RSS: मोहन भागवत बोले- धर्म पूजा पद्धति नहीं...विविधता में संतुलन का ज्ञान, धर्मांतरण की कोई जगह नहीं
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि अपने देश में धर्म का अर्थ पूजा पद्धति नहीं है। विविधता के बीच संतुलन स्थापित करने का ज्ञान है। इसी ज्ञान के सहारे दो बार बड़ी गुलामी झेलने के बावजूद हम राष्ट्र के रूप में अपना अस्तित्व बचाने में कामयाब रहे। हमारे धर्म में धर्मांतरण की जगह नहीं है। भागवत ने व्याख्यानमाला में कहा कि संघ जैसा विरोध किसी संगठन का नहीं हुआ। शुरुआती कटु अनुभवों और विरोध के बावजूद संघ की साख बनी हुई है। इसका कारण समाज के लिए संघ की प्रेम के प्रति निष्ठा है। आज संघ विचारों के प्रति अनुकूलता है। साख के कारण हमारी स्वीकार्यता बढ़ गई। भागवत ने यह भी कहा, विरोध अब भी होते हैं, पर विरोध की धार भोथरी हो गई, क्योंकि हमने मैत्री, विरोधी विचारों के प्रति उपेक्षा, अच्छे विचारों की स्वीकार्यता और दुर्भाव रखने वालों के प्रति भी करुणा को मूल मंत्र बनाया। उन्होंने कहा, जहां दुख पैदा होता है, वहां धर्म नहीं। दूसरे धर्म की बुराई करना धर्म नहीं है। भागवत ने कहा, प्रगति की गति पहचाननी पड़ेगी। सामाजिक समरसता का कार्य कठिन होते हुए भी करना ही होगा। इसके अलावा कोई उपाय नहीं है। मंदिर, पानी और श्मशान में कोई भेद न रहे, कोई रोकटोक न हो। ये भी पढ़ें:Defence:'थिएटर कमान पर असहमति राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर दूर की जाएगी', मतभेद सामने आने के बाद सीडीएस चौहान विश्व कल्याण के लिए हर देश का हो एक संघ भागवत ने कहा, हमारा ध्येय विश्व कल्याण है। हम चाहते हैं कि दुनिया के हर देश के पास अपना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हो। ऐसा संघ जो हमारी तरह अपनी मिट्टी और मूल से जुड़ा हो। दुनियाभर में फैलती जा रही संघ की शाखाओं से यह संदेश जा रहा है। भविष्य में संदेश और व्यापक होगा। तीसरा विश्वयुद्ध नहीं होगा, यह कोई नहीं कह सकता दुनिया का संकट उपभोक्तावाद के सिद्धांत से उपजे अपनी चिंता करने के विचार से है। इससे अमर्यादित विकास से पर्यावरण नष्ट होता है। पहले विश्वयुद्ध के बाद लीग ऑफ नेशन बना। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र बना। इसके बावजूद दुनिया में संघर्ष कम होने के बजाय बढ़ता चला गया। कोई नहीं कह सकता कि तीसरा विश्वयुद्ध नहीं होगा। संघर्ष इसलिए जारी रहेगा कि हमने धर्म व विचारों में विविधता के साथ विकास व पर्यावरण में संतुलन बनाना नहीं सीखा। संविधान और कानून सर्वोपरि भागवत ने कट्टरपंथ और इस धारा को मिल रही मदद पर चिंता जताई। कहा कि हर हाल में संविधान और कानून का पालन किया जाना चाहिए। लोगों को आंदोलन करने का अधिकार है, मगर कानून को हाथ में लेने का अधिकार किसी को नहीं है। यह नहीं हो सकता कि प्रतिक्रिया में टायर जलाएं, कानून अपने हाथ में लें। अलग-अलग विचारों को साथ आना होगा भागवत ने कहा किमुद्दों पर अलग-अलग विचार स्वाभाविक हैं, मगर इसके कारण सामाजिक सद्भाव को नुकसान नहीं पहुंचे। समाज और देश के लिए अलग-अलग विचार के लोगों को साथ आना होगा और संघ का भावी लक्ष्य यही है। ये भी पढ़ें:Politics:निकाय चुनाव से पहले शिवसेना UBT-मनसे के मिलन का एक और संकेत; राज के घर आए उद्धव, CM फडणवीस भी पहुंचे 50 से अधिक विदेशी राजनयिक हुए शामिल व्याख्यानमाला में बुधवार को दो दर्जन दूतावासों और उच्चायोगों के 50 से अधिक राजनयिकों ने शिरकत की। इनमें अमेरिका के प्रथम सचिव गैरी एप्पलगार्थ, अमेरिका के राजनीतिक मामलों के काउंसलर आरोन कोप, चीन के काउंसलर झोउ गुओहुई, रूस के प्रथम सचिव मिखाइल जायत्सेव, श्रीलंका के उच्चायुक्त प्रदीप मोहसिनी और मलयेशिया के उच्चायुक्त दातो मुजफ्फर शामिल थे। उज्बेकिस्तान के काउंसलर उलुगबेक रिजेव, कजाकिस्तान के काउंसलर दिमासग सिज्दिकोव, इस्राइल के राजदूत रूवेन अजार और ऑस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त फिलिप ग्रीन भी शामिल हुए।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Aug 28, 2025, 06:46 IST
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