RIP Shibu Soren: जल-जंगल-जमीन की लड़ाई का महानायक..., आदिवासी राजनीति के स्तंभ पुरुष शिबू सोरेन की कहानी!

झारखंड की राजनीति के सबसे बड़े चेहरे और झारखंड अलग राज्य आंदोलन के अगुआ शिबू सोरेन का सोमवार को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया। वे 81 साल के थे। उनके निधन की खबर से झारखंड में शोक की लहर दौड़ गई है। लोग उन्हें प्यार से "गुरुजी" कहकर बुलाते थे। नेमरा गांव में हुआ था जन्म शिबू सोरेन सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि एक आंदोलनकारी थे जिन्होंने आदिवासी समाज के हक और सम्मान के लिए पूरी जिंदगी संघर्ष किया। शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को झारखंड के रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में हुआ था। बचपन से ही उन्होंने देखा कि कैसे आदिवासी समाज के लोगों का शोषण होता है। इसी अन्याय के खिलाफ उन्होंने 1960 के दशक में आवाज उठानी शुरू की। जल, जंगल और जमीन के हक में शुरू किया आंदोलन 1970 के दशक में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की। उनका मुख्य मकसद अलग झारखंड राज्य बनवाना था। इसके लिए उन्होंने जल, जंगल और जमीन के हक में आंदोलन शुरू किया। 1980 में शिबू सोरेन पहली बार लोकसभा सांसद बने। इसके बाद वे कई बार सांसद बने और संसद में आदिवासी समाज की समस्याओं को जोरदार तरीके से उठाया। शिबू सोरेन की मेहनत और आंदोलन के कारण ही साल 2000 में झारखंड को बिहार से अलग करके एक नया राज्य बनाया गया। यह राज्य 15 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आया। शिबू सोरेन की पहचान सिर्फ एक राजनेता के रूप में नहीं, बल्कि एक जननायक के रूप में रही है जिन्होंने आदिवासी अस्मिता को पहचान दिलाई। तीन बार बने मुख्यमंत्री शिबू सोरेन तीन बार (2005, 2008 और 2009) झारखंड के मुख्यमंत्री बने। उनके कार्यकाल के दौरान आदिवासी कल्याण योजनाओं और विकास कार्यों को आगे बढ़ाने का प्रयास किया गया, हालांकि राजनीतिक अस्थिरता के कारण ये कार्यकाल लंबे समय तक नहीं चल सके। उनके राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए। भ्रष्टाचार और हत्या जैसे गंभीर आरोप भी लगे, हालांकि कई मामलों में वे अदालत से बरी भी हुए। इसके बावजूद वे झारखंड की राजनीति में एक मजबूत जननेता के रूप में पहचाने जाते हैं। शिबू सोरेन, जिन्हें लोग स्नेहपूर्वक "गुरुजी" कहते हैं, ने अपना पूरा जीवन आदिवासी अस्मिता और अधिकारों की लड़ाई को समर्पित कर दिया। उनका जन्म 11 जनवरी 1944 को तत्कालीन बिहार (अब झारखंड) के बोकारो जिले के नेमरा गांव में हुआ। बचपन से ही उन्होंने आदिवासी समाज पर हो रहे शोषण और जमीन छीने जाने की घटनाओं को नजदीक से देखा। 1970 के दशक में उन्होंने जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए आंदोलन शुरू किया और "झारखंड मुक्ति मोर्चा" (झामुमो) की स्थापना की। इस आंदोलन का उद्देश्य अलग झारखंड राज्य की मांग को मजबूती देना और आदिवासी समाज को राजनीतिक पहचान दिलाना था। 1980 में वे पहली बार लोकसभा सदस्य बने और इसके बाद कई बार संसद में आदिवासी समुदाय से जुड़े मुद्दों को मुखरता से उठाया। उनके निरंतर प्रयासों और लंबे संघर्ष के परिणामस्वरूप 15 नवंबर 2000 को झारखंड एक अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। राज्य गठन के बाद उन्होंने तीन बार मुख्यमंत्री पद संभाला। हालांकि गठबंधन राजनीति और अस्थिर समीकरणों के कारण वे लंबे समय तक पद पर नहीं रह सके, फिर भी उन्होंने आदिवासी कल्याण, रोजगार सृजन और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण पहल की। आज शिबू सोरेन को झारखंड में आदिवासी समाज के बड़े नेता और अलग राज्य आंदोलन के अग्रदूत के रूप में याद किया जाता है। उनकी राजनीतिक विरासत झारखंड की अस्मिता, संघर्ष और आत्मसम्मान की कहानी कहती है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Aug 04, 2025, 11:09 IST
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