मुद्दा: उपभोक्ता व्यवहार को आकार दे रहे हैं इन्फ्लुएंसर, उनका निष्पक्ष होना भी जरूरी
इस डिजिटल होते दौर में सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की आजादी को एक नया मंच प्रदान किया है। आज आम जनता से लेकर बड़ी-बड़ी कंपनियां तक इसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर रही हैं। सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर इस बदलाव के सबसे बड़े वाहक बने हैं। आजकल कुछ भी खरीदने से पहले हम इन इन्फ्लुएंसर्स की राय और समीक्षा देखते हैं। यह एक तरह की इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग संस्कृति है, जिसने पारंपरिक मार्केटिंग के तौर-तरीकों को पीछे छोड़ दिया है। इन्फ्लुएंसर अब केवल उत्पादों का प्रचार ही नहीं करते, बल्कि उपभोक्ताओं के भरोसे और निर्णय प्रक्रिया को गहराई से प्रभावित करते हैं। यही वजह है कि आज हर ब्रांड इन इन्फ्लुएंसर का सहारा ले रहा है। कई बार इन्फ्लुएंसर की नकारात्मक समीक्षा कंपनियों को नागवार गुजरती है और वे उस पर मानहानि या कानूनी दबाव बनाने की कोशिश करते हैं। हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि यदि किसी ब्रांड की आलोचना वैज्ञानिक तथ्यों, प्रमाणों और उपभोक्ता हितों पर आधारित हो, तो उसे मानहानि नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने व्यंग्य और अतिशयोक्ति को भी अभिव्यक्ति की आजादी के दायरे में स्वीकार किया है। दरअसल, सैंस न्यूट्रिशन प्राइवेट लिमिटेड नामक एक कंपनी ने चार यूट्यूबर्स के खिलाफ मानहानि का केस किया था। इन यूट्यूबर्स ने अपने चैनल्स पर हेल्थ और न्यूट्रिशन से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करते हुए कंपनी के उत्पाद की गुणवत्ता और उनके विज्ञापन दावों पर सवाल उठाए थे। इसके बाद कंपनी ने इनके खिलाफ मानहानि का दावा किया था। मगर दिल्ली हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सोशल मीडिया पर तथ्य आधारित आलोचना कोई अपराध नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति का अधिकार है। यानी सोशल मीडिया अब एक विशाल जनसंवाद और उपभोक्ता संवाद का मंच बन चुका है। वेबसाइट स्टेस्टिका के मताबिक, भारत में सोशल मीडिया यूजर्स की संख्या करीब 50 करोड़ पहुंच चुकी है। केपीएमजी इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में करीब 80 लाख कंटेंट क्रिएटर्स हैं, जिनमें वीडियो स्ट्रीमर्स, इन्फ्लुएंसर और ब्लॉगर्स शामिल हैं। डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी आईक्यूब्स वायर के अनुसार, करीब 35 फीसदी ग्राहक सोशल मीडिया पोस्ट और रील्स देखकर ही खरीदारी के फैसले करते हैं, मेट्रो शहरों में यह आंकड़ा 80 फीसदी से भी ऊपर है। ऑडियंस आउटलुक फोरकास्ट 2025 रिपोर्ट के मुताबिक, 84 प्रतिशत लोग दस लाख से कम फॉलोअर्स वाले इन्फ्लुएंसर पर ज्यादा भरोसा करते हैं। एफैलेबल एआई इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग फर्म के अनुसार, भारत में अब ब्रांड्स का रुझान माइक्रो और नैनो इन्फ्लुएंसर की ओर तेजी से बढ़ रहा है। ब्रांड्स इन्हें बेहतर इंगेजमेंट दर और अपेक्षाकृत कम खर्च के कारण चुनते हैं। हाइप ऑडिटर की रिपोर्ट के अनुसार, इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग पर औसतन हर एक डॉलर खर्च करने पर ब्रांड्स को करीब चार डॉलर का रिटर्न मिलता है। यही कारण है कि ब्रांड्स अब अपने मार्केटिंग बजट का एक बड़ा हिस्सा इन्फ्लुएंसर पर खर्च कर रहे हैं। फॉर्चून बिजनेस के आंकड़े बताते हैं कि 2024 तक दुनिया भर में इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग का कुल बाजार 20 अरब डॉलर को पार कर चुका है, जबकि 2032 तक इसके 70 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग फर्म क्वोरूज की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत में इन्फ्लुएंसर की संख्या में पिछले चार वर्षों में 322 फीसदी की वृद्धि हुई है। फैशन और ब्यूटी के क्षेत्र में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इन्फ्लुएंसर आमतौर पर दो तरीके से किसी ब्रांड या उत्पाद का प्रचार करते हैं। एक तो पेड और स्पॉन्सर्ड पोस्ट के जरिये, जिसमें ब्रांड्स उन्हें पैसे देकर अपने उत्पाद का प्रचार करवाते हैं, और दूसरा स्वतंत्र समीक्षा के जरिये, जिसमें इन्फ्लुएंसर ईमानदारी से अपने अनुभव उस प्रोडक्ट के लिए साझा करते हैं। हालांकि ग्राहक अक्सर पेड और स्पॉन्सर्ड वीडियो पर कम भरोसा करते हैं। एक सर्वे के मुताबिक, 47 प्रतिशत लोग पेड इन्फ्लुएंसर की बातों को अविश्वसनीय मानते हैं। इसके विपरीत, स्वतंत्र और निष्पक्ष रिव्यू को उपभोक्ता अधिक प्रामाणिक और भरोसेमंद मानते हैं, क्योंकि उन्हें इसमें व्यावसायिक पक्षपात की संभावना कम लगती है। यही कारण है कि जब इन्फ्लुएंसर किसी उत्पाद की ईमानदार समीक्षा करता है, चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक, तो उपभोक्ता उसे विशेष महत्व देते हैं। दिल्ली हाईकोर्ट के हालिया फैसले ने इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है, जो इन्फ्लुएंसर को तथ्य और वैज्ञानिक आधारित आलोचना करने की आजादी देता है। आज इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग एक शक्तिशाली उपकरण बन चुका है, जो ब्रांड्स और उपभोक्ताओं के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी की भूमिका निभा रहा है। जैसे-जैसे इन्फ्लुएंसर की भूमिका उपभोक्ता व्यवहार को आकार देने में अहम होती जा रही है, वैसे-वैसे उनके लिए निर्भीक, निष्पक्ष और स्वतंत्र बने रहना जरूरी हो गया है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: May 20, 2025, 07:08 IST
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