Hindi Poetry : ऋतु वर्मा 'ऋतु' की 2 कविताएं

मन बंजारा दूर फिरंगी बन कर घूम रहा कोई, मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई; वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा कोई, आ कर कहता है चुपके से मिल गया कोई आज ना तू हठ कर , सुन ले मन की बात ऐसे कैसे चुप कर छिपा रही जज़्बात., ना कर मन की नादानियों को यूँ नज़रंदाज़ देख निगोरी एक पायल तेरी ढूँढ रही कोई दूर फ़िरंगी दूजी पायल ले कर घूम रहा कोई, कभी कभी तो उमड़ उमड़ के बांवड़े मन में आता कोई है ख़ूबसूरत सा ख़्वाब ऐसे तो हरवक्त सखी तू जलती रहीं संताप, अब जब तेरे रूठे अधर को धर रहा कोई न नकार प्रीत विहार के वृक्ष विशाल को रूह मिलन को देख बाँवरी आ गया कोई। जंगम -स्थावर में जो मिले ना वो क्षण मृग मरीचिका में देखो ढूँढ रहा कोई जग तपिश के मर्म में छाँह देने अब वृक्ष विशाल सा मन लिए आ रहा कोई दूर फ़िरंगी अपना बनकर घूम रहा कोई

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 13, 2023, 17:58 IST
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