Padma Vibhushan: डॉ. महालनाबिस को पद्म विभूषण, जानें 1971 की जंग के दौरान उनके ORS ने कैसे बचाई थीं जिंदगियां

बुधवार को सरकार ने पद्म पुरस्कारों की घोषणा की। पश्चिम बंगाल के डॉ. दिलीप महालनाबिस को मरणोपरांत पद्म विभूषण के लिए चुना गया है। डॉ. महालनाबिस को ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन यानी ORS के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए इस सम्मान से नवाजा जाएगा। डॉ. महालनाबिस का पिछले वर्ष अक्तूबर में 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया था। ORS कितना महत्वपूर्ण और क्यों चुने गए डॉ. महालनाबिस ORS को 20वीं शताब्दी की सबसे महत्वपूर्ण चिकित्सकीय खोज माना गया है। इससे हर साल दुनियाभर में पांच करोड़ लोगों की जान बचती है। ORS आसान और सस्ता, लेकिन बेहद असरदार सॉल्यूशन है। इसका इस्तेमाल खासकर बच्चों और नवजात शिशुओं की जान बचाने में कारगर है। डायरिया, शरीर में पानी की कमी और हैजा की वजह से होने वाली मौतों में 93% की कमी ORS के इस्तेमाल की वजह से आई है। 1971 में जब बांग्लादेश मुक्ति संग्राम हो रहा था, तब बड़े पैमाने पर बांग्लादेश से लोग पश्चिम बंगाल में आ रहे थे। उनके लिए कई शरणार्थी शिविर बनाए गए थे। तब इन शिविरों में हैजा फैल गया था। कई शरणार्थी इससे बीमार हो गए थे। तब डॉ. महालनाबिस ने ORS के इस्तेमाल को बढ़ावा देकर कई लोगों की जान बचाई थी। बाल स्वास्थ्य संस्थान को दान की थी एक करोड़ रुपये डॉक्टर महालनाबिस ने कोलकाता के पार्क सर्कस इलाके में स्थित बाल स्वास्थ्य संस्थान को अपनी जीवन भर की कमाई के एक करोड़ रुपये दान किए थे। तब संस्थान के निदेशक अपूर्वा घोष ने कहा था कि इन पैसों से बच्चों के लिए एक नया वार्ड बनाया गया है और इसका नाम उनके और उनकी पत्नी के नाम पर रखा गया था। 12 नवंबर 1934 को हुआ था डॉ. महालनाबिस का जन्म 12 नवंबर 1934 को पश्चिम बंगाल में जन्मे डॉ. महालनाबिस ने जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी इंटरनेशनल सेंटर फॉर मेडिकल रिसर्च एंड ट्रेनिंग में ओरल रिहाइड्रेशन थैरेपी पर अध्ययन किया था। 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बाद वे 1975 से 1979 तक अफगानिस्तान में भी WHO की तरफ से हैजा नियंत्रण के प्रयासों में शामिल रहे। बाद में वे WHO के डायरिया नियंत्रण कार्यक्रम में भी शामिल थे। 1994 में उन्हें रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेस का सदस्य चुना गया। 2006 में ओरल रिहाइड्रेशन थैरेपी के क्षेत्र में योगदान के लिए थाइलैंड के प्रतिष्ठिति प्रिंस महिदोल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। ओरल रिहाइड्रेशन से हजारों लोगों की बचाई थी जान डॉक्टर दिलीप महालनाबिस को ओरल रिहाइड्रेशन थेरेपी के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए जाना जाता है। वह पहली बार वर्ष 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के समय चर्चा में आए थे। जब बनगांव में बांग्लादेशी नागरिकों के शरणार्थी कैंप में हैजा की बीमारी फैल गई थी। बड़ी संख्या में शरणार्थी हैजा की चपेट में आ गए थे। तब डॉक्टर महालनाबिस ने ओरल रिहाइड्रेशन के जरिए हजारों लोगों की जान बचाई थी। उस समय बनगांव शरणार्थी शिविर में सेलाइन की कमी थी। डॉ. महालनाबी ने चीनी, नमक और पानी का घोल तैयार कर एक ड्रम में रख दिया था। इसकी उपयोगिता के बारे में लोगों को समझाने के लिए उन्होंने इसे ओरल सेलाइन कहा था। उन्होंने शरणार्थी शिविर में हैजा के पीड़ित लोगों से तब तक पानी पीने को कहा, जब तक उन्हें भूख नहीं लग जाती है या वे कमजोर महसूस न करें। इस तरह, उसने कई लोगों को हैजा से ठीक किया। हैजा की मृत्यु दर को 50 प्रतिशत से घटाकर तीन प्रतिशत हो गई थी डॉक्टर दिलीप महालनाबिस ने 1971 में ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन (ओआरएस) के साथ थेरेपी से युद्ध के हजारों शरणार्थियों के बीच हैजा की मृत्यु दर को 50 प्रतिशत से घटाकर तीन प्रतिशत कर दिया था। इस युद्ध के बाद बांग्लादेश को स्वतंत्रता मिली थी। ओआरएस ने तब से दुनिया भर के लाखों बच्चों की जान बचाई है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 25, 2023, 21:10 IST
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