क़तील शिफ़ाई: अब मुझे कुछ तिरी गलियों के सिवा याद नहीं

रास्ते याद नहीं राह-नुमा याद नहीं अब मुझे कुछ तिरी गलियों के सिवा याद नहीं फिर ख़यालों में वो बीते हुए सावन आए लेकिन अब तुझ को पपीहे की सदा याद नहीं एक वा'दा था जो शीशे की तरह टूट गया हादिसा कब ये हुआ कैसे हुआ याद नहीं हम दिया करते थे अग़्यार को ता'ना जिन का अब तो हम को भी वो आदाब-ए-वफ़ा याद नहीं वज़्अ'-दारी से है मजबूर मिरा प्यार 'क़तील' सब पुराने हैं कोई दाग़ नया याद नहीं

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jun 12, 2025, 13:00 IST
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