Noida News: ई कॉमर्स व घरेलू सुविधाओं की चकाचौंध में माल का मजा फीका

एडवांस खबर - पेज 4ई कॉमर्स व घरेलू सुविधाओं की चकाचौंध में माल का मजा फीका - घर बैठे मिल रही स्पा से लेकर खाने तक की सुविधाएं, दैनिक जरूरतों के भी ऐप माई सिटी रिपोर्टरनोएडा।हाल ही में सेक्टर 38 ए स्थित जीआईपी मॉल के बिकने की खबरें सामने आई हैं। वहीं शहर के बाकी मॉल्स में कोराना काल से पहले की तुलना में भीड़ करीब एक चौथाई रह गई है। कोविड का दौर खत्म होने के बाद एक ओर तो जिंदगी वापस पटरी पर लौट रही है। वहीं बदले हुए जीने के अंदाज जहां कई नए रोजगार लेकर आए हैं तो कई लोगों की आमदनी को तगड़ा झटका भी लगा है। खाना खाने के लिए जोमेटो, स्वैगी, अनाज मंगाने के लिए बिलंकिट, बिग बास्केट, सैलून के लिए यश मैडम व अर्बन क्लैप जैसे ऐप ने लोगों की दिनचर्या में बड़ा परिवर्तन लाने के साथ ही मॉल्स व स्थानीय बाजारों की जरूरतों को भी घटाया है। इसका असर शहर के मॉल्स में पसरे सन्नाटे के तौर पर देख सकते हैं। कोविड के बाद शहर के सभी मॉल्स में आधे से अधिक शोरूम बंद हुए। उनमें से कुछ तो दोबारा नए कलेवर में खुले हैं तो कुछ अभी भी नुकसान में हैं। सेक्टर 61 शॉपिक्स मॉल में शैलून चलाने वाले तौशीन कहते हैं कि कोविड के बाद लोगों की आवाजाही घटी है। ग्राहक घरों में मिलने वाली सर्विस पर निर्भर होने लगे हैं। शुरुआत में ऐप अच्छे ऑफर भी देते हैं क्योंकि इनका संचालन बड़ी कंपनियों से होता है और इन्हें शोरूम खोलने का खर्च नहीं उठाना पड़ता है। लेकिन हम जैसे लोगों को शोरूम का किराया, साफ सफाई का खर्च आदि देखना पड़ता है। ऐसे में हमारा कारोबार पटरी पर आना मुश्किल हो चुका है।सेक्टर 49 निवासी नीलम बताती हैं कि वह पहले एक मॉल स्थित ब्यूटी पॉर्लर में काम करतीं थीं। एक निश्चित सैलरी हर माह मिल जाती थी। लेकिन कोविड के बाद लोगों ने पार्लर जाना कम कर दिया तो उन्हें सैलरी की जगह ग्राहक के अनुसार पैसा लेने या नौकरी छोड़ने की बात कही गई। मजबूरन पार्लर की नौकरी छोड़कर निजी ऐप यश मैडम के जरिए काम करना शुरू किया। अब यहां कमाई का 20 प्रतिशत हिस्सा कंपनी को देना पड़ता है। सर्दियों में वैसे भी पार्लर सर्विसेज का इस्तेमाल आधे से कम रह जाता है, ऐसे में मेरे लिए तो घर चलाना मुश्किल हो रहा है। मॉल कल्चर से फायदा था। अब निजी ऐप मनमाने नियम बनाते हैं।पहले लालच फिर मजबूरी -ओला कैब संचालक राम सिंह कहते हैं कि जब ओला ऊबर का दौर शुरू हुआ तो इन कंपनियों ने तरह तरह के लुभावने ऑफर दिए ताकी हम उनसे जुड़ जाएं। लेकिन जब लोगों को कैब सर्विस की आदत लग गई तो यह कंपनियां तगड़ा कमीशन वसूलने लगी। मेरी पत्नी अर्बल क्लैप ब्यूटी सर्विस मेें काम करती है उसके साथ भी यही चीजें हो रही हैं। कंपनी से मिलने वाले लाभ घटते जा रहे हैं और कमीशन बढ़ता जा रहा है। रेस्तरा में लोग नहीं, मिलते हैं बस फूड डिलीवरी ऐप के ऑर्डर -सेक्टर 18 में रेस्तरां संचालक रमेश त्यागी कहते हैं कि पहले उनके यहां लोग बैठकर खाने के ऑर्डर करते थे वक्त बिताते थे, अब तो बस फूड डिलीवरी ऐप वाले लोग ही आते हैं। लोग खाना उनके ऐप पर ही ऑर्डर करते हैं। जब घर बैठे रेस्तरां का खाना मिल रहा है तो कोई यहां तक नहीं आना चाहता है। लेकिन रेस्तरां चलाने के लिए अभी भी उतना ही किराया, बिजली का बिल आदि देना पड़ रहा है। वहीं शॉपिक्स मॉल में सबवे का आउटलेट चलाने वाले कर्मचारी कहते हैं कि मॉल में आकर ऑर्डर करने वालों की तुलना में ऐप पर मिलने वाले ऑर्डर की संख्या चार गुनी है। लोग म़ॉल तक आना ही नहीं चाहते हैं क्योंकि उन्हें अब कपड़े से लेकर ग्रासरी तक हर चीज ऐप पर मिल रही है।ऑफर्स के जाल में उलझे ग्राहक -घरेलू ऐप व ई कामर्स साइट की एक खासियत उन पर शुरुआती दौर में मिलने वाले ऑफर माने जाते हैं। पहले माह में कई बार यह ऐप लोगों को हजारों का फायदा दिलाते हैं जिसके चलते लोग उनकी ओर आकर्षित होते हैं। हालांकि धीरे धीरे इन ऑफर्स की संख्या घटती जाती है लेकिन लोगों को उनकी आदत पड़ चुकी होती है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 23, 2023, 16:43 IST
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