झगड़ेे, नोक-झोंक व मतभेद वैवाहिक जीवन का हिस्सा, इसे क्रूरता नहीं माना जा सकता : हाईकोर्ट
कहा-जो वैवाहिक जीवन को जारी रखना असंभव बना दे, केवल उसे माना जा सकता है क्रूरता-तलाक की मांग को लेकर दाखिल की गई पत्नी की याचिका हाईकोर्ट ने की खारिजअमर उजाला ब्यूरोचंडीगढ़। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा, साधारण झगड़े, नोकझोंक या मतभेद को क्रूरता नहीं माना जा सकता और न ही इसे आधार बनाते हुए तलाक दिया जा सकता है। क्रूरता की श्रेणी वह है जो इतनी गंभीर हो कि पीड़ित पक्ष के लिए वैवाहिक जीवन जारी रखना हानिकारक या असंभव हो जाए।हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए एक महिला ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। फैमिली कोर्ट ने उसकी तलाक याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि पति पर लगाए गए मानसिक और शारीरिक क्रूरता के आरोप प्रमाणित नहीं हो सके। पत्नी ने आरोप लगाया था कि पति ने दहेज में कार मांगी थी और कई बार मारपीट की थी। पति की पिटाई इतनी क्रूर थी कि उसकी नाक की हड्डी तक टूट गई और उसे पानीपत के सिविल अस्पताल में इलाज कराना पड़ा।फैमिली कोर्ट ने साक्ष्यों की पड़ताल के बाद पाया कि दहेज मांगने के आरोप मनगढ़ंत और झूठे थे। वहीं, चोट और मारपीट के दावों को साबित करने के लिए पत्नी कोई मेडिकल दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सकी। इसके उलट, पत्नी ने अपनी जिरह में स्वयं स्वीकार किया कि उसकी आंख बचपन से ही टेढ़ी थी और बाएं नेत्र की दृष्टि भी कमजोर थी। मेडिकल रिकॉर्ड से भी यह साबित हुआ कि पत्नी का इलाज पति ने ही एम्स, दिल्ली में करवाया था। इससे अदालत को यह निष्कर्ष मिला कि चोट और बीमारी के आरोप वास्तविकता से मेल नहीं खाते। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने पत्नी की अपील खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। जस्टिस गुरविंदर सिंह गिल और जस्टिस दीपिंदर सिंह नलवा की खंडपीठ ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत तलाक की मांग तभी स्वीकार की जा सकती है जब आचरण इतना गंभीर हो कि सहजीवन संभव न रह जाए।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Sep 13, 2025, 18:53 IST
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