यह आतंक का नया त्रिकोण है: बांग्लादेशी कट्टरपंथी रच रहे नए रणनीतिक त्रिकोण, भारत की तरफ से गहन निगरानी जरूरी
भारत ने 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता में अहम भूमिका निभाई थी। उस समय बांग्लादेश के मुक्ति योद्धाओं ने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में शरण ली और वहीं से पाकिस्तान के खिलाफ अपना स्वतंत्रता संग्राम लड़ा। स्वाभाविक रूप से, बांग्लादेश के लोगों को पूर्वोत्तर भारत के लोगों के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए, जिन्होंने कठिन समय में उनकी मदद की। लेकिन समय के साथ स्थिति उलटी होती चली गई, और आज पूर्वोत्तर भारत को बांग्लादेश से उत्पन्न कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। हाल ही में बांग्लादेश के एक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी मेजर जनरल एएलएम फजलुर रहमान ने विवादास्पद बयान देते हुए कहा कि 'अगर भारत ने पाकिस्तान पर हमला किया, तो बांग्लादेश को भारत के सभी पूर्वोत्तर राज्यों पर कब्जा कर लेना चाहिए।' यह बयान तब आया, जब 22 अप्रैल, 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 हिंदुओं की मौत हो गई और भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया था। फजलुर रहमान पूर्व में बांग्लादेश राइफल्स (अब बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश) के प्रमुख रह चुके हैं और दिसंबर, 2024 में मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार द्वारा 2009 के बांग्लादेश राइफल्स विद्रोह की जांच के लिए गठित राष्ट्रीय स्वतंत्र आयोग के अध्यक्ष नियुक्त किए गए। उनके इस बयान पर बांग्लादेश सरकार ने सफाई देते हुए कहा कि ये उनके निजी विचार हैं और सरकार का इससे कोई लेना-देना नहीं है। विदेश मंत्रालय ने साफ कहा कि बांग्लादेश 'संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता, आपसी सम्मान और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व' के सिद्धांतों का पालन करता है। हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब बांग्लादेश की ओर से पूर्वोत्तर भारत को लेकर असंवेदनशील और विस्तारवादी संकेत मिले हों। बांग्लादेश का जनसंख्या घनत्व दुनिया में सबसे अधिक है और संसाधन सीमित हैं। ऐसे में अक्सर यह आरोप लगता रहा है कि बांग्लादेश अवैध प्रवास को अपनी अनाधिकारिक नीति की तरह इस्तेमाल कर भारत के पूर्वोत्तर में जनसांख्यिकीय बदलाव लाने का प्रयास कर रहा है। वर्ष 1947 के विभाजन के बाद और फिर 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान लाखों हिंदू शरणार्थी भारत आए। समय के साथ बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रवासी भी अवैध रूप से भारत में घुसे, जो आर्थिक कारणों से भारत आ रहे थे। बांग्लादेश ने कभी इस अवैध घुसपैठ को स्वीकार नहीं किया, बल्कि जब भी भारत सीमा पर बाड़बंदी करता है या सुरक्षा कड़ी करता है, तो बांग्लादेश हमेशा विरोध करता है। इतिहास गवाह है कि बांग्लादेश की कुछ सरकारों ने भारत विरोधी तत्वों और पूर्वोत्तर भारत के उग्रवादियों को समर्थन दिया है। सैन्य शासन और बीएनपी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) के दौर में यह नीति ज्यादा स्पष्ट थी। खालिदा जिया ने तो पूर्वोत्तर भारत के उग्रवादियों को 'स्वतंत्रता सेनानी' तक कह दिया था। परंतु 2009 में शेख हसीना के सत्ता में आने के बाद इस नीति में बदलाव आया और उन्होंने भारत के साथ मिलकर उग्रवाद को कुचलने का कार्य किया, जिससे पूर्वोत्तर भारत में शांति बहाल हुई। भारत के साथ शेख हसीना की सहयोगी नीति और आतंकी तत्वों के खिलाफ कठोर रवैये को बांग्लादेश के कट्टरपंथी और भारत विरोधी ताकतों ने कभी स्वीकार नहीं किया। लेकिन जब पांच अगस्त, 2024 को शेख हसीना की सरकार को सत्ता से हटाया गया और मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार बनी, तो इन तत्वों ने फिर से सिर उठाना शुरू कर दिया। फजलुर रहमान का बयान इस बात का संकेत है कि कट्टरपंथी अब दोबारा सक्रिय हो रहे हैं और भारत विरोधी रणनीतियों को पुनर्जीवित कर रहे हैं। उन्होंने न सिर्फ भारत के खिलाफ युद्ध की बात की, बल्कि चीन के साथ सैन्य गठबंधन की भी वकालत की। उन्होंने यह भी कहा कि चीन को अरुणाचल प्रदेश पर दावा करना चाहिए। उन्होंने बांग्लादेश को समुद्र का 'रक्षक' बताते हुए भारत के उत्तर-पूर्व को घेरे में लेने की बात की। मोहम्मद यूनुस भी पूर्वोत्तर भारत को 'लैंडलॉक्ड' कहकर उसे बांग्लादेश पर निर्भर बताने की कोशिश कर चुके हैं। यह एक तरह से रणनीतिक दबाव बनाने की कोशिश है। इसी तरह, यूनुस सरकार के कानूनी सलाहकार आसिफ नजरूल ने पहलगाम हमले पर आपत्तिजनक टिप्पणी की, जिसे बाद में हटा दिया गया। वह लश्कर-ए-ताइबा से जुड़े हारून इजहार से भी मिले थे, जिससे बांग्लादेश की आतंकी नीति पर चिंता बढ़ गई है। भारत ने इस पूरे घटनाक्रम को गंभीरता से लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिम्सटेक सम्मेलन में मोहम्मद यूनुस को चेतावनी देते हुए कहा कि भारत की क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ बयानबाजी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी स्पष्ट कहा कि 'सहयोग का मतलब अपनी सुविधा के अनुसार चुनना नहीं होता।' ऐसे में भारत ने अपने सुरक्षा बलों को बांग्लादेश और म्यांमार की सीमाओं पर सतर्क रहने का निर्देश दिया है। सुरक्षा एजेंसियों को शक है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई अब बांग्लादेश के इस्लामी चरमपंथियों का इस्तेमाल कर भारत के खिलाफ षड्यंत्र रच सकती है। इससे यह भी साफ है कि चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के कट्टरपंथी अब एक नए रणनीतिक त्रिकोण की रचना कर रहे हैं, जो भारत के खिलाफ काम कर सकता है। पाकिस्तान और बांग्लादेश के इस नए समीकरण के पीछे चीन की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता, जो अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा जताता रहा है और दक्षिण एशिया में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है। इन सबके बीच, भारत ने बांग्लादेश में चल रही रेल परियोजनाओं पर फिलहाल रोक लगा दी है। यह कदम वहां की राजनीतिक अस्थिरता और भारत विरोधी भावनाओं को देखते हुए उठाया गया है। मौजूदा स्थिति में भारत के लिए आवश्यक है कि वह पूर्वोत्तर की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दे और बांग्लादेश में उभरते हुए राजनीतिक घटनाक्रमों पर गहन निगरानी बनाए रखे। एक अस्थिर और भारत विरोधी बांग्लादेश दक्षिण एशिया की शांति और भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, दोनों के लिए खतरा बन सकता है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: May 19, 2025, 06:04 IST
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