Marriage Bill: बाल विवाह विधेयक की जांच करने वाले पैनल में मांगा 3 महीने का विस्तार, 24 जनवरी को हो रहा समाप्त

भाजपा सांसद विवेक ठाकुर की अध्यक्षता वाली शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल संबंधी स्थायी समिति ने बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक की जांच के लिए अपने कार्यकाल के बाद तीन महीने का और विस्तार मांगा है। इस समिति काअंतिम विस्तार 24 जनवरी को समाप्त हो रहा है।समिति ने गुरुवार कोअपनी बैठक में विस्तार की मांग करने पर सहमति व्यक्त की और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ से इसकी मंजूरी का अनुरोध करेगी। विवेक ठाकुर ने पिछले साल अक्तूबर मेंडॉ विनय सहस्त्रबुद्धे के सेवानिवृत्त होने के बाद समिति का पदभार संभाला था। तब से पैनल ने विवाह विधेयक को लेकरकई बैठकें की हैं और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय सहित विभिन्न हितधारकों से परामर्श किया है। हालांकिसमितिकोसंसद में अपनी रिपोर्ट पेशकरने से पहले अभी भी बड़ी संख्या में परामर्श करना बाकी है। 2021 में शीतकालीन सत्र के दौरान पेश किया गया था विधेयक समिति के एक शीर्ष सूत्र नेबताया किबजट सत्र 31 जनवरी से शुरू होगा।बजट सत्र के पहले और दूसरे भाग के बीच अवकाश की अवधि के दौरान किसी भी अन्य पैनल की तरह हम भी अनुदान मांगों पर चर्चा करेंगे। इसमें पैनल का काफी समय लगेगा। यही कारण है कि हमविस्तार की मांग कर रहे हैं।बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक संसद में 2021 के शीतकालीन सत्र के दौरान पेश किया गया था और इसे तुरंत संसदीय जांच के लिए भेजा गया था। पुरुषों और महिलाओं के लिए विवाहकी आयु को 21 वर्ष करना विधेयक का मकसद बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021, पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए विवाह समानता की आयु को 21 वर्ष करने के लिए 'बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (PCMA)' में संशोधन चाहता है, जो वर्तमान में पुरुषों के लिए 21 वर्ष और महिलाओं के लिए 18 साल है। यानी भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872; पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936; द मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937; विशेष विवाह अधिनियम, 1954; हिंदू विवाह अधिनियम, 1955और विदेशी विवाह अधिनियम, 1969 मेंशादी की उम्र से संबंधित कानूनों में परिणामी संशोधन चाहता है।साथ ही 'द हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट, 1956' नाम के कानून; और 'हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम, 1956' इस संदर्भ से संबंधित हैं। प्रस्तावित कानून को प्रभावी करने के ये हैं मुख्य कारण भारतीयसंविधान के तहत मौलिक अधिकार और राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत (विशेष रूप से समानता का अधिकार और शोषण के खिलाफ अधिकार) लैंगिक समानता की गारंटी देते हैं।प्रस्तावित कानून सरकार की प्रतिबद्धता की दिशा में एक मजबूत उपाय है क्योंकि यह महिलाओं को पुरुषों कोसमान स्तर पर लाएगा।मातृ मृत्यु दर (एमएमआर), शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) को कम करने और पोषण स्तर में सुधार के साथ-साथ जन्म के समय लिंग अनुपात (एसआरबी) में वृद्धि की अनिवार्यताएं हैं। ये प्रस्तावित कानून को प्रभावी करने के मुख्य कारण हैं।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 19, 2023, 23:29 IST
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