्राप्त करने के प्रति असंतोष व्यक्त किया था। बंदरों के खतरे के खिलाफ जनहित याचिका बंदरों की नसबंदी के लिए केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली सरकार को जनवरी 2019 में स्वीकृत धनराशि और इस तरह के फंड का उपयोग के मुद्दे को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि नई दिल्ली क्षेत्र में बंदर के काटने के मामलों में लगातार वृद्धि देखी गई है। याचिका में दिल्ली सरकार और एनडीएमसी को एक समिति गठित करने के लिए निर्देश देने की भी मांग की गई है। याचिका में राष्ट्रीय राजधानी और विशेष रूप से नई दिल्ली क्षेत्र में बंदरों के खतरे को रोकने के लिए उच्च न्यायालय द्वारा पूर्व में दिए गए निर्देशों का कार्यान्वयन पर भी जवाब मांगने का आग्रह किया गया है। अधिवक्ता शाश्वत भारद्वाज ने आरोप लगाया कि बंदरों के खतरे से संबंधित गंभीर मुद्दों को अधिकारियों द्वारा पूरी तरह से कुप्रबंधित किया गया है और अधिकारी समय के भीतर प्रजनन नियंत्रण तकनीकों को लागू करने के बजाय केवल टालमटोल करते रहे। दिल्ली उच्च न्यायालय ने पहले एक निर्णय पारित किया था और बंदरो से निपटने के दौरान कुछ निर्देश जारी किए थे। याचिका में कहा गया है कि दिल्ली में बंदरों के खतरे के मुद्दे के साथ, इन निर्देशों को अभी भी प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया है। राष्ट्रीय राजधानी में सत्ता के केंद्रों के चारों ओर घूमने वाले राहगीरों से आश्चर्य की चीख के बीच बंदरों को आम तौर पर देखा जाता है। उज्ज्वला योजना की सांविधानिक वैधता को चुनौती प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) की सांविधानिक वैधता को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता ने कहा कि उक्त योजना के ग्राहकों को प्रति एलपीजी सिलिंडर पर दो सौ रुपये कैशबैक दिया जाता है, जबकि यह लाभ अन्य गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले बीपीएल परिवारों को नहीं दिया जा रहा है। इस तरह से यह योजना असांविधानिक है। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा व न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने मामले की सुनवाई 13 फरवरी के लिए स्थगित कर दी। याचिकाकर्ता के अनुसार पीएमयूवाई योजना को 1 मई, 2016 को शुरू किया गया था जिससे बीपीएल परिवारों को गैस सिलेंडर बेचने वाले एजेंसी के पास बिना राशि का भुगतान किए गैस सिलेंडर मिल सके। इस योजना के तहत तीन साल में 50 लाख परिवारें को गैस कनेक्शन दिए जाने थे। कनेक्शन देने में सरकार 16 सौ रुपए प्रति कनेक्शन के हिसाब से सहायता राशि देती।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 19, 2023, 03:41 IST
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