मुद्दा: हाईवे बनाने जितना ही जरूरी है हादसे रोकना, इसमें मीडिया की भी भूमिका अहम

यह बात बहुत हैरान करने वाली है कि भारत में दुनिया के सिर्फ एक प्रतिशत वाहन हैं, लेकिन सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतें 11 प्रतिशत हैं। पिछले चार वर्षों में भारत की सड़कों पर इतने लोग काल के गाल में समा गए, जितनी फिनलैंड की कुल आबादी है। रोड एक्सीडेंट इन इंडिया रिपोर्ट बताती है कि 2018 से 2022 के बीच पांच वर्षों में 7.77 लाख मौतें हुईं। इनमें सबसे ज्यादा 1.08 लाख उत्तर प्रदेश, 84 हजार तमिलनाडु और 66 हजार के साथ महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर रहा। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में बताया कि वर्ष 2024 में लगभग पांच लाख दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 1.80 लाख लोगों की मौतें हुईं। इससे भी ज्यादा विचलित करने वाली बात यह है कि हर दिन औसतन 42 बच्चे और 31 किशोर सड़कों पर जान गंवा बैठते हैं। सड़क पर एक भी बच्चे की मौत एक पूरे परिवार को जीवन भर के लिए अवसाद में डाल देती है। जैसा भारत के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन के साथ हुआ। हैदराबाद में तेज रफ्तार से सुपरबाइक चलाते हुए उनके बेटे और भतीजे की दुर्घटना में मौत हो गई। एक और ऐसी सड़क दुर्घटना हुई, जिसके बारे में विशेषज्ञ भी बातें करते हुए चिंतित हो जाते हैं। उस दुर्घटना में टाटा संस के पूर्व चेयरमैन और टाटा मोटर्स के शीर्ष अधिकारी सायरस मिस्त्री की सड़क पर ही मौत हो गई। वह एक लग्जरी कार की पिछली सीट पर बैठे हुए थे, लेकिन उन्होंने सीट बेल्ट नहीं बांधा था, जिससे वह कार की विंडो से बाहर गिर गए। यह दुर्घटना एक उदाहरण है कि कैसे भारत में पढ़े-लिखे जानकार लोग भी लापरवाही करते हैं। यहां जागरूकता का सवाल नहीं है। यहां तो सिर्फ और सिर्फ लापरवाही का मामला है। डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ का मानना है कि भारत में इतनी ज्यादा मौतों पर सभी को जगना होगा, कानूनों का सख्ती से पालन करना होगा, सड़कों को सुरक्षित बनाना होगा व सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे। देश में हर दिन 34 किलोमीटर हाईवे बन रहे हैं, पर सड़क दुर्घटनाओं से बचने के बारे में वहां पर कोई ठोस समाधान नहीं है। डिजाइन संबंधी बदलाव तो हुए हैं और कुछ काम भी हुए हैं, लेकिन अभी काफी कुछ करना होगा। आंकड़े भयावह हैं। तेज गति में गाड़ी चलाने से 75.2 प्रतिशत, गलत दिशा में गाड़ी चलाने से 5.8 प्रतिशत और शराब या नशे के प्रभाव में ड्राइविंग करने से 2.5 प्रतिशत मौतें होती हैं। हादसों में 86 प्रतिशत पुरुष और 14 प्रतिशत महिलाओं की मौत रिकॉर्ड की गई है। 67.2 प्रतिशत मौतें ग्रामीण इलाकों में और 32.2 प्रतिशत शहरी इलाकों में होती हैं। हादसों के लिए नेशनल हाईवे सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। वर्ष 2022 में हर सौ किलोमीटर पर 45 मौतें दर्ज की गईं। निमहांस/रासी के अनुसार, 24 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में हुए हादसों में जान जाती है, जिनमें से 50 प्रतिशत घटनास्थल पर ही दम तोड़ देते हैं। अधिकतर मामलों में सिर या शरीर के निचले हिस्से में चोट लगती है। 82 प्रतिशत घातक सड़क दुर्घटनाएं बच्चों के साथ हुईं। स्पीड थ्रिल्स बट किल्स की थ्योरी के अनुरूप, भारत में बाइक दुर्घटनाओं की तादाद हर दिन बढ़ती जा रही है। उत्साही नौजवान न केवल लापरवाही से दोपहिया चलाते हैं, बल्कि हेलमेट भी नहीं पहनते। इसका नतीजा है कि हर साल ऐसे 10,000 चालकों की मौत हो जाती है। एनसीआरबी की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, 14 वर्ष तक के 25 प्रतिशत और 14 से 17 वर्ष के 75 प्रतिशत किशोर सड़क हादसों के शिकार हुए। दस राज्यों में 40 प्रतिशत बच्चों और किशोरों की सड़क हादसों में मौत हुई। सड़क हादसों में सबसे ज्यादा मौतें पैदल चलने वालों और दोपहिया सवारों की होती हैं। इनमें 40.7 प्रतिशत दोपहिया चालक, 16.9 प्रतिशत पैदल यात्री भारी वाहनों की चपेट में आए। वहीं 14.1 प्रतिशत कार सवार, 8.8 प्रतिशत ट्रक/लॉरी और 4.5 प्रतिशत तिपहिया (ऑटो रिक्शा) सवार हादसे का शिकार हुए। आज के बच्चे कल के नागरिक हैं, इसलिए उन्हें स्कूल, कॉलेजों से ही यातायात के नियमों का पालन करने के लिए प्रोरित किया जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2021 से 2030 के बीच सड़क हादसों से होने वाली मौतों को 50 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य तय किया है। भारत सरकार भी इस लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश कर रही है। इसके लिए नीति तो बनाई गई है, लेकिन उसे कार्यान्वित करने की दिशा में गंभीर प्रयासों की जरूरत है। जागरूकता, जिम्मेदारी का एहसास, जल्दबाजी और नियमों की अनदेखी-इन सभी पर काम होना चाहिए। नागरिकों को खुद जागना होगा और दूसरों को जगाना होगा। हाल ही में यूनिसेफ ने रोड सेफ्टी पर एक कार्यशाला का आयोजन किया, जिसका उद्देश्य था, सड़क सुरक्षा को बच्चों के अधिकार, जन स्वास्थ्य और विकास के मुद्दे के रूप में दोबारा स्थापित करना। यहां पर मीडिया की भूमिका ज्यादा अहम हो जाती है, जो लोगों को सड़क दुर्घटना से बचाव के लिए जागरूक कर सकता है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jun 19, 2025, 07:53 IST
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