Panchkula News: जीएम सरसों का साग भी खाने लायक नहीं

चंडीगढ़। जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) सरसों के मुद्दे पर सोमवार को पंजाब विधानसभा परिसर में हुई चर्चा के दौरान किसानों और कृषि विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे। ज्यादातर विचार जीएम सरसों के विरुद्ध रहे हालांकि कई विशेषज्ञों ने इसका समर्थन भी किया। चर्चा सत्र की शुरुआत से पहले स्पीकर कुलतार सिंह संधवां ने कहा कि किसी भी विषय पर कानून बनाने से पहले प्रभावी बहस जरूरी है ताकि किसी तरह की कोई कमी न रहे। पंजाब कृषि आधारित राज्य है इसलिए जीएम सरसों के विषय पर पूरी बहस होनी चाहिए। कृषि राज्य का विषय है और इसे राज्यों की इच्छा पर छोड़ना चाहिए। अगर केंद्र सरकार इसे जबरन लागू करेगी तो यह लाजिमी तौर पर संघवाद पर हमला होगा।चर्चा की शुरुआत बड़ोदा के कृषि विशेषज्ञ कपिल भाई शाह ने की, जिनके बाद पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी लुधियाना के प्रोफेसर जगदीप सिंह संधू, पीएयू लुधियाना की पूर्व पथोलोजिस्ट डा. सतविंदर कौर, डा. ओपी चौधरी, जीएनडीयू के बायो-टेक्नोलॉजी के प्रमुख डा. प्रताप कुमार, पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डा. सतवीर सिंह गोसल, गुरू अंगद देव वेटनरी और एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी लुधियाना के वीसी डा. इंद्रजीत सिंह, प्रसिद्ध कृषि विशेषज्ञ दविन्दर शर्मा, कृषि विरासत मिशन के कार्यकारी निर्देशक ओमिन्दर दत्त, कृषि विशेषज्ञ कविता, प्रसिद्ध किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल, जगजीत सिंह डल्लेवाल, जगमोहन सिंह और राजिन्दर सिंह दीप सिंह वाला ने अपने विचार पेश किए।कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि जीएम सरसों भारतीय सरसों के जीन के साथ छेड़छाड़ करके बनाई गई है और इस पर किसी भी कीटनाशक दवा का प्रभाव नहीं होगा। जीएम सरसों की फसल जब तैयार होगी तो उसका तेल तो निकाल लिया जाएगा लेकिन इसका बीज दोबारा बीजा नहीं जा सकेगा इसलिए हर साल कंपनी से इसके बीज खरीदने पड़ेंगे। इस फसल के आने से किसान कंपनियों पर निर्भर हो जाएगा। वहीं कई विशेषज्ञों का मानना था कि कम उत्पादन वाले बीजों के कारण सरसों अधीन क्षेत्रफल घटा है, वहीं कुछेक का कहना था कि ऐसा सरसों की फसल की उचित कीमत न मिलने और खरीद की गारंटी न होने के कारण हुआ है। उनका यह भी कहना था कि जिस जीएम सरसों के बीज से अधिक फायदे के दावे किए जा रहे हैं, उससे ज्यादा उत्पादन पैदा करने और तेल की अधिक मात्रा वाले सरसों के बीजों की पांच किस्में हमारे पास पहले ही मौजूद हैं। जीएम सरसों के विरोध में विशेषज्ञों ने इसे सेहत के लिए नुकसानदायक और इसका साग खाने योग्य न होने की आशंका जताई। उन्होंने कहा कि जीएम सरसों से सबसे ज्यादा नुकसान शहद की मक्खियों और पराग वाले कीटों को होगा।केंद्र सरकार की मंशा पर भी उठाए सवालकुछ विशेषज्ञों का कहना था कि जीएम सरसों के बीज को मंजूरी भारत सरकार की उस नीति का हिस्सा है, जिसके जरिये वह किसानों को खेती से बाहर करके भोजन को कारपोरेट घरानों के हवाले करना चाहती है। जीएम बीजों की तकनीक का पेटैंट अंतरराष्ट्रीय कारपोरेट के पास होने की बात कही गई। जीएम सरसों का विरोध करने वालों का मानना है कि भारत सरकार फसलों, सब्जियों, दालों और तेल बीजों के परंपरागत और देसी बीज खत्म करवाकर अंतरराष्ट्रीय कंपनियों का एकाधिकार कायम करवाना चाहती है ताकि किसान उनका मोहताज बन जाए।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 17, 2023, 01:12 IST
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