Pauri News: गुरु गोरखनाथ के आर्शीवाद से मिली थी सिद्धबाबा को सिद्धि, रोट चढ़ाने से होते हैं प्रसन्न

चंद्रमोहन शुक्लाकोटद्वार। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र सिद्धपीठ श्री सिद्धबली मंदिर में हर वर्ष श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ रही है। सिद्धबाबा को लेकर अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं। श्री सिद्धबली मंदिर द्वारा प्रकाशित पुस्तक के अनुसार सिद्धबाबा कत्यूर वंश के राजा के पुत्र थे, जिनका पूर्व नाम हरपाल था। इस युवक के बलवान होने के कारण गुरु गोरखनाथ से उन्हें सिद्धियां प्राप्त हुई। जिसके बाद उन्हें सिद्धबाबा के नाम से जाना गया।मान्यता है कि सिद्धबाबा ने पुराने कोटद्वार स्थित सिद्धों के डांडा (वर्तमान सिद्धबली मंदिर वाली पहाड़ी) पर वर्षों तक तप किया और घर से निकलते समय अंतिम बार मां से पकवान खिलाने की इच्छा जताई थी। जंगल जाते वक्त वह सवा सेर आटा और कुछ गुड़ अपने साथ ले गए थे। उसने उसी समय आग में पकाकर उसका रोट बना दिया। रोट प्रसाद रूप में आज भी मंदिर में परंपरागत रूप से चढ़ाया जाता है। मंदिर में हर दिन सवा मुठ्ठी या सवा किलो रोट चढ़ता है। महोत्सव के अनुष्ठान में यह सवा मन का रोट चढ़ता है। रोट चढ़ाने से भगवान सिद्धबाबा प्रसन्न होते हैं। श्री सिद्धबली मंदिर समिति के अध्यक्ष जेपी ध्यानी के अनुसार यह धाम गुरु गोरखनाथ की तपस्या स्थली रहा है। 80 के दशक में मंदिर में बाबा की मूर्ति स्थापित होने के बाद सौंदर्यीकरण हुआ। यह मान्यता भी है कि हनुमानजी संजीवनी बूटी लेने के दौरान इसी मार्ग से हिमालय गए थे।जागर में कही जाती है कथासिद्धबली मंदिर में जब जागर लगाए जाते हैं, तो उसमें इस कथा का विस्तार से वर्णन किया जाता है। इसे सिद्धबाबा के जागर भी कहते हैं। मंदिर में नाथ समुदाय का विशेष महत्व होता है। सिद्धबली के गुरु गोरखनाथ का शिष्य होने के कारण नाथ समुदाय के लोग इस महोत्सव में बड़ी संख्या में शिरकत करते हैं। लैंसडौन के विधायक दिलीप रावत श्री सिद्धबली मंदिर के महंत भी हैं। वह बताते हैं कि स्कंद पुराण के अध्याय 119 में इसका वर्णन मिलता है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Dec 06, 2025, 15:25 IST
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